54 पिंडवेदियों में तीन प्रमुख पिंडवेदी बोधगया में अवस्थित है
गयाजी स्थित 54 पिंडवेदियों में तीन प्रमुख पिंडवेदी बोधगया क्षेत्र में अवस्थित है। इनमें धर्मारण्य, मातंगवापी, सरस्वती शामिल है। लेकिन सनातनी श्रद्धालु भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानकर महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से करते आ रहे हैं। पितृपक्ष के तृतीया तिथि को चतुर्थ दिवसीय श्राद्ध कर्मकांड इन पिंडवेदिय
बोधगया (गया)। गयाजी स्थित 54 पिंडवेदियों में तीन प्रमुख पिंडवेदी बोधगया क्षेत्र में अवस्थित है। इनमें धर्मारण्य, मातंगवापी, सरस्वती शामिल है। लेकिन सनातनी श्रद्धालु भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानकर महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से करते आ रहे हैं।
पितृपक्ष के तृतीया तिथि को चतुर्थ दिवसीय श्राद्ध कर्मकांड इन पिंडवेदियों पर होता है। धर्मारण्य व मातंगवापी पिंडवेदियों पर गुरुवार को सनातनी श्रद्धालुओं का मानो सैलाब सा उमड़ पड़ा। लेकिन सरस्वती पिंडवेदी पर विरानी छायी रही। यहां इक्क ा-दुक्का श्रद्धालु ही पहुंच रहे थे। क्योंकि यहां तक आवागमन का कोई साधन नहीं है। यहां किए जाने वाले तर्पण के विधान को श्रद्धालु धर्मारण्य के समीप मुहाने नदी में ही करते हैं। यहां सूर्योदय के पहले से श्रद्धालुओं का आवागमन शुरू हो जाता है।
फूल-माला बेचने वाले गुहार लगाते हैं- फूल-माला ले लो महाराज। लेकिन श्रद्धालु सीधे मुहाने नदी की ओर कूच करते हैं। नदी में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान की प्रकिया परंपरा के अनुसार संपादित करते हैं। और उस पिंड को अष्टकमल आकार के कूप में पिंड को विसर्जित कर मातंगवापी पिंडवेदी के लिए कूच करते हैं। यहां भी पिंडदानी पिंडदान के विधान को संपन्न कर पिंड को मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। पिंडदानियों का हुजूम विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में भी दिखता है। यहां श्रद्धालु पिंडदान के विधान को संपन्न कर पिंड को एक स्थान पर छोड़ देते हैं। जिसे सफाई कर्मी उठाकर ले जाता है। और श्रद्धालु भगवान बुद्ध का दर्शन कर निकल जाते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान जाने-अंजाने में मारे गए लोगों के आत्मा की शांति व पश्चाताप के लिए धर्मराज युद्धिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था। धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान व त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहां किए गए पिंडदान व त्रिपिंडी श्राद्ध से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।
धर्मारण्य पिंडवेदी-अग्नि पुराण के अनुसार मातंग ऋषि का तपोस्थली के रूप में मातंगवापी को वर्णित किया गया है। यहां पिंडदान व दर्शन कर्म को महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां मातंग कुंड में तर्पण और पिंडदान का कर्मकांड किया जाता है। यहां पिंड सामग्री को मातंगेश शिव पर अर्पित कर कर्मकांड के विधान को इतिश्री किया जाता है।
मांतगवापी पिंडवेदी-कहा जाता है कि बोधगया स्थित पिंडवेदियों पर पिंडदान के कर्मकांड की शुरूआत सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के साथ होता है। लेकिन सरकार व प्रशासनिक दृष्टिकोण से गयाजी की अन्य वेदियों की भांति यह वेदी भी विलुप्त होने के कगार पर है।
सरस्वती पिंडवेदी- वायु पुराण के अनुसार धर्मराज युद्धिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान करने के पश्चात महाबोधि मंदिर के गर्भगृह स्थित धर्म नामक शिवलिंग व महाबोधि वृक्ष को नमन किया था। लेकिन कालांतर से भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानकर सनातनी यहां भी पिंडदान करते हैं। वैसे जानकार बताते हैं कि बरसात के दिनों में निरंजना नदी में पानी भरा रहता था। इस कारण अपनी सुविधा के अनुसार लोगों ने 'बुद्ध के आंगन' में पिंडदान करना शुरू कर दिया। जो आज भी जारी है।