पितर को ब्रहम लोक की प्राप्ति
जिले में लगभग पांच सौ से अधिक लोगों की आत्माएं श्रद्धकर्म व इस पितृपक्ष में तर्पण देने के बाद भी भटक रही हैं। क्योंकि उनकी आत्माओं को शांति नहीं मिल पाई है। इनमें ऐसे लोग थे, जिनकी मौत के साथ किसी न किसी अपराध का शक जुड़ा है। इनकी मौत स्वभाविक नहीं थी। इसलिए पोस्टमार्टम में भी मौत की वजह साफ नहीं होने पर विसरा
गया। गया। 24 सितंबर को क्7 दिवसीय गया श्राद्ध का 17वां दिवस है। उक्त तिथि को गया के समय मान के अनुसार दिन 10:48 बजे तक अमावस्या तिथि है। अमावस्या तिथि का तर्पण 10:48 बजे तक ही होगा। पिता की तिथि नहीं ज्ञात रहने पर अमावस्या को तर्पण किया जाता है।
17 दिवसीय श्राद्ध का 17वां पिंडदान दिन 10:48 बजे के बाद होगा। इसमें तिल का प्रयोग नहीं होता है। केवल दही एवं अक्षत का पिंडदान होता है। यह पिंड नाना को अर्पित किया जाता है। जिनके पिता जीवित हैं वे भी अपने नाना को पिंडदान करते हैं। यह श्राद्ध शुभकर्म माना जाता है। श्राद्ध के बाद गायत्री देवी का दर्शन किया जाता है। इससे कुल के सभी पितर ब्रहमलोक को प्राप्त होते हैं।
सावित्री देवी एवं सरस्वती देवी का भी दर्शन किया जाता है। तीनों देवियों ब्रहमा के मानस से उत्पन्न हैं। इनके दर्शन से ब्रहमा भी प्रसन्न होते हैं। ब्रहम तेज की प्राप्ति श्राद्धकर्ता को होती है।