पितृ उद्धार का सर्वविशिष्ट केंद्र है गया
स्वर्ग पाता मत्र्येषु नास्ति तीर्थ गया समप्।। अर्थात गया जैसा तीर्थ स्वर्ग, पाताल और मत्स्य लोक में नहीं। गरुड़ पुराण भी स्वीकार करता है कि संपूर्ण पृथ्वी पर गया जैसा कोई तीर्थ नहीं। गया को कहीं तीर्थ श्रेष्ठ, कहीं पितृ तीर्थ तो कहीं भारतीय तीर्थो का प्राण कहा गया है.. पर क्यों? इस पर अध्ययन-अनुशीलन और विस्तृत विवेचन से स्पष्ट होता है कि
गया। स्वर्ग पाता मत्र्येषु नास्ति तीर्थ गया समप्।। अर्थात गया जैसा तीर्थ स्वर्ग, पाताल और मत्स्य लोक में नहीं। गरुड़ पुराण भी स्वीकार करता है कि संपूर्ण पृथ्वी पर गया जैसा कोई तीर्थ नहीं। गया को कहीं तीर्थ श्रेष्ठ, कहीं पितृ तीर्थ तो कहीं भारतीय तीर्थो का प्राण कहा गया है.. पर क्यों? इस पर अध्ययन-अनुशीलन और विस्तृत विवेचन से स्पष्ट होता है कि इहलोक में रहने वाले मानव के सूत्र संबंधी अर्थात पितरों का उद्धारक स्थल होने के कारण गया को भारतीय तीर्थो में उत्मोत्तम स्थान प्राप्त है।
आदि-अनादि काल से पिंडदान स्थली के रूप में गया की चर्चा हुई है। यहां पितरण की स्मृति में सालों भर श्राद्ध पिंडदान संबंधी कार्य होता रहता है। पर साल के 15 दिन अर्थात भाद्रपद पूर्णिमा से आश्रि्वन अमावस्या तक इसका मान सर्वाधिक हुआ करता है। गया में जिन सात गोत्र का उद्धार होता है वह है पिता, माता, पत्नी, बहन, बेटी, बुआ और मौसी का गोत्र। सोचिए इसके बाद अब नजदीक का परिवार शेष कहां रहा।
गयाजी में 101 कुल का उद्धार सहज में संभव है। इनमें पिता का 24, माता का 20, पत्नी का 16, बहन का 12, बेटी का 11, बुआ का 10 और मौसी का 8 कुल सम्मिलित है। इन सभी के अलावा गया के साथ एक और मणिकांचन योग प्रस्तुत होता है वह यह कि गया में स्वपिंडदान केंद्र भी है। भारतीय तीर्थो में कितनी ही जगह श्राद्ध पिंडदान से जुड़े अनुष्ठान किए जाते हैं पर स्वपिंडदान केंद्र का एकमेव स्थल गया है। इस धरती पर जिसका कोई नहीं उसका पिंड यही जनार्दन मंदिर में किया जाता है जो मंगला गौरी जी के ऊपर भाग में पर्वतासीन है और प्राच्च वेदियों में गण्य है।
[डा. राकेश कुमार सिन्हा रवि]
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