भारतेंदु भवन में आज भी रचाया जाता दो सौ साल पुराना उत्सव
आज भी बनारस के पक्के महाल में कुछ ऐसे नेमी घराने हैं जहां विशेष पर्वो पर खानदानी परंपरा के अनुसार अनुष्ठान और उत्सव मनाए जाते हैं। स्वनाम धन्य भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के परिवार की प्रसिद्ध रथयात्रा भी इन्हीं उत्सवों की गौरवशाली कड़ी में से एक है। परिवार के सदस्य उसी उत्साह और वैभव के साथ अपनी विरासत को संभाले हुए हैं
वाराणसी। आज भी बनारस के पक्के महाल में कुछ ऐसे नेमी घराने हैं जहां विशेष पर्वो पर खानदानी परंपरा के अनुसार अनुष्ठान और उत्सव मनाए जाते हैं। स्वनाम धन्य भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के परिवार की प्रसिद्ध रथयात्रा भी इन्हीं उत्सवों की गौरवशाली कड़ी में से एक है।
परिवार के सदस्य उसी उत्साह और वैभव के साथ अपनी विरासत को संभाले हुए हैं जैसा की उनके पूर्वजों ने अपने समय में निभाया। विशेष बात यह है कि जगन्नाथ पुरी के रिवाज से इतर इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ- बलभद्र और बहन सुभद्रा के स्थान पर ठाकुर गिरधर गोपाल (भगवान कृष्ण का बालस्वरूप) और उनकी राधा रानी रथारूढ़ होती हैं। हालांकि यह उत्सव भारतेंदु भवन (चौखंभा) की अंगनाई से बाहर नहीं आता मगर भारतेंदु परिवार के साथ ही टोले-मुहल्ले के लोग और भक्त जन दर्शन पूजन के बहाने इसमें नि:संकोच अपनी हाजिरी दर्ज कराते हैं। परिवार के प्रतिनिधि प्रो. गिरीश चंद्र चौधरी बताते हैं कि इस उत्सवी परंपरा का श्री गणोश भारतेंदु के पिता बाबू गोपाल चंद्र ने किया था। जिस रथ पर ठाकुर और स्वामिनी विराजते हैं वह लगभग 200 साल पुराना है।
साल में सिर्फ तीन दिन के लिए यह रथ और इसके साथ लगे लगे लकड़ी के घोड़े रथशाला से निकाले जाते हैं। लकड़ी के इस रथ की छतरी को बाकायदा मखमल, और लाल, हरे रेशमी वस्त्रों से सजाया जाता है। रथ के नीचे श्वेत रंग के बागा (बृज भाषा का शब्द जिसका हिन्दी में अर्थ वस्त्र होता है) सजाया जाता है। इसी मंडप में ठाकुर और राधा स्वामिनी के स्वरूप की पूजा की जाती है। आगे बाल गोपाल का विग्रह भी रखा होता है। रथ के आगे लकड़ी के दो घोड़े जुते हैं। वहीं रथ के पीछे श्वेत रंग की रेशमी पिछवई लगाई जाती है। मौसम के अनुकूल रथयात्रा में भगवान को श्वेत वस्त्र पहनाया जाता है। दूसरी ओर श्री नाथ जी के नाथद्वारा से लाई हुई वस्त्रों की गठरी। सुबह मंगला आरती भोग, आरती, स्नान, व भोग, श्रृंगार होता है इसके बाद प्रभु रथ पर विराजमान होते हैं। उनके आगे तरह- तरह के पकवानों से भरी थाली भेंट की जाती है। यहां पर ठाकुर जी के पूजन का भाव बिल्कुल वैसा ही होता हे जैसे किसी बच्चे की मनुहार। घर के लोग इस दिन स्नान करके मंदिर की पोशाक पहनकर पूजन करते हैं। पूजा के बाद रथ की परिक्रमा का विधान है।
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