जानें लहर की देवी के इस विशेष मंदिर के बारे में, यहां मां देती हैं तीन रूपों में दर्शन
आज हम आपके लिए एक रहस्यमयी मंदिर की जानकारी लाए हैं। रहस्यमयी मंदिर की कहानी लेकर आए हैं। यह एक बेहद ही विशेष मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में देवी मां की एक प्रतिमा स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रतिमा हर पहर अलग-अलग स्वरूप बदलती है।
आज हम आपके लिए एक रहस्यमयी मंदिर की जानकारी लाए हैं। रहस्यमयी मंदिर की कहानी लेकर आए हैं। यह एक बेहद ही विशेष मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में देवी मां की एक प्रतिमा स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रतिमा हर पहर अलग-अलग स्वरूप बदलती है। यह सुनकर हर किसी को हैरानी तो होगी लेकिन यह सच है। इस मंदिर का नाम लहर की देवी है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
कैसे हुआ था लहर की देवी मंदिर का निर्माण:
यह मंदिर झांसी के सीपरी में स्थित है। बुंदेलखंड के शक्तिशाली चंदेल राज के समय इस मंदिर का निर्माण किया गया था। यहां के राजा का नाम परमाल देव था। इनके दो भाई थे। इनके भाईयों का नाम आल्हा-उदल था। महोबा की रानी मछला को पथरीगढ़ का राजा ज्वाला सिंह ने अपह्त कर लिया था। अल्हा ने ज्वाला सिंह से पार पाने और रानी को वापस लाने के लिए अल्हा ने अपने भाई के सामने अपने पुत्र की बलि इसी मंदिर में चढ़ा दी थी। हालांकि, देवी द्वारा इस बलि को स्वीकर नहीं किया गया था। देवी ने उस बालक को जीवित कर दिया। मान्यता है कि जिस पत्थर पर अल्हा ने अपने पुत्र की बलि दी थी वो पत्थर आज भी इसी मंदिर में सुरक्षित है।
इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को लहर की देवी कहा जाता है। इन्हें मनिया देवी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ये मां शारदा की बहन हैं। 8 शिला स्तंभों पर खड़े इस मंदिर के प्रत्येक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित हैं। ऐसे में यहां 64 योगिनी मौजूद हैं। मंदिर परिसर में भगवान सिद्धिविनायक, शंकर, शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भगवान दत्तात्रेय, हनुमानजी और काल भैरव का भी मंदिर स्थित है।
तीन स्वरूप बदलती हैं मां की प्रतिमा:
मान्यता है कि इस मंदिर में मौजूद लहर की देवी की मूर्ति दिन में तीन बार स्वरूप बदलती है। सुबह में बाल्यावस्था में, दोपहर में युवावस्था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ़ा अवस्था में मां नजर आती हैं। हर पहर में मां का श्रृंगार अलग-अलग किया जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि पहूज नदी का पानी कालांतर में पूरे क्षेत्र तक पहुंच जाता है। इस नदी की लहरें माता के चरणों को छूती हैं। इसी के चलते इस मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति को लहर की देवी कहा जाता है।
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