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सकट चौथ: देश में यहां है सकट माता का मंदिर, गणेश चतुर्थी पर भी होती है विशेष पूजा

24 जनवरी को सकट चौथ 2019 का व्रत आैर पूजन किया जायेगा। एेसे आपको ले चलते हैं राजस्थान के एक विशेष मंदिर की सैर पर जहां इस दिन भव्य मेला लगता है।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 05:05 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 12:14 PM (IST)
सकट चौथ: देश में यहां है सकट माता का मंदिर, गणेश चतुर्थी पर भी होती है विशेष पूजा
सकट चौथ: देश में यहां है सकट माता का मंदिर, गणेश चतुर्थी पर भी होती है विशेष पूजा

सकट चौथ की महिमा

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वैसे तो राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित चौथ माता का देवी का स्थान है। इसी के नाम पर इस गांव का नाम ही बरवाड़ा से बदल कर चौथ का बरवाड़ा हो गया है। ये चौथ माता का सबसे प्राचीन आैर सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर  माना जाता है। परंतु चौथ माता मंदिर के अलावा मंदिर परिसर में भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियों से सज्जित भव्य मंदिर आैर भी है। इसीलिए चौथ के दिन यहां गणेश जी की विशेष पूजा होती है। इनमें भी संकष्ठी चतुर्थी व्रत की बहुत महिमा सबसे अधिक मानी जाती है। इस व्रत को वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ आैर तिलकुटा चौथ व्रत के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हिंदु पचांग के अनुसार ये व्रत माघ माह की चतुर्थी को आता है। सकट चौथ का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। राजस्थान में इसी तिलकुटा चौथ के दिन चौथ का बरवाड़ा में विशाल मेला भी लगता है।।

राजस्थानी शैली का खूबसूरत मंदिर

बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी। चौथ का बरवाड़ा, अरावली पर्वत श्रंखला में बसा हुआ मीणा व गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है। बरवाड़ा का नाम 1451 में चौथ माता के नाम पर चौथ का बरवाड़ा घोषित किया गया था। ये मंदिर करीब एक हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर है आैर शहर से करीब 35 किमी दूर है। ये स्थान पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है आैर इसका प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोहने वाला है।  इस जगह पर सफेद संगमरमर से बने कई स्मारक हैं। दीवारों और छत पर जटिल शिलालेख के साथ यह मंदिर वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली की झलक प्रस्तुत करता है। मंदिर में वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली देखी जा सकती है। मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। देवी की मूर्ति के साथ यहां भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी हैं। 1452 में मंदिर का जीर्णोद्घार किया गया था। जबकि मंदिर के रास्ते में बिजली की छतरी और तालाब 1463 में बनवाया गया। किंवदंतियों के अनुसार चौथ माता की प्रतिमा सन 1332 के लगभग चौरू गांव में स्थित थी। 1394 ईस्वी के लगभग चौथ माता मंदिर की स्थापना बरवाड़ा में महाराजा भीम सिंह द्वारा की गर्इ थी, जो पंचाल के पास के गांव से चौथ माता की मूर्ति लाये थे।

आती है भक्तों की भीड़

कहते हैं कि बरवाड़ा में पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर की स्थापना माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से की गर्इ थी तभी से चौथ माता के इस स्थान इस दिन मेला लगने लगा। चौथ का बरवाड़ा बेशक एक छोटा सा इलाका है, जहां शक्तिगिरी पर्वत पर यह मंदिर बना हुआ है। सुविधाआें की कमी के बावजूद ये श्रद्घालुआें का प्रिय धार्मिक स्थल है। चौथ माता हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी मानी जाती है, जिनके बारे में विश्वास है कि वे स्वयं माता पार्वती का एक रूप हैं। यहां हर महीने की चतुर्थी पर लाखों दर्शनार्थी माता जी के दर्शन हेतु आते हैं। चौथ का बरवाड़ा शहर में हर चतुर्थी को स्त्रियां माता जी के मंदिर में दर्शन करने के बाद व्रत खोलती है एवं सदा सुहागन रहने आशीष प्राप्त करती है। सकट चौथ के अतिरिक्त करवा चौथ आैर माही चौथ पर भी यहां लाखों की तादाद में दर्शनार्थी पहुंचते हैं।


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