चारधाम है नर नारायण यात्रा, भक्ति से मोक्ष तक की यात्रा
इस यात्रा का शुभारंभ हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ होता है। इस वर्ष यह तिथि 28 अप्रैल है।
चारधाम यात्रा एक तरह से जीवन की यात्रा है। सुख और दुख का मिश्रण है हमारा जीवन। जब हम कठिन रास्तों से होकर यात्रा करते हैं, तो हमारे अंदर शौर्य एवं साहस का जन्म होता है। यात्रा के दौरान जब हम प्रकृति के मनोहारी दृश्यों से रूबरू होते हैं, तो हमें ईश्वर की निकटता का बोध होता है। इसमें जीवन का दर्शन समाया हुआ है। शायद इसीलिए चारधाम यात्रा को ‘नर यात्रा नारायण यात्रा’ भी कहा गया है।
इस यात्रा का शुभारंभ हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ होता है। इस वर्ष यह तिथि 28 अप्रैल है। उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री धाम से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री (उत्तरकाशी) से केदारनाथ (रुद्रप्रयाग) होते हुए बदरीनाथ (चमोली) पहुंचकर विराम लेती है। शास्त्रों में चारधाम यात्रा का शुभारंभ हरिद्वार से माना गया है। हरिद्वार श्रीविष्णु के साथ-साथ शिव का द्वार भी है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगा यहीं मैदान में प्रवेश करती है। इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार भी कहा जाता है। यह पार्वती का मायका भी कहलाता है और यहीं देवभूमि के प्रथम दर्शन भी होते हैं।
मान्यता है कि यहां गंगाजी में डुबकी लगाने के साथ शुरू की गई यात्रा पुण्यदायी होती है। कहते हैं कि जीवन में भक्ति का विशेष महत्व है, इसलिए धर्मग्रंथ सर्वप्रथम यमुनाजी के दर्शनों की सलाह देते हैं। यमुना को भक्ति का उद्गम माना गया है, जबकि गंगा को ज्ञान की अधिष्ठात्री यानी साक्षात सरस्वती का स्वरूप माना जाता है।
ज्ञान जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है। जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरि के चरणों में ही मिल सकता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बदरी विशाल के शरणागत हो जाना चाहिए। चारधाम यात्रा के पहले दिन चारों तीर्थों में अखंड ज्योति के दर्शन होते हैं। इसे बहुत पुण्यदायी माना गया है। व्यावहारिक रूप में देखें,
तो सूर्य की पहली किरण, वर्षा की पहली फुहार, स्नेह का पहला स्पर्श भला किसे नहीं सुहाता। कहने का तात्पर्य यह है कि शुभारंभ हमेशा श्रेयस्कर होता है। इसीलिए पहले दिन की यात्रा का विशेष महत्व है।
पौराणिक माहात्म्य
यमुनोत्री : चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री धाम। यहां सूर्य पुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। समुद्रतल से 3165 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना जी का मूल उद्गम है। समुद्र तल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई 4421 मीटर है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह पवित्र स्थान एक साधु असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहां देवी यमुना
की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री : पौराणिक कथा है कि भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी धरती पर अवतरित हुईं, इसीलिए उनका भागीरथी नाम भी है। गंगोत्री धाम में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है, जो समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है। स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। माना जाता है कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का
वास्तविक उद्गम गंगोत्री से 19 किमी. की दूरी पर गोमुख है, लेकिन श्रद्धालु गंगोत्री में ही गंगाजी के दर्शन करते हैं।
केदारनाथ : रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र तल से 3593 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के किनारे केदारनाथ धाम का देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भी केदारनाथ धाम
का जिक्र मिलता है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल के रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती चली आ रही है। जून 2013 की आपदा में केदारनाथ धाम पूरी तरह तहस-नहस हो गया था, लेकिन अब इसका पुनर्निर्माण हो चुका है और यह
पूरी तरह सुरक्षित है।
बदरी नाथ : नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरी नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। धर्मग्रंथों के अनुसार, स्वर्ग और धरती पर असंख्य तीर्थ हैं, लेकिन बद्रिकाश्रम सरीखा तीर्थ न कोई था, न कोई है और न होगा। गंगा ने जब स्वर्ग से धरती के लिए प्रस्थान किया, तो उसका वेग इतना तीव्र था कि संपूर्ण मानवता खतरे में पड़ जाती। इसलिए गंगा बारह पवित्र धाराओं में बंट गई। इन्हीं में से एक है अलकनंदा, जिसके
तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर चमोली जिले में इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था।
देहरादून से दिनेश कुकरेती