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मंदिर जहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा

राजस्‍थान के अचलगढ़ में शिव जी का एक बहुत प्रचीन मंदिर है जहां उनके पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। कहते है अंगूठे पर पहाड़ टिका हुआ है।

By Prabhapunj MishraEdited By: Published: Mon, 21 Aug 2017 05:42 PM (IST)Updated: Mon, 09 Apr 2018 04:20 PM (IST)
मंदिर जहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा
मंदिर जहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा

यहां होती है भगवान के अंगूठे की पूजा

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राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। पुराणों के अनुसार वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी। अचलगढ़ का अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास है। कहा जाता हैं कि यहां का पर्वत भगवान शिव के अंगूठे की वजह से टिका हुआ है। जिस दिन यहां से भगवान शिव के अंगूठा गायब हो जाएगा उस दिन यह पर्वत नष्ट हो जाएगा। 

कभी नहीं भरता है ये खड्ढ़ा

यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक खड्ढा बना हुआ है। इस खड्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं लेकिन यह कभी भरता नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है यह आज भी एक रहस्य है। अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ है। मंदिर में बाएं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है। इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। 

अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है मंदिर

मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं। अचलेश्वर महादेव मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास ही है। अचलगढ़ का किला अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। कहते हैं कि इसका निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया था।


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