ये चुनौतियां भी हसीन हैं
मातृत्व चुनौतियों से भरी हसीन राह है। इससे गुज़्ारने के बाद ही कोई स्त्री सफल मां बन पाती है। नौकरीपेशा मां के लिए घर-बाहर का तालमेल बिठाना थोड़ा मुश्किल तो है, लेकिन सकारात्मक सोच के साथ कुछ प्रयास किए जाएं तो यह राह कुछ आसान हो सकती है।
मातृत्व चुनौतियों से भरी हसीन राह है। इससे गुज्ारने के बाद ही कोई स्त्री सफल मां बन पाती है। नौकरीपेशा मां के लिए घर-बाहर का तालमेल बिठाना थोडा मुश्किल तो है, लेकिन सकारात्मक सोच के साथ कुछ प्रयास किए जाएं तो यह राह कुछ आसान हो सकती है।
वर्ष 2012 में यूएस के श्रम विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां की लगभग 56 प्रतिशत मांएं या तो नौकरी कर रही हैं या नौकरी ढूंढ रही हैं। मगर भारतीय महानगरों में पिछले कुछ समय से ऐसी लडकियों की संख्या बढी है, जो शादी के बाद करियर छोड रही हैं या ऐसा करने की मंशा रखती हैं। पिछले वर्ष एक भारतीय वेबसाइट के सर्वे के अनुसार जिन मांओं ने शादी के बाद काम जारी रखा, उन्हें परिवार, पार्टनर, डे केयर या बेबी सिटिंग जैसी सभी सुविधाएं मिलीं।नौकरी की ज्ारूरत और करियर को आगे बढाने की महत्वाकांक्षा भी वे कारण हैं, जिनके चलते स्त्रियों ने काम जारी रखा। जिन स्त्रियों ने बच्चा होने के बाद नौकरी छोडी या लचीली कार्य-स्थितियों वाली नौकरी को प्राथमिकता दी, इनमें अधिकतर वे थीं, जिन्हें परिवार या जीवनसाथी का सपोर्ट नहीं मिला, या जिनके लिए घर या बच्चे पहली प्राथमिकता थे।
कुछ समय पहले यूएस की फस्र्ट लेडी मिशेल ओबामा ने एक कंपनी में हुई वर्कर्स मीटिंग में अपनी वे यादें बांटीं, जब वह छोटे बच्चों के साथ नौकरी कर रही थीं। उन दिनों पति-पत्नी अलग-अलग शहरों में थे। बेटी चार महीने की थी, तभी उनकी बेबी सिटर चली गई। उनके पास नौकरी का प्रस्ताव आया तो इंटरव्यू में वह बच्ची को साथ लेकर गईं, इसके बावजूद उन्हें नौकरी मिली, क्योंकि कंपनी ने उनके परिवार को महत्व दिया। मिशेल ने कहा कि सहकर्मियों ने भी उन्हें सहयोग दिया। बच्चों या घर से जुडी किसी समस्या में सहयोगियों ने उनका काम संभाला। मिशेल कहती हैं, यदि स्त्रियों को थोडी सहूलियत और काम में लचीलापन मिले तो वे बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।
मातृत्व की चुनौतियां
अनुराधा नोएडा की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत हैं। हाल में ही उनकी बेटी हुई। तीन महीने के मातृत्व अवकाश के बाद कंपनी ने उन्हें वर्क फ्रॉम होम की सहूलियत दी। वह चाहती हैं कि कम से कम एक वर्ष वह बच्ची को पूरा समय दें और ब्रेस्टफीडिंग कराएं। उनके साथ सास-ससुर भी हैं, जो घर की अन्य ज्िाम्मेदारियों में हाथ बंटाते हैं।
मगर अनुराधा जैसी स्थितियां सबकी नहीं होतीं। घर-बाहर सामंजस्य बिठाना इतना आसान नहीं है। दिल्ली की 30 वर्षीय मार्केटिंग एग्ज़िक्यूटिव नेहा का बेटा हुआ तो वह बहुत ख्ाुश थीं। उन्होंने तीन-चार महीने बच्चे की पूरी केयर की। इसके बाद घर में बेबी सिटर का इंतज्ााम करने के बाद काम पर लौटीं। लेकिन उनकी ख्ाुशी अधिक दिन तक नहीं रह सकी। बच्चा बीमार रहने लगा। डॉक्टर ने बच्चे के कमज्ाोर इम्यून सिस्टम को देखते हुए नेहा को कम से कम एक वर्ष तक ब्रेस्टफीड कराने की सलाह दी। नौकरी के साथ यह संभव नहीं था, लिहाज्ाा नेहा को मजबूरी में करियर छोडऩा पडा।
दिल्ली की मधु चाहती थीं कि बच्चे को ज्य़ादा समय दे सकें और ब्रेस्टफीडिंग करा सकें। वह सुबह बच्चे के साथ घर छोडतीं। ऑफिस के पास ही एक क्रेश में उन्होंने बच्चे को रखा। दिन में एक-दो बार क्रेश जाकर वह बच्चे को फीड करातीं, मगर यह अरेंजमेंट लंबे समय तक नहीं टिक सका। बच्चे का स्वास्थ्य तेज्ाी से गिरने लगा और दोहरी ज्िाम्मेदारियां निभाने वाली मधु का तनाव बढऩे लगा। हार कर उन्होंने नौकरी छोड दी।
सी-सॉ का खेल
प्रेग्नेंसी कठिन पीरियड है, मगर नौ महीने की तमाम परेशानियां स्त्री सहन कर लेती है। असल परीक्षा शुरू होती है प्रसव के बाद। मातृत्व की चुनौतियां गर्भावस्था से कहीं ज्य़ादा मुश्किल हैं। आज के समय में तो ये और भी कठिन होती जा रही हैं। सिंगल फेमिली, भरोसेमंद हेल्पर न मिलना और नौकरियों में बढती जा रही मल्टी-टास्किंग की ज्ारूरत ने मातृत्व और करियर को सी-सॉ का खेल बना दिया है। हर मां के लिए बच्चा सबसे बडी प्राथमिकता होता है। दूसरी ओर करियर से ब्रेक लेने का अर्थ है रेस में पीछे रहना। कई बार स्त्रियां आत्मविश्वास खो देती हैं। उन्हें लगता है कि प्रतिस्पर्धी दुनिया के साथ वे कदम मिलाने में असमर्थ हैं।
मुश्किलों के बीच राह
सामंजस्य मुश्किल तो है, लेकिन इस कठिन समय में भी सकारात्मक सोच और अच्छे समय की आशा कई समस्याओं से उबरने में मदद दे सकती है। दिनचर्या बदलने, पारिवारिक-सामाजिक संबंधों को सुधारने और पति, दोस्तों व रिश्तेदारों से मदद मांगने से बहुत सी समस्याएं हल हो सकती हैं।
दिनचर्या में बदलाव
नई मां के जीवन में भरपूर नींद एक लग्ज्ारी ही है। यदि वह नौकरी करती हो तो उसकी दिनचर्या और भी अव्यवस्थित हो जाती है। बच्चे के साथ सोने-जागने का पूरा ढर्रा ही बदल जाता है। बच्चे के लिए 14-15 घंटे और उसकी मां के लिए 7-8 घंटे की नींद ज्ारूरी है। इसका एक हल है-बच्चे को सुलाने के 2-3 घंटे बाद ख्ाुद भी सो जाएं। इन दो-तीन घंटे में घर के कामकाज निपटाएं, अगले दिन की तैयारी करें। इसी तरह सुबह की दिनचर्या को व्यवस्थित करें। नौकरीपेशा लोगों के लिए सुबह का समय सबसे व्यस्त होता है। सुबह बच्चे के उठने से 2-3 घंटे पहले उठें, ताकि उस समय घर के अन्य काम निपटा लें।
व्यायाम
व्यायाम से प्रसव के बाद शरीर में जमा हुई अतिरिक्त चर्बी को कम करने में मदद मिलती है। इससे ऊर्जा स्तर बढता है और तनाव कम होता है। एक हफ्ते में कम से कम 3-4 दिन 30 मिनट का वर्कआउट ज्ारूर करें। बाहर जाने का समय न हो तो एक-दो एक्सरसाइज्ार घर में ही रखें। समय प्रबंधन सीखें। मसलन, धीमी आंच में खाना चढा कर एक्सरसाइज्ा की जा सकती है। बच्चा थोडा बडा हो जाए तो शाम को उसके साथ हलकी-फुलकी वॉक की जा सकती है। थोडा समय एकांत में रहें और ध्यान करें।
खानपान
मां और बच्चे को हेल्दी डाइट मिलनी चाहिए। प्रसव के बाद मां को खानपान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। दिन में 3-4 फल, 3-4 सर्विंग हरी सब्ज्िायां, साबुत अनाज नई मां के लिए ज्ारूरी है। प्रसव के कुछ समय बाद तक फास्ट फूड या तली-भुनी चीज्ाों से दूर रहना ही अच्छा है। वसा के सेवन से भी बचना ज्ारूरी है।
ब्रेस्टफीड कराएं
सभी डॉक्टर्स इस बात पर सहमत हैं कि बच्चे के लिए ब्रेस्टफीड सर्वोत्तम होता है, ख्ाासतौर पर शुरू के छह महीने। तीन महीने की मैटर्निटी लीव पीरियड में बच्चे को पूरा समय दें। आजकल कई कंपनियां अपनी स्त्री कर्मचारियों को घर से काम करने, पार्ट टाइम काम करने या अवैतनिक अवकाश जैसे विकल्प भी प्रदान कर रही हैं। कुछ समय के लिए इन विकल्पों का चुनाव भी किया जा सकता है।
मुंबई के चियर्स चाइल्ड केयर अस्पताल की डॉ. प्रीति गंगन (एमबीबीएस, डीसीएच, आइबीसीएलसी) कहती हैं, 'आजकल कई मांएं ब्रेस्ट पंप्स का इस्तेमाल करने लगी हैं, ताकि जब वे घर से बाहर हों, बच्चा मां को मिस न करे और उसे पूरा पोषण मिल सके। भारत में अभी इसकी लोकप्रियता कुछ कम है। आजकल बाज्ाार में इलेक्ट्रिक, मैनुअल, सिंगल या डबल ब्रेस्ट पंप्स के विकल्प भी उपलब्ध हैं। ब्रेस्ट पंप बच्चे की ज्ारूरत के हिसाब से बनाए जाते हैं। अब मेडिकल टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस हो चुकी है। पंप की मदद से बच्चे के लिए ब्रेस्टमिल्क भी स्टोर किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए बहुत सावधानी व सफाई रखने की ज्ारूरत पडती है।'
बचें अपराध-बोध से
पहली बार बच्चे को छोड कर काम पर जाना हर मां के लिए पीडादायक होता है। कई बार मां को अपराध-बोध होने लगता है और इससे वह तनावग्रस्त होने लगती है। दबाव बढता है और इसका बच्चे और करियर दोनों पर विपरीत प्रभाव पडता है। ख्ाुद को माफ करना, अपराध-बोध से बाहर निकलना और परफेक्शन के जुनून से उबरना नौकरीपेशा मां के लिए बहुत ज्ारूरी है। तनाव व दबाव से बचने के लिए सप्ताह में 3-4 बार योग व ध्यान करें, बच्चे को लोरी या गीत सुनाएं, दोस्तों को फोन करें और कभी-कभी पार्लर जाएं, स्पा लें। बच्चे की बीमारी या अन्य समस्याओं के लिए ख्ाुद को दोषी ठहराने से बचें। स्थितियों को सरल-सहज बनाने की कोशिश करें। पेरेंट्स को साथ रखें, पति की मदद लें, घर में हेल्पर रखें, कुछ रेडीमेड ब्रेकफस्ट रखें (म्यूसली, कॉर्न, फ्रूट्स, जूसेज्ा)। डिप्रेशन महसूस हो, सोने-जागने, खाने-पीने या व्यवहार में अस्वाभाविक परिवर्तन दिखे और इसे स्वयं ठीक न कर पा रही हों तो तुरंत एक्सपर्ट की सलाह लें। अपना ध्यान रखें, तभी नवजात शिशु और करियर पर ध्यान दे सकेंगी।
इंदिरा राठौर