ग्रहण के बाद
एक बुरा रिश्ता जिंदगी पर ग्रहण की तरह होता है। जैसे ग्रहण कुछ समय बाद छंट जाता है, बुरे रिश्ते को भी छिटक देना चाहिए। जिंदगी एक ही बार मिलती है और जिंदगी की कीमत पर रिश्ते नहीं निभाए जाने चाहिए।
अभी-अभी निक्कू का फोन आया था, मम्मा कब आओगी? तुमने प्रॉमिस किया था संडे के लिए?
मोनिका उसे फुसलाने लगी, निक्कू अब तुम बच्चे नहीं रहे। मां की प्रॉब्लम समझा करो। जैसे ही छुट्टी मिलेगी, फौरन आ जाऊंगी।
मोनिका ने कह तो दिया, लेकिन लगा कि वह अभी रो देगी। उसकी इसी भावुकता का तो फायदा उठाता रहा था हरीश। निक्कू अभी बच्चा ही था, महज दस साल का। पांचवीं में पढ रहा था। यह तो उसकी मजबूरी थी कि निक्कू को बोर्डिग स्कूल में डालना पडा था। नौकरी करते हुए वह निक्कू को नहीं संभाल पा रही थी।
उसने शादी के समय ही कहा था मम्मी! प्लीज आप पापा को समझाइए। उनका निर्णय गलत है। हरीश से मैंने बात की है, वह एक विफल आदमी है। ऐसे डिप्रेस्ड आदमी के साथ आगे परेशानी आ सकती है। क्या शादी जरूरी है? कुछ समय और इंतजार कर लीजिए। ऐसा न हो कि.. उसकी बात पर मम्मी नाराज हो गई थीं, मोनी तुम पहले से ऐसा कैसे कह सकती हो? इसी सोच के कारण चौंतीस की उम्र पार कर रही हो। क्या कमी है लडके में? सुंदर है, यू.ए.ई. में सेटल है, खानदानी है। तुम्हारे प्रोफेशन के लिए वहां नौकरी की भरमार है। हमें तो सब कुछ सही लग रहा है।
वह मम्मी की तरफ देखती रही। तो क्या अब उसके पास कोई चॉइस नहीं थी? हरीश उससे तीन साल छोटा था। लेकिन उसका हाव-भाव कुछ ऐसा था कि वह चाह कर भी शादी के लिए हां नहीं कह पा रही थी।
वह दुबई में कोई काम करता था। उसे अपने खानदान पर गर्व था। उसके अनुसार उसके पूर्वज कहीं के राजा थे, लेकिन अब उसे नौकरी करनी पड रही है। उसका बडबोलापन उसे खटक रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस राजा के वंशज की कौन सी ऐसी मजबूरी है जो तीन साल बडी लडकी से शादी कर रहा है। वह ऐसी सुंदर भी नहीं है कि कोई देखते ही हां कह दे, लेकिन मां-बाप के दबाव के आगे वह झुक गई। विवाह हो गया।
जल्दी ही उसके सामने सब साफ भी हो गया। हरीश दोबारा दुबई नहीं गया। शुरू में मोनिका ने इसे प्यार समझा, बाद में पूछने लगी, क्या आप अब दुबई नहीं जाएंगे?
हरीश चौंक कर रूठने की ऐक्टिंग करते हुए कहता, क्यों तुम्हें मेरा यहां रहना पसंद नहीं है? तुम चाहती हो कि मैं चला जाऊं और तुम्हें मुझसे छुटकारा मिल जाए..?
हर पत्नी की तरह मोनिका भी चाहती थी कि उसके पति का स्वाभिमान बना रहे, वह काम करे, लेकिन अकसर उसे लज्जित होना पडता। किसी तरह ख्ाुद को संभालती। जबर्दस्ती होंठों पर मुस्कान लाने का प्रयास करती, आप मेरी बात का उल्टा अर्थ लगाते हैं..।
क्यों तुम्हारी तनख्वाह कम है क्या..? अब देखो, मेरे हाथ में तो कुछ है नहीं, जब वीजा मिलेगा तभी तो जा पाऊंगा।
मोनिका के लिए हरीश का यह जवाब अप्रत्याशित था। धीरे-धीरे उसके चेहरे से शालीनता का नकाब हटने लगा। मोनिका को समझ आ चुका था कि इस आदमी ने उससे शादी ही इसलिए की थी कि आगे चलकर रोजी-रोटी की चिंता न करनी पडे। वह 21 साल की उम्र से नौकरी कर रही थी। शुरू में अच्छा लगता था कि माता-पिता पर बोझ नहीं है, आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है, मगर जल्दी ही उसकी खुशी काफूर हो गई। पापा की छोटी सी स्टेशनरी शॉप की आमदनी से बस किसी तरह परिवार की गुजर-बसर होती थी। उसकी नौकरी शुरू होते ही परिवार की उम्मीदें उससे बंध गई। दोनों छोटे भाइयों को उसने बैंक से लोन लेकर पढाया और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। लेकिन जिम्मेदारियां निभाते-निभाते उसकी शादी की उम्र आगे निकलती गई..।
हरीश खयाली पुलाव पकाता रहता। उसकी बातें कुछ इस तरह होतीं, देखो मोनी, एक थ्री बीएच के फ्लैट मिल रहा है 25 लाख में, शुरू में चार लाख ही जमा करने हैं, बाकी आसान किस्तों में अदा करना होगा। पांच साल बाद यह फ्लैट दुगनी कीमत का हो जाएगा..। कभी वह टैक्सी सर्विस चलाने की बात करता, शुरू में दो टैक्सी खरीद लें फिर धीरे-धीरे उन्हें बढाते रहें..।
मोनिका उसकी बात पर ध्यान नहीं देती। कुछ भी कहने पर हरीश भडक उठता, अरे इतने साल से नौकरी कर रही हो, क्या किया इतने पैसे का? अपने भाइयों पर लुटा दिया न? वे तो ऐश कर रहे हैं और तुम अपनी जरूरत तक पूरी नहीं कर पा रही..।
हरीश की बातें बर्दाश्त से बाहर हो जातीं तो वह उठ जाती। हरीश चिल्लाने लगता, मुझे सब मालूम है मोनिका, तुम आज भी अपना पैसा उन्हीं लोगों पर लुटाती हो। तुम्हारी नजरों में मेरी स्थिति एक नौकर जैसी है।
मोनिका जानती है कि इस ड्रामे का अंत कहां होगा। थोडी देर बाद हरीश गुस्से में बाहर निकलेगा और फिर घंटों बाद लौटेगा। तब तक काफी हद तक नॉर्मल हो चुका होगा। उससे सॉरी कहेगा। इसके बाद भी उसे यह दोष देना नहीं भूलेगा कि उसकी खामोशी से वह उत्तेजित हो जाता है, वर्ना वह उसे कोई तकलीफ नहीं देना चाहता। इसके बाद वह फिर मोनिका से पैसे मांगेगा..।
हरीश के माफी मांगते ही मोनिका कमजोर पडने लगती। यह कैसी मजबूरी है! दिन भर अस्पताल के वार्ड में मरीज और तीमारदारों की चख-चख से जूझो और घर पहुंचो तो वहां भी सुकून नहीं। इसी तरह दिन बीतते रहे। अब उनका एक बेटा निक्कू भी हो गया। वह अभी एक साल का था।
हरीश के कारण ही मासूम बच्चे को खुद से दूर करना पडा। मम्मी ने उसे समझाया था, बेटी हालात ऐसे हैं कि नौकरी तो तुझे करनी पडेगी। तू निक्कू को मेरे पास छोड जा। मैं इसे पाल लूंगी।
पापा अब भी स्टेशनरी शॉप चलाते थे, हालांकि भाइयों ने कई बार आग्रह किया कि वे आराम करें और उनके साथ रहें लेकिन वे कहीं नहीं जाना चाहते थे। पापा अपनी जगह सही थे। इस उम्र में भी वह इतने सक्रिय थे, यह अच्छी बात थी। निक्कू की जिम्मेदारी मम्मी-पापा ने ले ली, वर्ना उसके लिए नौकरी करना भी मुश्किल हो जाता। कभी-कभी वह सोचती कि हरीश उसकी जिंदगी में न आता तो वह सुकून का जीवन जी रही होती। उसका ब्लड प्रेशर बढने लगा, आंखों के इर्द-गिर्द डार्क सर्कल पडने लगे। उसका आत्मविश्वास खत्म होने लगा। वह खुद को असहाय समझने लगी। एक अदृश्य तनाव हर वक्त उसके इर्द-गिर्द पसरा रहता। वह चिडचिडी होती जा रही थी। अपने अस्पताल की सबसे बुरी नर्स बन गई थी।
हरीश उसे तलाक देने की धमकी देने लगा था और उसके खानदान को कोसने में कोई कसर नहीं छोडता। बार-बार कहता कि वकील से बात करेगा। शुरू में उसकी धमकी से वह घबरा जाती थी। उसे समाज में परित्यक्ता की स्थिति के बारे में सब कुछ मालूम था। अकेले रहना भी आसान नहीं है। इसी कारण हरीश की हर ज्यादती को स्वीकारती। लेकिन हरीश की मांगें निरंतर बढने लगीं। कहां से लाकर देती उसे इतना पैसा! हरीश अब अकसर अपने पैतृक घर जाने लगा, वहां उसका छोटा भाई रहता था अपने परिवार के साथ। मोनिका शादी के बाद कुछ दिन वहां रही थी। खंडहर सी हवेली, दिन-रात नशे में डूबा हरीश का छोटा भाई, थोडी-बहुत खेती बची थी, लेकिन उसकी देखभाल करने वाला कोई न था। हरीश के पिता कई साल पहले गुजर गए थे और मां ने दूसरी शादी कर ली थी। हरीश की एक सौतेली बहन थी, जो पढती थी। वह पढी-लिखी सलीके वाली लडकी थी। हरीश उससे भी कई बार पैसे मांगता। मोनिका समझ नहीं पाती कि हरीश इतने पैसों का क्या करता है? बाद में इस रहस्य से भी पर्दा हट गया। उसे सट्टे और जुए की लत थी । बहुत आघात लगा था मोनिका को..। मोनिका समझ गई थी कि हरीश उसकी जिंदगी में एक ग्रहण की तरह है और इससे जितनी जल्दी हो, छुटकारा पाना ही होगा।
दोपहर का समय था। सुबह से हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। यदि मन में खुशी होती तो मोनिका इसे एक खुशनुमा मौसम कहती। उसने दो दिन की छुट्टी ली थी। हरीश की मांगें पूरी करने के लिए मोनिका पर उधार भी चढ गया था। वह मां के पास जाना चाहती थी, लिहाजा सामान पैक कर रही थी। मां अब निक्कू को संभालने में असमर्थ थीं। वह बेटों के साथ रहना चाहती थीं। हरीश न होता तो मोनिका मां-पापा को साथ ले आती, लेकिन घर के बोझिल वातावरण से वह उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी।
..हरीश फिर से गुस्से में था क्योंकि मोनिका ने पैसे देने से इंकार कर दिया था। चिल्लाते हुए हरीश ने कहा, तुम्हारे साथ तो मैं रह ही नहीं सकता, अभी तुम्हें छोड दूंगा तो कहीं की नहीं रहोगी..। प्लीज तुम मुझे अभी छोड दो, मैं तुमसे मुक्ति चाहती हूं। दे दो तलाक मुझे, बोरिया-बिस्तर समेटो और मेरा घर छोड दो। बहुत सह लिया। मैं सोचती थी कि शायद वक्त के साथ तुम सुधरोगे, लेकिन मेरा सोचना गलत था। तुम जोंक की तरह मेरा खून चूस रहे हो, लेकिन अब बस! अब एक भी पल तुम्हें बर्दाश्त नहीं कर सकती.., मोनिका के भीतर न जाने कहां का उबाल आ गया था। वह लगातार बोले जा रही थी।
हरीश ने उसका ऐसा रूप कभी देखा ही नहीं था। वह तो हमेशा उसे एक चुप रहने वाली शांत स्त्री समझता था। मोनिका की तेज आवाज से वह हतप्रभ रह गया। उठ कर दूसरे कमरे में जाने लगा तो मोनिका की गरजती हुई आवाज फिर सुनाई दी, मिस्टर, तुम जल्दी करो, मुझे मेरे बच्चे के पास जाना है, इससे पहले तुम इस घर से निकलोगे..।
हरीश ठगा सा देखता रह गया..। वह धीरे-धीरे सामान पैक करने लगा। उसे लगा, शायद मोनिका को तरस आएगा, कुछ ही देर बाद उसका गुस्सा शांत हो जाएगा और वह माफी मांगेगी। सामान पैक करते हुए वह बोल रहा था, जा रहा हूं मैं। बहुत घमंड है न खुद पर तुम्हें, रहो अकेली। अब मैं वापस नहीं आऊंगा। नाक रगडोगी, तो भी नहीं।
..बूंदाबांदी रुक चुकी थी। मोनिका सोफे पर बैठी थी। हरीश तो घर से निकल गया, मगर मोनिका कहीं नहीं जा सकी। हरीश के जाते ही वह कटे पेड सी बिस्तर पर निढाल हो गई। भीतर का लावा अब आंसुओं के रूप में बहने लगा था। वह फफक कर रो रही थी।
दो दिन तक घर में ही पडी रही। मां के पास भी नहीं गई। उसे लगता था हरीश किसी भी पल यहां लौट आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह अपने निर्णय को लेकर असमंजस में थी। ऐसा करने का उसका मकसद नहीं था, लेकिन जो कुछ हुआ, वह एक क्षणिक आवेग में हो गया और बरसों की छिपी यातना गुस्से में बाहर निकल गई। मगर इसके लिए अब उसे पछतावा नहीं था।
उधर हरीश ने सोचा कि मोनिका दिल की मुलायम है, गुस्सा शांत होते ही उससे माफी मांगेगी और लौट आने को कहेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मोनिका धीरे-धीरे सामान्य होने लगी थी। उसे लगता कि वह वर्षो से जिस रिश्ते को ढो रही थी, उससे मुक्त होकर हलकी हो गई है। अगली छुट्टियों में वह निक्कू को साथ ले लाई थी। एक हफ्ते की छुट्टी मां-बेटे ने साथ बिताई। कुछ ही दिन बाद मोनिका की सौतेली बहन का फोन आया, भाभी अब ग्ाुस्सा थूक दीजिए। पति-पत्नी में छोटा-मोटा झगडा तो होता रहता है। हरीश भैया भी अपनी गलती का एहसास कर रहा है। वह परेशान है, आप उससे फोन पर बात कर लें..। मोनिका ने ननद की बातें ध्यान से सुनीं। उसे बरसों के घाव दिखाना चाहती थी, लेकिन प्रत्यक्ष में इतना ही बोल पाई, देखो, हरीश नाम के किसी भी व्यक्ति से मैं कोई संपर्क नहीं रखना चाहती। मैं अब सिर्फ अपने बच्चे के लिए जीना चाहती हूं। मैंने फैसला लेने में देर तो की, लेकिन अब इस पर अडिग रहना चाहती हूं। आपका मेरे घर में स्वागत है, लेकिन प्लीज हरीश का जिक्र मुझसे आयंदा कभी मत करिएगा..।
मोनिका ने फैसला ले लिया। निक्कू को बोर्डिग स्कूल में डाला। मुश्किल तो था, मगर बूढे माता-पिता पर वह और बोझ नहीं डालना चाहती थी। लगा, मानो जिंदगी में ठहराव आ गया है। ग्रहण की छाया से मुक्त चांद की तरह हो गई है उसकी जिंदगी..।
गोविन्द उपाध्याय