हरि को समर्पित हर की आराधना
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी का पर्व मनाया जाता है।
वाराणसी। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन जल रहित व्रत रहकर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की साधना-आराधना करने से मानव का कल्याण होता है। काशी में इस तिथि पर जो भी आराधना-साधना भगवान शंकर की होती है, वह सब भगवान विष्णु को प्राप्त होती है। यह पर्व इस बार 31 मई (गुरुवार) को पड़ रहा है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी वृष संक्रान्ति में होता है, जिसमें सूर्य की किरण अत्यंत तीव्र होती है। ऐसी स्थिति में जल रहित उपवास रहकर भगवान विष्णु की उपासना एक कठोर तपस्या का रूप लेती है। कठोर स्वरुप के कारण निर्जला एकादशी कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी (देवोत्थान) से भी श्रेष्ठ मानी जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों में भीम के उदर में वृक नाम की अग्नि थी। नागलोक में जाकर वहां के दस कुंडों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति आ गयी थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भूख प्यास बढ़ गयी थी। द्रौपदी व सभी पांडव एकादशी का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए यह व्रत बहुत ही दुष्कर था। ऐसे में व्यास जी ने उन्हें मात्र ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का ही निर्जला व्रत रखने को कहा। भीम ने यह एकादशी व्रत किया इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला उपवास एक ओर तो जल के महत्व को प्रतिबिंबित करता है, वहीं विभिन्न लिप्साओं की भूख -प्यास के शमन को प्रेरित करता है। इस पर्व पर गंगा स्नान, भगवान विष्णु का पूजन तथा शीतल शर्बत पिलाने का विशेष महत्व है। इस दिन केले के वृक्ष का पूजन व केला का दान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सत्यनारायण व्रत कथा श्रवण कर भी भगवान विष्णु की पूजन आराधना की जाती है। मान्यता है निर्जला एकादशी का व्रत करने से आयु व आरोग्य की वृद्धि होती है। काशी में इस दिन श्रद्धालु कलश यात्रा निकालकर बाबा विश्वनाथ का गंगा जल से अभिषेक करते हैं।
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