फ्लैट खरीदने से पहले
हाल में ही राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा है कि निर्माण में होने वाली देरी के बाद यदि क्रेता फ्लैट नहीं लेना चाहता तो बिल्डर को उसका पैसा ब्याज सहित वापस करना होगा। कई बार लोग लुभावने विज्ञापनों और सैंपल फ्लैट्स की चकाचौंध में फंस जाते हैं। जरूरी है कि
हाल में ही राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा है कि निर्माण में होने वाली देरी के बाद यदि क्रेता फ्लैट नहीं लेना चाहता तो बिल्डर को उसका पैसा ब्याज सहित वापस करना होगा। कई बार लोग लुभावने विज्ञापनों और सैंपल फ्लैट्स की चकाचौंध में फंस जाते हैं। जरूरी है कि फ्लैट लेने जा रहे हैं तो कुछ कानूनी पहलुओं का ध्यान रखें।
ल्डर तय समय पर फ्लैट बना कर न दे तो उसे उपभोक्ता को ब्याज सहित पूरा पैसा वापस करना पड सकता है। हाल ही में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने एक मामले में ऐसा ही फैसला सुनाया है। इससे खरीदारों को थोडी राहत मिली है।
डेवलपर्स अग्रीमेंट अंतिम नहीं
मुकदमा पाश्र्वनाथ डेवलपर्स और दो क्रेताओं के बीच हुआ था। क्रेताओं ने ग्रेटर नोएडा स्थित पाश्र्वनाथ पेलेशिया और पाश्र्वनाथ प्रिवलिज में 3 बीएचके फ्लैट्स बुक किए थे। वर्ष 2007 में ही फ्लैट की लगभग 95 प्रतिशत रकम अदा कर दी गई थी।
पाश्र्वनाथ डेवलपर्स और क्रेताओं के बीच हुए अग्रीमेंट में बिल्डर ने कहा था कि 36 महीने में फ्लैट्स का पजेशन दे दिया जाएगा और यदि ऐसा न हो सका तो कंपनी क्रेताओं को पांच रुपये प्रति वर्ग फुट प्रतिमाह की दर से पैसा देगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बिल्डर की दलील थी कि अग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार के्रता देरी के कारण जुर्माना नहीं मांग सकता, क्योंकि यह समझौता त्रिपक्षीय था, जिसमें बैंक, डेवलपर्स और क्रेता शामिल थे। चूंकि इसमें बैंक से भी लोन लिया गया, इसलिए बैंक का लीन (रुद्बद्गठ्ठ) या दावा भी वापस की गई रकम पर था।
नेशनल कंज्यूमर कमीशन ने कहा कि अग्रीमेंट आख्िारी दस्तावेज नहीं है। फ्लैट के पजेशन में तय सीमा से ज्य़ादा वक्त लगता है तो क्रेता अपने पैसे पर ब्याज खो देता है। कंस्ट्रक्शन में देरी से निर्माण सामग्री की कीमतें बढती हैं और इसका पैसा भी बिल्डर क्रेता से वसूलता है। पाश्र्वनाथ डेवलपर्स क्रेताओं को 18 फीसद ब्याज सहित पूरा पैसा वापस करे, साथ ही मुकदमे, मानसिक परेशानी और चिंता के लिए अलग से मुआवजा भी दे।
अग्रीमेंट की एकतरफा शर्र्तें
बिल्डर्स एवं क्रेता के बीच होने वाले अग्रीमेंट में एक शर्त होती है कि यदि बिल्डर निर्माण में देरी करता है तो निर्धारित समय-सीमा के बाद उसे क्रेता को फ्लैट का किराया देना होगा। दूसरी ओर यदि क्रेता बिल्डर के ऑफर लेटर के बाद अकाउंट क्लियर नहीं करता तो उसे बिल्डर को जुर्माना देना होगा। क्योंकि बिल्डर ने क्रेता के लिए फ्लैट होल्ड कर रखा था। क्रेता निर्धारित किस्तें नहीं चुका पाता तो उसे 24 प्रतिशत की दर से बिल्डर को सूद चुकाना पडता है। निर्माण में देरी के बावजूद यदि क्रेता फ्लैट लेना चाहे तो उसे पजेशन के समय अकाउंट क्लियर करना होगा। इस हालत में उसे बिल्डर की नाजायज शर्तें भी माननी होंगी।
निर्माण में हो देरी तो
अग्रीमेंट की शर्तें तब लागू नहीं होतीं, जबकि क्रेता देरी के कारण फ्लैट लेने से इंकार कर दे। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इस मामले में पाश्र्वनाथ डेवलपर्स की यह दलील भी ख्ाारिज कर दी कि आयोग को सुनवाई का अधिकार नहीं है।
कानूनी पहलू पर दें ध्यान
1. फ्लैट खरीदते समय अलॉटमेंट लेटर की प्रति लेकर संबंधित अथॉरिटी के हाउसिंग डिपार्टमेंट से सत्यापन कराएं। दिल्ली में प्राॉपर्टी लेने पर डीडीए, ग्ााजियाबाद में जीडीए और नोएडा में नोएडा अथॉरिटी से चेक कराएं।
2. बिल्डर का पता लगाएं। बडे बिल्डर्स के बारे में आमतौर पर सभी को जानकारी रहती है। लेकिन नए बिल्डर से प्रॉपर्टी ले रहे हैं तो उसके बनाए हुए निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स जरूर देखें, वहां के वर्कर्स से बात करें कि कितना समय उसमें लग रहा है। कंपनी की बैलेंस शीट भी चेक करें ताकि पता चल सके कि उसकी वित्तीय स्थिति कैसी है।
3. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिल्डर पार्किंग के नाम पर पैसा नहीं ले सकता, जबकि बिल्डर्स इसके लिए एक लाख से तीन लाख तक ग्राहकों से वसूलते हैं। पार्किंग, पार्क फेसिंग, योग क्लब या फ्रंट फेसिंग के नाम पर बिल्डर अतिरिक्त चार्ज नहीं वसूल कर सकता।
4. कोई भी बिल्डर क्रेता से फ्लैट की पूरी कीमत कैश में नहीं ले सकता।
5. प्रॉपर्टी के मौलिक दस्तावेज अवश्य देखें। दस्तावेजों में हस्ताक्षरों का मिलान करें कि कहीं उनमें कोई फर्क तो नहीं है। प्रॉपर्टी मालिक को रजिस्ट्री के काग्ाजात पर भी अपना फोटो लगाना अनिवार्य है।