इस मंदिर में है 60 फीट ऊंचा सोने का खंभा
दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव 1
मथुरा (वृंदावन)। दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव 19 से 28 मार्च तक होगा। इस दौरान प्रतिदिन सुबह और शाम सवारियां निकाली जाएंगी। मेला में दक्षिण भारतीयों के अलावा देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होंगे।
दक्षिण भारत के संत स्वामी रंगाचार्य महाराज ने करीब पांच सौ साल पहले वृंदावन को अपनी साधना स्थली के रूप में अंगीकार किया था। रामानुज संप्रदाय के आचार्यो ने वृंदावन में श्रीरंग मंदिर के नाम से आचार्य पीठ की स्थापना की। करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले उनके मथुरा निवासी शिष्यों राधाकृष्ण, सेठ गोविंद दास एवं सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने रंगजी मंदिर का निर्माण कराया। ब्रह्मोत्सव में श्री गोदारंगमन्नार भगवान स्वर्ण-रजत निर्मित रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकलते हैं।
यह कार्यक्रम 25 मार्च को होगा। ब्रह्मोत्सव के दौरान दिन में दो बार सवारी निकाली जाती है। अलग-अलग स्वर्ण-रजत वाहनों पर जैसे सूर्यप्रभा, पालकी, हाथी, घोड़ा, हनुमान, गरुड़ और 50 फुट लंबे विशालकाय चंदन रथ पर बैठ श्री गोदारंगमन्नार की सवारी स्थानीय बड़े बगीचे तक जाती हैं। 28 मार्च को ध्वजा उतारने के उपरांत ब्रह्मोत्सव का समापन होगा।
60 फीट ऊंचा सोने का खंभा-ऊंचे परकोटे वाले मंदिर में सात परिक्रमा हैं तो पश्चिम द्वार पर सात मंजिली ऊंचा शिखर है। मंदिर की चतुर्थ परिक्रमा के विशाल प्रांगण में गरुड़ स्तम्भ (स्वर्ण स्तम्भ) है, जो कि 60 फीट ऊंचा है और पूरा स्वर्ण जड़ित है। इसी कारण इसे सोने के खंभे वाला मंदिर भी कहा जाता है। प्रांगण में दक्षिण भारतीय संस्कृति के प्रतीक गोपुरम एवं मण्डपम निर्मित हैं। सिंह दरवाजे की ओर का गोपुरम 6 कोष्ठ वाला है एवं पूर्व की ओर का गोपुरम 5 कोष्ठ का है। पूर्व दरवाजे से प्रवेश करते ही सामने 16 स्तंभों पर टिकी विशाल बारहद्वारी है।