Surya Kund Mandir: इस मंदिर में पूजा करने से मिलता है संतान सुख, सूर्य ग्रहण पर भी खुले रहते हैं इसके द्वार
भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थान हैं जिनके पीछे कोई-न-कोई पौराणिक कथा मौजूद होती है। कई मंदिरों से जुड़ी मान्याएं काफी रोचक होती हैं। ऐसा ही एक मंदिर है यमुनानगर के अमादलपुर में स्थित प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर जिसका इतिहास सूर्यवंश से लेकर महाभारत काल तक पाया जाता है।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Surya Kund Mandir: जहां अन्य मंदिरों में ग्रहण और सूतक काल में पूजा-अर्चना करना निषेध होता है और सभी मंदिर बंद हो जाते हैं। वहीं यमुनानगर में स्थित प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के कपाट सूर्य ग्रहण के समय भी खुले रहते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस मंदिर में प्रवेश कर लेता है उस पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस मंदिर में स्थित सूर्यकुंड इस प्रकार बना है कि सूर्य की किरणें कुंड में ही समा जाती हैं। देश में ऐसे दो ही मंदिर हैं, जो सूर्य ग्रहण के समय भी खुले रहते हैं। इनमें से एक ओडिशा के कोणार्क में स्थित है।
किसने कराया इस मंदिर का निर्माण
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम से 6 पीढ़ी पहले सूर्यवंशी राजा मांधाता कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए थे। उस समय ऋषि-मुनियों की सलाह पर उन्होंने इस स्थान पर बहुत बड़ा राजसूय यज्ञ करवाया। उस समय यहां इस कुंड का निर्माण कर राजा मांधाता द्वारा इस कुंड में खड़े होकर यमुना जी और सूर्य भगवान का आह्वान किया गया था। इसके बाद भगवान श्री सूर्य नारायण जी ने प्रकट होकर उनका कुष्ठ रोग ठीक किया था। जिसके बाद से ये मान्यता चली आ रही है कि इस मंदिर में स्थित प्राचीन सूर्य कुंड में स्नान करने से चर्म रोग व त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। अन्य मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों का भी इसी स्थान पर यक्ष से संवाद हुआ था। इसी स्थान पर द्रौपदी ने भगवान सूर्य की उपासना करके उनसे अक्षय पात्र प्राप्त किया था।
सूर्यकुण्ड की रोचक बातें
स्थानीय लोगों का कहना है कि सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज भी यहां आ चुके हैं। इस मंदिर की एक रोचक बात यह है कि रविवार के दिन सूर्य कुंड का जल दो से तीन बार अपना रंग बदलता है। इस कुंड का पानी कभी हरा, कभी सफेद और कभी नीला या काले रंग का हो जाता है। साल भर इस कुंड का जल न तो कम होता है और न ही सूखता है।
भगवान श्री कृष्ण से कैसे जुड़ा है इतिहास
ऐसा भी माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना खुद भगवान श्री कृष्ण और पांडवों द्वारा की गई थी और भगवान कृष्ण व पांडव इनकी नियमित रूप से पूजा भी करने आते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और यमुना जी का कालिंदी रूप में इसी स्थान पर विवाह हुआ था और इस विवाह में खुद भगवान सूर्य नारायण जी ने कन्यादान किया था। क्योंकि भगवान सूर्यनारायण ने भगवान राम जी को त्रेता युग में कहा था कि वह उनकी पुत्री से विवाह कर ले तब भगवान राम जी ने उन्हें कहा था कि द्वापर युग में जब वह भगवान कृष्ण के रूप में आएंगे। तब वह उनकी पुत्री से विवाह करेंगे। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य कमजोर है या उसे संतान प्राप्ति नहीं हो रही तो, यहां आकर भगवान सूर्य की उपासना करने से उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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