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मुआवजा

रोज किसी न किसी दुर्घटना की खबर आती है और फिर भुला दी जाती है। लेखिका के बारे में : अध्यापन से जुड़ी सुधा गोयल का एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुका है।

By Edited By: Published: Tue, 09 Aug 2016 02:03 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2016 02:03 PM (IST)
आलिया की किस्मत ने एक बार फिर उसे धोखा दे दिया। कोठरी के दरवाजे की चौखट पर निढाल खडी वह अशरफ को जाते देख रही थी। अशरफ, उसका शौहर केवल तीन शब्दों- तलाक, तलाक, तलाक की गोली दाग कर उसे अधमरी अवस्था में छोड कर जा रहा था। तीन बिलखते बच्चों ने उसे सहारा देने की नाकाम कोशिश की पर वे इतने छोटे थे कि उठते-गिरते और रोने लगते। यह दूसरा अवसर था, जब उसे शौहर के बिछोह का दु:ख सहना पड रहा था। पहला शौहर किसी अमीरजादे की गाडी का शिकार हो गया था। उस दिन भी खबर मिलने पर आलिया इसी तरह चौखट पर निढाल खडी सूचना देने वाले को शून्य होकर निहार रही थी। उसकी गोद में एक बेटा था। फिर कुछ सालों के लिए जिंदगी ने उसे ऐसे दिन दिखाए, जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी आलिया की मदद को शहर के अखबार वाले, सामाजिक संस्थाएं और टीवी वाले आगे आए और उस अमीरजादे को कोर्ट तक घसीट कर ले गए। आखिरकार आलिया के लिए 15 लाख रुपये का मुआवजा तय हुआ। एक गरीब परिवार के लिए यह बडी रकम होती है। आलिया को इतना ही मालूम था कि यह पैसा मिल गया तो उसके बच्चे की जिंदगी सुधर जाएगी। ...शौहर के गम पर सुरक्षित भविष्य की चादर चढा आलिया आगे बढ ही रही थी कि अशरफ के रूप में एक ठंडी हवा का झोंका उसकी जिंदगी में फिर से एक बार आ गया। अशरफ उसका दूर का रिश्तेदार था। उसने न सिर्फ आलिया के साथ निकाह किया, बल्कि उसे रानी बना कर रखा। उनके दो बच्चे हुए। तीन बच्चों और शौहर के साथ आलिया अपनी पिछली जिंदगी भूल आगे बढऩे लगी थी। कहते हैं, दुख की उम्र और तीव्रता तभी तक रहती है, जब तक सुख की दस्तक न हो। सुख की सेज सजी नहीं कि दुख दुम दबा कर भाग जाता है। आलिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ....लेकिन पहले शौहर की हत्या के 12 साल बाद फिर एक फैसला आया कि वह दुर्घटना महज एक संयोग थी और कार चालक का उसमें कोई हाथ ही नहीं था। वह निर्दोष था, इसलिए अब आलिया को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा, कार के ड्राइवर को भी सजा नहीं मिलेगी। इस एकाएक आए फैसले से आलिया हतप्रभ थी और अशरफ....निराश, नाराज और गमजदा था। इसी मन:स्थिति में न जाने क्या सोच कर उसने आलिया को तलाक, तलाक, तलाक कहा और तीर की तरह घर से निकल गया। उसने एक बार भी यह नहीं सोचा कि आलिया तीन बच्चों के साथ उस मझधार में निपट अकेली कैसे लडेगी। आलिया अपनी कोठरी के दरवाजें की चौखट पर निढाल खडी एक बार फिर से अपने शौहर को दूर जाते देख रही थी। पहले पति के साथ आलिया एक कमरे के घर में रह कर भी बेहद खुश थी। इसके बाद अशरफ जिंदगी में आया तो उसने रसोईघर की भी व्यवस्था कर दी। आलिया बहुत-बहुत खुश हो गई। अशरफ के दोनों बच्चों की जचगी वह हंसते-हंसते इसीलिए झेल गई कि अशरफ उससे बेपनाह मुहब्बत करता था। फल-दूध-दवा, राशन, किताब-कॉपी, कपडे-लत्ते के लिए कभी आलिया को कहना नहीं पडा। अशरफ ने कभी किसी शिकायत का मौका नहीं दिया। वह उसके सोचने से पहले ही घर में हर सामान मुहैया करा देता। हां, एक बार उसने पूछा जरूर था कि अशरफ क्या काम करता है? वह भी इसलिए कि बहुत मेहनत करने के बावजूद पहले शौहर के साथ आलिया के हाथ हमेशा तंग ही रहा करते थे। फिर भी आलिया अपनी जिंदगी में खुश थी। तंगी, फटेहाली या भुखमरी में भी कभी उसके पहले पति ने उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की। वह नशे या किसी भी बुरी लत से दूर था। काम से सीधा घर लौटता, रूखी-सूखी खाता और आलिया को बांहों में भरकर एक गहरी नींद में डूब जाता। एक दिन आलिया ने अशरफ से पूछा कि वह क्या काम करता है? अशरफ ने तुरंत एक प्रश्न दाग दिया कि क्या आलिया को कोई कमी महसूस होती है? कुछ भी चाहिए तो बताए, काम से उसे क्या लेना-देना? फिर उसने आलिया को कसकर गले लगा लिया और शरारत पर उतर आया। आलिया को भी लगा कि उसके लिए तो अशरफ का प्यार ही सब-कुछ है, उसके काम से उसे क्या लेना-देना। ....फिर आज यह क्या हो गया? एकाएक उसके शौहर को क्या हो गया? आलिया समझ नहीं पा रही थी कि यह खबर उसे इतना क्यों दहला गई? ये तीन शब्द बोलकर न जाने अशरफ कहां चला गया। अडोस-पडोस वाले आलिया को ताना देते हुए कहते, अरे ये तो बडा लालची निकला, धन का लोभी! बीवी पर पैसे तो इस तरह लुटाता था जैसे कोई लॉटरी लगी हो। कोई दूसरा तर्क प्रस्तुत करता, लॉटरी ही तो लगी थी। 15 लाख की रकममिलने की खबर क्या किसी लॉटरी से कम है? अचानक वह रकम हाथ से निकलने का गम वह सह न पाया होगा....। पडोसियों की बात पर आलिया को कभी भी विश्वास न हुआ। वह जानती है, उसका खुदा जानता है कि दोनों मियां-बीवी एक-दूसरे को मन की गहराइयों से चाहते थे। क्या प्यार का धागा इतना कच्चा था कि हलका सा झटका भी न सह सके! मासूम बच्चों का ही खयाल किया होता अशरफ ने? बच्चों से तो अशरफ को ऐसा प्यार था कि कभी-कभी उसे भी जलन होती। उसके अपने बच्चे हैं या कासिम (आलिया का पहला शौहर) के, उसने कभी किसी में फर्क नहीं किया। कहते हैं, नियति के लिखे को टाला नहीं जा सकता। किस्मत में जितना भोगना लिखा है, उतना तो भोगना ही होगा। इसके आगे कोई सवाल-जवाब काम नहीं आते। एक बार फिर से दुख का अंधेरा आलिया के जीवन को ढकने लगा। अशरफ ने उसे सीपी में मोती की तरह बाहरी दुनिया से सहेज कर रखा था। अब न तो सीप की सुरक्षा थी, न गर्माहट। आलिया बिखर सी गई। यथार्थ के थपेडों ने उसकी डगमगाती नैया को डुबोने में कोई कसर न छोडी। जल्दी ही उसे पता चलने लगा कि अशरफ ने किस-किस से उधार लिया है। तगादा करने वालों का सिलसिला बढऩे लगा। हर रोज कोई न कोई आ धमकता। यहां तक कि घर का सामान बिकने की नौबत आ गई। हालात के थपेडों ने आलिया को मरणासन्न छोडऩे में कोई कसर न छोडी थी कि एक दिन उसके पास थाने से एक सिपाही पहुंचा। उसे बताया गया कि थाने आकर कुछ शिनाख्त करनी है। थाने का नाम सुनते ही आलिया के हाथ-पैर फूल गए। बुरे-बुरे खयाल दिल में आने लगे। उसके परिवार में आज तक किसी ने थाने का मुंह न देखा था। पहले कासिम और फिर अशरफ... दो-दो शौहर का दु:ख झेल रही आलिया को एक और नए दु:ख की आहट भी दहलाने के लिए काफी थी। रात में गहरी नींद के बावजूद वह बच्चों को टटोलती रहती और यदि कोई पानी पीने के लिए भी उठता तो उसके कलेजा धक से रह जाता। जब तक बच्चे वापस आकर उससे लिपट कर सो नहीं जाते, उसे चैन न पडता। ऐसे में थाने से पहुंची खबर उसके लिए किसी वज्रपात से कम न थी। डरी-सहमी आलिया थाने पहुंची तो सफेद कपडा हटाकर जिसका मुंह उसे दिखाया गया, उसे देख कर वह हतप्रभ रह गई। भाग्य का यह कैसा खेल था? वह अशरफ ही था। हो चुकी शिनाख्त। इसीलिए तो उसे बुलाया गया था। अब वह जा सकती है, आगे की कार्यवाही होती रहेगी। उसे खबर मिलती रहेगी लेकिन आलिया तो कटे पेड की तरह वहीं धम से गिर पडी। एक बार फिर उसके गाल पर बेवा नाम का तमाचा पडा था। इस बार भी एक्सीडेंट.... या खुदा अभी और कितने इम्तिहान बाकी हैं? होश आया तो आलिया ने खुद को अपने घर के बिस्तर पर पाया। बच्चे उससे लिपटकर रो-रोकर उसे उठाने की कोशिश में लगे थे। उसे बस एक ही दु:ख साल रहा था कि घर छोडऩे के पहले अशरफ ने उसे तलाक क्यों दिया? अपने आगोश में न सही, अपने नाम के साथ तो जी लेने देता उसे। आखिर क्या कसूर था उसका? उसका कसूर बस यही था कि उसके निश्छल प्रेम के प्रतिदान में अशरफ ने भी उससे बेपनाह मुहब्बत की थी। हां, जब उसने निकाह किया था, तब कहींन कहीं 15 लाख रुपये का लालच उसके मन में जरूर आया था। निकाह के बाद उधार पर उधार लेकर सुख-सुविधाएं मुहैया कराते-कराते वह आलिया के मोहजाल में इस कदर फंसता चला गया कि आलिया के दुख या अभाव का विचार भी उसे दहला देता। शायद इसीलिए जब यह खबर मिली कि उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलेगा तो उसने एक योजना बनाई ताकि आलिया की जिंदगी पर आंच न आए। खुद अशरफ की जिंदगी भले ही न रहे, मगर उसकी जान (आलिया) सलामत रह सके। अगर वह किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता तो आलिया को मुआवजा मिल सकता था और आलिया अपने सभी कर्ज चुका कर बच्चों को बेहतर जिंदगी दे सकती थी। अशरफ ने अपने जीवन का भारी बीमा करवा रखा था, जिसके हिसाब से दुर्घटना या किसी अप्राकृतिक मौत में बीमे की संपूर्ण राशि आलिया को मिलती। तेज रफ्तार ट्रक से अशरफ की दुर्घटना मात्र एक बहाना था आलिया को बीमा की राशि दिलवाने का। वास्तव में तो अशरफ खुद ही ट्रक की चपेट में आया था। तलाक देने के पीछे भी शायद उसकी मंशा यही रही होगी कि आलिया किसी भी बंधन से मुक्त होकर अपनी आगे की जिंदगी आराम से जी सके। अगर वह किसी का हाथ थामना चाहे तो भी उसे कोई परेशानी न हो। इस बार भले ही उसे मुआवजा न मिले लेकिन अशरफ के जीवन बीमा की राशि तो मिल ही जाएगी। मगर क्या यह सब आलिया को मंजूर होगा? शायद कभी नहीं...। क्या उसे धन-दौलत की लालसा थी? नहीं....आलिया के लिए तो प्रेम के दो-चार पल ही काफी थे। उसकी दुनिया शौहर और बच्चों के इर्द-गिर्द शुरू होती और वहीं खत्म हो जाती थी। अब तो उसकी दुनिया ही वीरान हो गई थी। स्त्री के प्रेम को भला कोई समझ सका है? कोई ले पाया है थाह उसके मन की?

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