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यूं ही चलता रहे कारवां

टीम भावना की अहमियत स्टूडेंट लाइफ से ही पता चलने लगती है। स्कूल- कॉलेजों के विभिन्न ग्रुप्स की व्यवस्था की कमान स्टूडेंट्स को सौंप दी जाती है। इससे टीम स्पिरिट को भी प्रोत्साहन मिलता है।

By Edited By: Published: Tue, 01 Mar 2016 03:03 PM (IST)Updated: Tue, 01 Mar 2016 03:03 PM (IST)
यूं ही चलता रहे कारवां

टीम भावना की अहमियत स्टूडेंट लाइफ से ही पता चलने लगती है। स्कूल- कॉलेजों के विभिन्न ग्रुप्स की व्यवस्था की कमान स्टूडेंट्स को सौंप दी जाती है। इससे टीम स्पिरिट को भी प्रोत्साहन मिलता है।

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अकेले काम करना तो बहुत आसान होता है, पर जब बात टीम मेें काम करने की आती है तो हर कोई हमेशा कंफर्टेबल महसूस नहीं करता है। जब ग्रुप में कोई असाइनमेंट दिया जाता है या स्टूडेंट्स अपना बैंड या कल्चरल ग्रुप बनाते हैं तो उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडता है। हर मेंबर का अपना शेड्यूल होता है, ऐसे में सबके साथ कोऑर्डिनेट करना बहुत बडा काम होता है। उसमें भी जब सारे सदस्य एक ही क्लास, बैच या एज ग्रुप के हों तो समस्या और बढ जाती है।

अहम है टीमवर्क

टीम में काम करने की आदत होना व्यक्तित्व के सही विकास के लिए बहुत ज्यादा जरूरी होता है। एकल परिवारों और गैजेट्स के युग में ग्रुप एक्टिविटीज अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। टीम में प्रोजेक्ट या कोई एक्टिविटी करने से लोगों को परखना और समझना आसान हो जाता है। उसके साथ ही हर तरह के लोगों को डील करने की क्षमता भी खुद-ब-खुद आने लगती है। स्टूडेंट्स के लिए टीम में काम करना हर लिहाज से सकारात्मक रहता है। इससे वे खुद को प्रोफेशनल लाइफ के लिए भी तैयार कर लेते हैं। अकेले काम करने के बजाय जब वे किसी ग्रुप का हिस्सा होते हैं तो उस प्रोजेक्ट को एंजॉय करने के साथ ही उससे काफी कुछ सीखते भी हैं। टीम स्पिरिट की भावना से व्यवहार में भी बदलाव आता है।

जब दोस्त ही लीडर हो...

ग्रुप प्रेजेंटेशंस, नुक्कड नाटक, कॉलेज बैंड, ग्रुप डांस आदि में अकसर टीम का लीडर साथ का ही कोई होता है। उसे बिना लीडर बने अपनी टीम को लीड जो करना होता है। एक ही उम्र का होने के बावजूद उसे बाकी सदस्यों से ज्यादा मच्योर बनना पडता है क्योंकि उसे सबको साथ लेकर चलना हनेता है। दूसरों से ज्यादा काम तो करना ही पडता है, अहम फैसलेऔर जिम्मेदारियां भी लेनी पडती हैं। माना कि कुछ भी सही या गलत होने पर कहा लीडर को ही जाएगा, पर टीम में होने के नाते हर किसी को अपना रोल समझना चाहिए। ग्रुप वर्क होने के कारण वह प्रोजेक्ट सभी का गोल होना चाहिए, किसी एक का नहीं।

हर किसी को करें आजाद

जब सब मिलकर काम करते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं तब उन्हें उनके काम के लिए आजाद करना आसान हो जाता है। किसी को दायरों में बांधकर तो वैसे भी कुछ नहीं करवाया जा सकता, इसलिए बेहतर है कि सब पर विश्वास कर उन्हें उनके हिस्से की जिम्मेदारी दी जाए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी सदस्य आउट ऑफ टीम महसूस न करे। टीम की सफलता के लिए सबके साथ एक समान व्यवहार करना बहुत जरूरी होता है। जहां भी कोई अटके, उसकी पूरी मदद करने की कोशिश की जानी चाहिए। सबको एक-दूसरे के साथ कोऑपरेट और कोऑर्डिनेट करना चाहिए।

मुश्किलों में ढूंढें राह

जब अलग-अलग इंट्रेस्ट और बिहेवियर के लोग साथ काम कर रहे हों तो समस्याएं होना स्वाभाविक है, खासकर तब जब सभी अपरिपक्व और हमउम्र हों। हर कोई निष्ठावान हो, यह बिलकुल भी जरूरी नहीं है, पर उसके टीम में होने का मतलब है कि उसमें काबिलीयत है। हर सदस्य का नेचर और बिहेवियर दूसरे से अलग ही होगा, कोई बहुत हंसमुख होगा तो कोई बिलकुल सीरियस... ऐसे में सबको मैनेज करना मुश्किल होता है। किसी भी तरह की समस्या आने पर सब मिलकर उसे सुलझााने का प्रयास करें, न कि हार मान कर अलग हो जाएं। जरूरत पडऩे पर किसी सीनियर या टीचर से डिस्कस करना भी बेहतर ऑप्शन होता है।

समझें अपनी जिम्मेदारी

हर किसी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। ऐसा न हो कि बार-बार उन्हें बताना या समझाना पडे। कई ग्रुप प्रोजेक्ट्स का हिस्सा व लीडर रहे शिवम दीक्षित इस बारे में कहते हैं, 'कोई भी ग्रुप इवेंट हो, वैसे तो उसमें सारे मेंबर्स की बराबर की जिम्मेदारी बनती है, पर लीडर की जिम्मेदारी सबसे कुछ परसेंट ज्यादा तो होती ही है। ऐसे में वह दूसरों पर अपनी मेहनत नहीं थोप सकता है। सब साथ वाले हों तो समस्या यह आती है कि लीडर उन्हें किसी भी काम के लिए ऑर्डर नहीं कर सकता है, वह रिक्वेस्ट या सजेस्ट ही कर सकता है। हर मेंबर को अपने हितों के साथ ही टीम के गोल को भी समझना चाहिए। सक्सेस तभी मिल सकती है जब सबका अल्टीमेट गोल एक ही होगा। उस समय दोस्ती और दुश्मनी से अलग हट कर सबको एक समान डील करना पडता है। जिम्मेदारी मिलने के बाद एटिट्यूड अपने आप ही बदल जाता है। कोई भी इवेंट जीतने के बाद उसका सारा श्रेय मैं हमेशा पूरी टीम को देता हूं।'

टीम बनने का मतलब ही यह होता है कि सब सदस्य आपस में परिचित हों और साथ काम करने को लेकर सहज हों। दिन में प्रैक्टिस के बाद अगर ग्रुप्स में चैटिंग के समय भी आप अपने काम की चर्चा करेंगे तो प्रैक्टिस अच्छी तरह हो सकेगी। प्रैक्टिस के दौरान हर मोमेंट को जीने की कोशिश करें। किसी भी आइडिया के प्रति नेगेटिव एटिट्यूड न रखें, सबकी बात सुनने के बाद ही पूरी प्लैनिंग करें। जो जिस काम में दक्ष हो, उसे वही सौंपें। एक टीम प्रोजेक्ट की सफलता उसके हर सदस्य के कंधे पर टिकी होती है। हर कठिनाई का साथ मिलकर सामना करने से आप हार कर भी जीत सकते हैं।

व्यवहार हो दोस्ताना

मैं बहुत फ्रेंड्ली और कन्विंसिंग हूं, इसलिए टीम को मैनेज करना मेरे लिए बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। कभी-कभी दिक्कतें आ जाती हैं, आपस में लडाइयां भी हो जाती हैं। ऐसे मौकों पर पहले तो खुद से ही सब ठीक करने की कोशिश करता हूं, अगर कभी बात बढ जाती है तब सीनियर्स या टीचर्स से मदद लेता हूं। लीडर होने के नाते मैं अपनी टीम को संभालना अपनी जिम्मेदारी समझता हूं। प्रैक्टिस वाले दिन सुबह ही सारे मेंबर्स को कॉल कर इन्फॉर्म करता हूं। मैं सबको इतनी प्रैक्टिस करवा देता हूं कि घर जाकर उन्हें स्क्रिप्ट की तरफ देखना भी न पडे। व्हॉट्सएप ग्रुप पर भी हम सब आपस में नुक्कड नाटक के डायलॉग्स में ही बात करते हैं। इवेंट होते ही सब पार्टी करते हैं जिससे कि सारी थकान खत्म हो जाए।

मंजिल श्रीवास्तव

दीपाली पोरवाल


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