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किताबों संग यारी ने जिंदगी संवारी

कभी किताबों से दोस्ती करके देखिए। हर पन्ने पर एक नया एहसास, एक नया रोमांच और एक नया फलसफा न नजर आए तो कहिएगा। किताबों के इन रंगों में तभी डूबा जा सकता है, जब किताबों से दोस्ती की जाए। किताबों से दोस्ती पर विशेषज्ञों से बात की सखी ने।

By Edited By: Published: Fri, 02 Aug 2013 12:23 AM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2013 12:23 AM (IST)
किताबों संग यारी ने जिंदगी संवारी

कॉर्पोरेट  प्रोफेशनल पिंकी का किताबों से गहरा रिश्ता है। स्कूल की लाइब्रेरी में हार्डी ब्वॉयज ,मिल्स एंड बून्स  और सीक्रेट सेवेन से शुरू हुई किताबों से उनकी दोस्ती अब प्यार में तब्दील हो चुकी है। किताबों से उनका लगाव इस कदर है कि दर्शनशास्त्र, साइंस-फिक्शन, रोमैंटिक से लेकर जासूसी उपन्यास तक किताबों का हर अहसास उन्हें लुभाता है। पिछले कुछ महीनों से वह शिवा ट्रायलॉजी , अर्धकथानक, चाणक्या चैंट , कृष्णा की और असुरा जैसी किताबें पढ रही हैं। किताबों से दोस्ती का यह शगल लोगों में तेजी से बढ रहा है जिसे लेखक और शिक्षाविद अच्छा संकेत मानते हैं। शिक्षाविद डॉ. नीना गुलाबानी कहती हैं, एक शोध के अनुसार भारतीय लेखकों की लेखनशैली में जितनी तेजी से बदलाव आया है, उतनी ही तेजी से यहां के पाठकों की संख्या और किताबों को लेकर ललक बढी है।

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बढ रहे एक्टिव रीडर

किताबें तो बहुतेरे लोग पढते हैं पर उनके पढने के उद्देश्य के हिसाब से तीन तरह के पाठक होते हैं। डॉ. नीना बताती हैं, कुछ लोग सिर्फ अपना आइक्यू  लेवल  बढाने के लिए पढाई करते हैं ताकि वे चार लोगों के बीच बैठें तो ज्ञान की शेखी  बघार सकें। ये इंटेलीजेंट रीडर्स  होते हैं जो अकसर अहंकारी और आक्रामक होते हैं। वहीं कुछ लोग सिर्फ टाइमपास  के लिए पढते हैं। ये पैसिव रीडर्स  होते हैं जो बोर होने या नींद न आने पर ही किताबें पढते हैं। ये दोनों ही प्रवृत्तियां गलत हैं। इनके अलावा तीसरी श्रेणी एक्टिव रीडर्स  की है, जो आत्मा की तृप्ति और अपने जीवन में सुधार के लिए किताबें पढते हैं। ये ही असली पाठक होते हैं। इस तरह के पाठक ज्ञानी किंतु विनम्र होते हैं और एक्टिव  रीडिंग ही असल फायदा पहुंचाती है। अच्छी ख्ाबर यह है कि एक्टिव रीडर्स की संख्या दिन पर दिन बढ रही है। ऐसे ही एक एक्टिव  रीडर प्रकाश कहते हैं,आज का पाठक किताब में कुछ नया चाहता है। मैं हमेशा किताबें खरीदने  से पहले उनकी समीक्षा पढता हूं। मुझे थोपी हुई सोच वाली और उपदेशात्मक किताबें पसंद नहीं हैं।

स्त्रियों के लिए बेहद जरूरी

एक्टिव रीडिंग स्त्रियों के लिए भी बेहद उपयोगी है। विशेषज्ञों की मानें तो किताबें स्त्री सशक्तीकरण में बडी भूमिका निभा सकती हैं, बशर्ते स्त्रियां उनसे दोस्ती करें। लेखिका चित्रा  मुद्गल कहती हैं, स्त्रियां आमतौर पर किताबों से दूर रहती हैं। उन्हें लगता है कि किताबें सिर्फउनके बच्चों के लिए हैं।

लेकिन असल में किताबों की महत्ता किसी एक आयुवर्ग  के लिए नहीं है। स्त्रियों, खास कर गृहिणियों की एक सीमित दुनिया होती है जिससे वे बाहर नहीं आना चाहतीं। लेकिन अगर वे किताबों से दोस्ती करेंगी, तो उनकी सोच का दायरा बढेगा। निबंध, यात्रा वृत्तांत, जीवनी आदि पढने पर वे बाहरी दुनिया से रूबरू होंगी। और इसके साथ ही वे अपने बच्चों की, परवरिश भी बेहतर तरीके से कर पाएंगी।

हमेशा सिखाती कुछ नया

रवींद्रनाथ टैगोर  हों, महात्मा गांधी हों, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हों, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम हों, महात्मा गांधी हों या अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा- सभी की किताबों से गहरी दोस्ती रही। किताबों से दोस्ती हमेशा कुछ न कुछ नया सिखाती है। किताबें पढने का शाक कई लोगों की उपलब्धियों का कारण बना। डॉ. नीना बताती हैं, कई लोग किताबों को सिर्फ स्कूल-कॉलेज से जोडकर देखते हैं, लेकिन असल में ये संस्थान आपको किताबों की सोहबत देने का सिर्फ एक माध्यम होते हैं। जिसने असल में किताबों से दोस्ती की है, वह बिना स्कूल-कॉलेज जाए भी इन्हें पढेगा। जापान के डॉ. दाईसाकू इकेदा  अपने जीवन में कभी कॉलेज  नहीं गए। लेकिन उन्हें किताबें पढने का जबर्दस्त शाक था। किताबों से अर्जित ज्ञान के चलते उन्हें 300  से ज्यादा  विश्वविद्यालयों ने डॉक्ट्रेट  की डिग्री से नवाजा।

संतुलन बनाए रखें

किताबें पढने में संतुलन बनाकर रखना बेहद जरूरी है। डॉ.नीना कहती हैं, जिन लोगों की किताबें पढने में रुचि नहीं होती, वे आमतौर पर अच्छे विचारक या विश्लेषक नहीं होते। सिर्फ टाइमपास  के लिए पढने का कोई फायदा नहीं होता। वहीं दूसरी ओर कुछ अंतर्मुखी लोग किताबी कीडे होते हैं, यानी किताबों की दुनिया से बाहर ही नहीं आना चाहते। किताबी कीडा होना भी अच्छा नहीं है। किताबों की दुनिया से बाहर निकल कर लोगों से घुलना-मिलना और किताबों की थ्योरी का प्रैक्टिकल  समझना भी उतना ही जरूरी है।

कुछ टिप्स

- अपनी रुचि के हिसाब से अर्थपूर्ण किताबों का चयन करें।

- पढने की आदत बचपन से ही डाली जाए तो अच्छा रहता है। बच्चों को सिर्फ कॉमिक्स  देने की जगह कुछ ऐसी किताबें दें जिन्हें पढकर उनकी कल्पनाशीलता  का विकास हो।

- घर में किताबों की उपलब्धता जरूर सुनिश्चित कराएं। किताबों का खर्च अपने घर के बजट में शामिल करें।

- अगर पढने की आदत नहीं है, तो रोज एक पेज पढें। धीरे-धीरे आपकी किताबों से दोस्ती हो जाएगी।

सीखी खेल भावना

संदीपन कीर्ति, हाईस्कूल छात्र, गुडगांव

मैं फीफा, एथलेटिक्स, कार रेसिंग जैसे स्पो‌र्ट्स पर आधारित किताबें पढता हूं। खेल भावना के बारे में मुझे किताबें पढकर ही पता लगा। फिजीक पर आधारित एक किताब पढकर मैंने जाना कि चने खाने से भागने की स्पीड बढती है। मैंने कुछ हफ्ते इस टिप पर अमल किया जिसका मुझे फल भी मिला। स्कूल चैंपियनशिप में मुझे 800  मीटर रेस में गोल्ड मेडल, 200  मीटर में सिल्वर मेडल और 100  मीटर हर्डल्स रेस में ब्रॉन्ज  मेडल मिला।

भाषा में आया सुधार

श्वेता  ग्रेस सिंह, बी.कॉम छात्रा, डीयू

मुझे युवा लेखकों के अंग्रेजी उपन्यास पढना बहुत पसंद है। क्योंकि उनके किरदार मुझे अपने से लगते हैं। ये किताबें पढने से मेरे शब्द ज्ञान में काफी सुधार आया है। साथ ही भाषा पर भी पकड मजबूत हुई है।

ज्योति द्विवेदी


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