चलिए गुरुवयूर मंदिर जहां होती है कृष्ण के बालरूप की पूजा
गुरुवायुर को गुरुवयुनकेरे नाम से भी जाना जाता है ये भारत के केरल राज्य में स्थित है। जन्माष्टमी में श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है, एेसे में चलें इस मंदिर में जहां होती है उनके बाल स्वरूप की पूजा।
कर्इ शताब्दी पुराना बाल कृष्ण का मंदिर
केरल राज्य के थ्रिसुर जनपद में गुरुवायुर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। एेसा कहा जाता है कि गुरुवायुर मंदिर कई शताब्दियों पुराना है।इस मंदिर के देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं जो बालगोपालन यानि कृष्ण भगवान का बालरूप हैं। हालांकि इस मंदिर में गैर-हिन्दुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है, फिर भी कई धर्मों अनुयायी भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।
कला आैर साहित्य से रिश्ता
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसका रिश्ता केवल धर्म कर्म आैर पूजा पाठ से ही नहीं बल्कि कला आैर साहित्य से भी है। ये मंदिर प्रसिद्घ शास्त्रीय नृत्य कला कथकली के विकास में सहायक रही विधा कृष्णनट्टम कली, जोकि नाट्य-नृत्य कला का एक रूप है उसका प्रमुख केंद्र है। गुरुयावूर मंदिर प्रशासन जो गुरुयावूर देवास्वोम कहलाता है एक कृष्णट्टम संस्थान का संचालन करता है। इसके साथ ही, गुरुयावूर मंदिर का दो प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों से भी संबंध है नारायणीयम के लेखक मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी और ज्नानाप्पना के लेखक पून्थानम, दोनों ही गुरुवायुरप्पन के परम भक्त थे। नारायणीयम संस्कृत में लिखा ग्रंथ है जिसमें महाविष्णु के दस अवतार पर जानकारी दी गर्इ है, आैर ज्नानाप्पना मलयालम भाषा में लिखी पुस्तक जीवन के विभिन्न सत्यों की विवेचना करती है और क्या करना चाहिए व क्या नहीं करना चाहिए, इसके सम्बन्ध में उपदेश देती है। गुरुवायुर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय कर्नाटकीय संगीत का एक प्रमुख स्थल है।, यहां एकादसी दिवस के दौरान जोकि सुविख्यात गायक आैर गुरुवायुरप्पन के परम भक्त, चेम्बाई वैद्यनाथ भगावतार की स्मृति में मनाया जाता है, उल्सवम नाम का एक वार्षिक समारोह भी करता है। ये उत्सव कुम्भ के मलयाली महीने (फरवरी-मार्च) में पड़ता है। इसके दौरान यहां पर कथकली, कूडियट्टम, पंचवाद्यम, थायाम्बका और पंचारिमेलम आदि कर्इ शास्त्रीय नृत्यों का आयोजन होता है।
मंदिर से जुड़ी कथा
गुरूवायूरप्पन मंदिर में भगवान की स्थापना के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। ये कथा गुरु बृहस्पति और वायु के देवता पवन से सम्बंधित है। कहते हैं कि श्री बृहस्पति को भगवान कृष्ण की एक तैरती हुई मूर्ति मिली थी। उन्होंने और वायु देवता ने, इस मूर्ति को गुरुवायुर मंदिर में स्थापित किया गया। इस पौराणिक कथा के आधार पर ही दोनों लघु प्रतिमाओं के नाम गुरुवायुरप्पन और इस नगर के नाम गुरुवायुर पड़ा।एेसी भी मान्यता है कि यह जो मूर्ति गुरुवायुर में है, वह द्वापर युग में स्वंय श्री कृष्ण द्वारा प्रस्तुत की गयी थी।