जानें मणिकर्णिका घाट की महत्ता की 4 कथायें
ये तो सभी जानते हैं कि बनारस का मणिकर्णिका घाट महाश्मशान है जहां चिताओं की आग कभी शांत नहीं होती। मुक्ति के मार्ग इस घाट से जुड़ी हैं कई कहानियां।
कथा नंबर एक
एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल इस स्थान पर एक कुंड में गिर गया था, जिसे भगवान शंकर ने ढूंढ कर दिया था। इसी कारण इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। कथा तो ये भी है कि ये कर्णफूल माता ने स्वयं यहां छिपाया था ताकि भोलेनाथ अधि समय तक उनके साथ रहें।
कथा नंबर दो
एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी ने माता पार्वती जी के पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार यहीं पर किया गया, जिस कारण इसे महाश्मशान भी कहते हैं। आज भी यहां दिन रात दाह संस्कार होते रहते हैं।
कथा नंबर तीन
एक कथा ये भी है कि भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी। इसी लिए इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ा।
कथा नंबर चार
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार चौथी कथा ये है कि मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था। यहीं पर राजा ने अपने पुत्र की अंतिम क्रिया के लिए अपनी पत्नी से भी कर मांग कर अपनी कर्तव्य और सत्यनिष्ठा प्रमाणित की थी।