यात्रा जिनसे मिली सीख
व्यस्त दिनचर्या में •ारा सी छुट्टी मिली नहीं कि लोग निकल पड़ते हैं यात्राओं पर। यात्राएं बहुत-कुछ सिखाती हैं लेकिन कई बार बुरे अनुभव भी होते हैं। कभी कोई इमर्जेंसी भी आ जाती है। सफर में ऐसी स्थितियों का सामना कैसे किया, बता रहे हैं सखी के रीडर्स।
नई-नई जगहों को एक्सप्लोर करना किसे अच्छा नहीं निकलता। हर कोई चाहता है कि सारी दुनिया नाप ले। लेकिन कभी पैसे की दिक्कत, कभी समय की किल्लत तो कभी पारिवारिक ज्िाम्मेदारियां ऐसा करने से रोक देती हैं। हालांकि जब इन सबके बीच घूमने का समय मिल जाए तो मन उत्साहित हो जाता है और शौकीन लोग निकल पडते हैं यात्राओं पर। मंज्िाल की सही जानकारी न हो, साथी यात्री समझदार न हो, सफर की तैयारी में कोई कमी रह जाए या एकाएक कोई आपात स्थिति आ जाए तो सुहाने सफर को बुरे अनुभव में बदलते देर नहीं लगती। कुछ अनुभव साझा कर रहे हैं रीडर्स, ताकि उनसे सीखकर गलतियों से बचा जा सके।
धरी रह गई सारी प्लैनिंग
मैं महीनों से अपने एक दोस्त के परिवार के साथ घूमने की प्लैनिंग कर रहा था। कार्यक्रम बन गया था। प्लैनिंग के अनुसार हम अपने व्हीकल से ड्राइव करके मनाली जा रहे थे। हम चार लोग थे। सफर अच्छा कट रहा था। तभी मनाली के आसपास कार का साइलेंसर चोक हो गया। जगह अनजान थी और आसपास कोई मेकेनिक भी नहींथा। तब मैंने कार हेल्पलाइन पर फोन करना चाहा, लेकिन जहां हम थे, वहां नेटवर्क ही नहींथा। हमारे साथ दो लडकियां थीं। अंधेरा बढ रहा था। मुझे लडकियों की सुरक्षा को लेकर चिंता सता रही थी। हम चारों ने हिम्मत दिखाई और करीब एक किलोमीटर गाडी धकेलने के बाद हमें एक होटल दिखाई दिया। हमने तुरंत वहां चेक इन किया। इस पूरे हादसे से हमने एक सबक सीखा। दरअसल प्लैनिंग करते हुए हम ये भूल गए कि पहाडी इलाके में कार जितनी हलकी होगी, उतनी ही आसानी से ऊपर चढेगी। हमने कार में सामान का इतना बोझ डाल दिया कि वो बंद हो गई।
ट्रैवल कंपनी ने दिया धोखा
मुझे किसी पर्सनल काम से पेरिस जाना था। इसके लिए मैंने एक ट्रैवल कंपनी से ट्रैवल प्लैन ख्ारीदा। यात्रा की शुरुआत तो अच्छी हुई थी लेकिन जैसे ही मैं पेरिस इंटरनेशल एयरपोर्ट पहुंचा, मेरा बुरा समय शुरू हो गया। पैकेज के मुताबिक एयरपोर्ट के बाहर मुझे होटल तक पहुंचाने के लिए एक टैक्सी आने वाली थी। मैंने घंटे भर इंतज्ाार किया लेकिन कोई नहीं पहुंचा। थक-हारकर मैं टैक्सी हायर कर होटल पहुंचा। जहां दूसरी मुसीबत मेरा इंतज्ाार कर रही थी। होटल का जो रूम मुझे दिया गया था वह बिलकुल भी उस रूम की तरह नहींथा जैसा कि दावा किया गया था। मैं परेशान हो गया था। मैंने ट्रैवल कंपनी से इन असुविधाओं की शिकायत की लेकिन घंटों की बातचीत के बाद भी मेरी समस्या का कोई समाधान मुझे नहींदिया गया। शुरुआत इतनी ख्ाराब थी जिसके कारण पूरा दौरा ख्ाराब बीता। हालांकि वापस लौट कर मैंने उन पर कंज्य़ूमर कोर्ट में केस दर्ज किया। जिसका रिज्ाल्ट मेरे फेवर में आया लेकिन इससे मैंने सबक लिया कि जो दिखाया जा रहा है उस पर आंख मूंद कर विश्वास न करें, ख्ाुद से भी पडताल करें और उसके बाद ही ट्रैवल कंपनी से कोई करार करें।
रात में सफर ख्ातरनाक हो सकता है
यह हमारी अनप्लैंड वीकेंड यात्रा थी। मैं पति, दो छोटे बच्चों और हाउस हेल्पर के साथ निकल गई थी महाबलेश्वर। शाम के 5 बजे होंगे, हम मुरुद-जंजीरा पहुंचे ही थे कि अचानक तेज्ा बारिश शुरू हो गई। बारिश के चलते रास्ते जाम हो गए थे। घर लौटना मुमकिन नहीं था, सो हमने कोई और रास्ता ढूंढने की सोची। तभी हमें कुछ लोग दिखाई दिए। हमने गाडी रोककर उनसे महाबलेश्वर का रास्ता पूछा और फिर उनके बताए हुए रास्ते पर आगे बढ गए। अभी कुछ दूर ही आगे बढे थे कि हमने देखा कि जिनसे हमने रास्ता पूछा था, वे बाइक पर हमारा पीछा कर रहे थे। हमने गाडी की स्पीड तेज्ा कर दी और किसी आपात स्थिति से बचने के लिए हेल्पर को गाडी का गीयर लॉक दे दिया। िकस्मत अच्छी थी कि थोडी दूर जाकर हमें एक पुलिस वैन दिखाई दी। हमने तुरंत गाडी उनके पास जाकर रोक दी और उन्हें पूरा वाकया बताया। पुलिस वाले ने जो हमें बताया, उसे जान कर तो हमारे होश ही उड गए। जिस रास्ते पर हम जा रहे थे, वो एक डेड एंड था। जहां ये लोग योजनाबद्ध तरीके से अनजान लोगों से लूटपाट करते थे। हमारी तकदीर अच्छी थी कि हमें सही मौके पर पुलिस मिल गई और उन्होंने हमें आगे का रास्ता गाइड किया। हम बडी मुश्किल से महाबलेश्वर पहुंचे लेकिन इस यात्रा से हमने सबक लिया कि अनप्लैंड वीकेंड को तभी एंजॉय किया जा सकता है, जब जहां जाना है, वहां के बारे में अच्छी तरह पता हो। रात के समय तो ड्राइव करने से तौबा करनी चाहिए।
अति समझदारी ने मारा
मैं कहीं भी जाने के लिए पहले गूगल सर्च करती हूं और फिर आगे की प्लैनिंग करती हूं। एक वीकेंड आसपास घूमने के लिए सर्च किया तो मुझे पता चला कि मैं राजस्थान के भरतपुर से होते हुए सवाई माधोपुर सफारी पर जा सकती हूं। सर्च में भरतपुर बर्ड सेंक्च्युरी और टाइगर सफारी की जानकारी काफी एक्साइट कर रही थी। चूंकि सफर बहुत लंबा नहीं था इसलिए हमने सोचा कि कार से ही घूमा जाए। सर्च टूल की मदद से दोपहर 12 बजे के करीब हम भरतपुर बर्ड सेंक्च्युरी पहुंच गए। वहां वैसे तो बहुत हलचल थी लेकिन टूरिस्ट अट्रैक्शन बेहद कम था। वहां ज्य़ादातर लोकल और स्कूली लडके-लडकियां ही थे। एक-दो टूरिस्ट दिखे भी लेकिन उनके चेहरों पर मायूसी साफ दिखाई दे रही थी। हम टिकट ले चुके थे और आगे बढऩे के अलावा हमारे पास कोई ऑप्शन नहीं था। लेकिन ऐसा कोई भी अनोखा पक्षी नहींमिला, जिससे यहां आना सफल लगता। रोज्ा दिखने वाले हिरण, बंदर, बत्तखों की ही भरमार थी। इतना पैसा ख्ार्च कर दिल्ली से ये सब देखने चले आए, यह सोच कर खुद पर बडा गुस्सा आ रहा था। ख्ौर अगली सुबह गूगल और लोकल लोगों की मदद से हमने सवाई माधोपुर का रुख किया। पूरा रास्ता ही टूटा-फूटा था, जिसका ज्िाक्र स्थानीय लोग कर भी रहे थे लेकिन हमने उनकी बात नहीं सुनी और सुनी भी तो न•ारअंदा•ा कर गए। अपनी बेवकूफी के कारण 2 घंटे का सफर हमने 8 घंटे में पूरा किया। अगली सुबह हमने टाइगर सफारी का टिकट बुक किया और ये सोचकर आगे बढे कि यहां तो यात्रा सफल होगी। हम जीप से पार्क में टाइगर की तलाश में 4 घंटे तक घूमते रहे लेकिन टाइगर्स के नाम पर हमें दिखे कुछ हिरण, मगरमच्छ और बंदर। यह बेहद बुरा अनुभव था। खैर हमारी यह यात्रा एक सबक तो हमें •ारूर दे गई कि कभी इंटरनेट पर इतना भरोसा न करें। बेहतर होगा कि कुछ रीअल लोगों के अनुभव भी •ारूर ले लें।
प्रस्तुति : सखी टीम