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बदल रहा है रिश्तों का संविधान

हर रिश्ता समय व स्थितियों के साथ बदलता है। शादी में भी पिछले कुछ वर्षों में काफी कुछ बदल चुका है। कुछ पुराने नियम बदले हैं, उनकी जगह नए नियम आ गए हैं तो कुछ पुरानी मान्यताओं में थोड़ा संशोधन भी किया गया है। यह बदलाव कैसा है, जानें यहां।

By Edited By: Published: Tue, 21 Apr 2015 12:00 AM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2015 12:00 AM (IST)
बदल रहा है रिश्तों का संविधान

हर रिश्ता समय व स्थितियों के साथ बदलता है। शादी में भी पिछले कुछ वर्षों में काफी कुछ बदल चुका है। कुछ पुराने नियम बदले हैं, उनकी जगह नए नियम आ गए हैं तो कुछ पुरानी मान्यताओं में थोडा संशोधन भी किया गया है। यह बदलाव कैसा है, जानें यहां।

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शादी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है। हर रिश्ते में निबाह के कुछ उसूल, नियम, सिद्धांत होते हैं। जरूरी नहीं, जो उसूल या नियम एक रिश्ते पर सही बैठें, वे दूसरे रिश्ते पर भी उसी तरह लागू हो जाएं। समय के साथ हर चीज बदलती है तो पति-पत्नी के रिश्तों में भी बदलाव लाजिमी है। पिछले कुछ वर्षों में शादी की संस्था में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। कुछ नियम पुराने हो गए और उनकी जगह कुछ नए नियमों ने ले ली है। अच्छे हों या बुरे, इसका फैसला हर दंपती अपने हिसाब से करता है। लेखक, थेरेपिस्ट और विशेषज्ञ टेरेंस रियल ने अपनी पुस्तक 'द न्यू रूल्स ऑफ मैरिज में कई रोचक बातें लिखी हैं। पुस्तक में दिए गए नियमों को भारतीय संदर्भ में इस तरह बयां किया जा सकता है।

पुराना नियम: शादी में पार्टनर की इच्छा को महत्व देना जरूरी है।

नया नियम : यूं तो नया नियम इस पुराने नियम को खारिज नहीं करता, लेकिन यह कहता है कि शादी में इतना समर्पित होना भी अच्छा नहीं कि अपना व्यक्तित्व ही खत्म हो जाए। अपनी इच्छाओं-जरूरतों को समझना जरूरी है, तभी रिश्तों में खुश रह सकेेंगे। खुश नहीं रहेंगे तो जिंदगी में किसी मोड पर शिकायतें जन्म लेने लगेंगी। इसलिए अपनी इच्छाओं व जरूरतों में फर्क करना और उन्हें समझना जरूरी है। खुद की खुशी नहीं चाहेंगे तो दूसरे को भी खुश नहीं रख सकेेंगे।

पुराना नियम : घर में मेल मेंबर का महत्व ज्यादा है। वह (पति) जो कहे उसे मानना होगा

नया नियम : शादी एक कंपेनियनशिप है, जिसमें दोनों की बातों, राय या विचारों का बराबर महत्व है। इसीलिए दूसरे को सुनना और उदारता से प्रतिक्रिया करना जरूरी है। नए दंपती पार्टनर की बातों को सुनना-स्वीकारना जानते हैं, मगर उन्हें आदेश मान कर उनका अनुकरण नहीं करते। पार्टनर से सहमत नहीं हैं तो क्रोध करने या तुरंत प्रतिक्रिया करने के बजाय वे शांति से अपनी राय व्यक्त करना जानते हैं। कहा जा सकता है कि शादी में अब काफी हद तक बराबरी की संभावनाएं बनने लगी हैं।

पुराना नियम : औपचारिकता की क्या जरूरत है? पति-पत्नी हैं, प्रेमी-प्रेमिका नहीं!

नया नियम : भागदौड भरी जिंदगी और घर-परिवार की बढती जिम्मेदारियों के बीच पति-पत्नी भूल जाते हैं कि उनका एक-दूसरे के प्रति भी कुछ दायित्व बनता है। लंबा समय साथ बिताने के बाद कई बार एक-दूसरे को फॉर-ग्रांटेड लेने लगते हैं। लेकिन नए कपल्स पुरानी पीढी की इस धारणा को खारिज करते हैं। रिश्तों का नया फॉम्र्युला कहता है कि शादी में भी थोडी औपचारिकता जरूरी है। खास मौकों पर गिफ्ट्स का आदान-प्रदान, नाइट आउट, डिनर प्लान करना और कभी-कभी प्रेमी-प्रेमिका की तरह अपने लिए कुछ क्षण चुराना जरूरी है। यूं भी महानगरीय नौकरीपेशा दंपती बहुत कम समय साथ बिता पाते हैं। ऐसे में एक-दूसरे को यह एहसास कराना जरूरी है कि उन्हें पार्टनर का खयाल है और व्यस्त दिनचर्या में भी वे पार्टनर को कभी नहीं भूलते।

पुराना नियम : रिश्तों में भला पर्सनल स्पेस की क्या जरूरत है!

नया नियम : शादी में 'मैं और 'हम दोनों की बराबर अहमियत है। शादी का मतलब यह नहीं कि अपनी निजता खत्म कर दी जाए। अब नए कपल्स पुरानी पीढी की इस धारणा को तोडऩे लगे हैं कि शादी सिर्फ जिम्मेदारियां निभाने का नाम है। नए दंपती एक-दूसरे के पर्सनल स्पेस का महत्व समझ रहे हैं और पार्टनर को स्पेस देने को तैयार भी हैं। मगर वे 'वी स्पेस को भी उतना ही महत्व देते हैं। उन्हें मालूम है कि कब उन्हें अपना एकांत चाहिए और कब पार्टनर के साथ होना चाहिए। अपने शौक भी वे पूरे करते हैं। इस बारे में नई पीढी की सोच बिलकुल स्पष्ट है।

पुराना नियम : झगडों से रिश्तों में दरार पडती है

नया नियम : झगडों से रिश्ते में प्यार बढता है, बशर्ते उन्हें सही समय पर सुलझाया जाए और तार्किक ढंग से उन पर सोचा जाए। नए जोडे मानते हैं कि पति-पत्नी होने का अर्थ यह नहीं कि हर बात पर समान ढंग से सोचा जाए। मतभिन्नता हो सकती है और कई बार जिम्मेदारियों, पेरेंटिंग, लिविंग स्टाइल या अन्य छोटी-छोटी बातों पर बहसें हो सकती हैं। बहस हो भी क्यों नहीं! आखिर अपनी बात रखने का यह सबसे प्रभावशाली तरीका है। कई बार बहस बढ जाती है और झगडे में तब्दील हो जाती है। लेकिन इन छोटे-छोटे झगडों को आपसी बातचीत से सुलझाने की कला में भी ये नए दंपती माहिर हैं। अपनी बात कहना, अपना पक्ष रखना, अपने हक के लिए लडऩा उन्हें आता है। झगडे अंतहीन नहीं होते, वे किसी ठोस निर्णय तक पहुंचने के लिए होते हैं।

पुराना नियम : घर की बात घर में रहे, बाहर न जाए।

नया नियम : पति-पत्नी को अपने आपसी मामले खुद सुलझाने चाहिए। कुछ बातें घर की चारदीवारी के भीतर ही ठीक हैं, उन्हें किसी से शेयर नहीं किया जाना चाहिए। इस पुरानी धारणा को नए दंपती एक सीमा के भीतर ही स्वीकार करते हैं। जब तक उन्हें लगता है कि वे खुद समस्या को सुलझा सकते हैं, तब तक वे मुद्दों को तीसरे तक नहीं पहुंचने देते। लेकिन जैसे ही उन्हें लगता है कि कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें दोनों मिल कर नहीं सुलझा पा रहे हैं तो वे किसी तीसरे की मदद लेने से भी नहीं हिचकिचाते। यह तीसरा उनका पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार या भरोसेमंद दोस्त हो सकता है। जरूरत पडऩे पर वे बिना समय गंवाए प्रोफेशनल हेल्प भी लेते हैं।

पुराना नियम : सेक्स संबंधों में पहल पुरुष को करनी चाहिए।

नया नियम : नए दंपती मानते हैं कि सेक्स संबंधों में पहल कोई भी कर सकता है, स्त्रियां भी अब ऐक्टिव पार्टनर है। वे अपनी सेक्सुअल फैंटसीज, डिजायर्स व सेक्सुअल संतुष्टि को लेकर बात करती हैं। पुरुष भी फीमेल पार्टनर की इच्छाओं, पसंद-नापसंद का खयाल रखते हैं। सेक्स पर खुल कर बात करना अब टैबू नहीं रहा। ये कपल्स फेमिली प्लानिंग हो या सेक्सुअल हेल्थ, उन पर कोर्टशिप के दौरान ही बात करना ठीक समझते हैं। नई व्यस्त दिनचर्या में तो वे डेट प्लानिंग भी करने लगे हैं। सेक्स संबंधों को वे एंजॉय करते हैं, साथ ही लंबे समय तक सेक्सुअली ऐक्टिव रहने के लिए अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने लगे हैं।

पुराना नियम: शादी सात जन्मों का बंधन है। इसमें तलाक की बात नहीं करनी चाहिए।

नया नियम : शादी इसी जन्म में निभाया जाने वाला रिश्ता है। यह बंधन नहीं, दो व्यक्तियों के साथ चलने के लिए बनाई गई सामाजिक-पारिवारिक संस्था है। कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं, जब दोनों का साथ चलना असंभव हो जाता है। पुरजोर कोशिशों के बावजूद यदि मुद्दे नहीं सुलझते तो रिश्तों को ढोते रहने के बजाय समझदारी से अलग हो जाते हैं। कई कपल्स ऐसे भी हैं, जिनके बच्चे हैं और अलग होने के बावजूद वे परवरिश से जुडी जिम्मेदारियां मिल-जुलकर निभा रहे हैं।

बुनियादी बातें

1. शादी एक लॉन्गटर्म इन्वेस्टमेंट की तरह है। जितना प्यार डालेंगे, भविष्य में दुगना होकर वापस मिलेगा।

2. ज्यादातर झगडों का तार्किक आधार नहीं होता। वे किसी भी बात पर हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए तार्किक होने की जरूरत पडती है।

3. सेक्स संबंध बुनियादी जरूरत है। शादी नई हो या पुरानी, इसके महत्व को कभी नकारा नहीं जा सकता।

4. बच्चे भले ही कितने प्यारे लगें, मगर रिश्तों पर इनका दबाव बना रहता है। बच्चों की जिम्मेदारियां निभाएं मगर अपने रिश्तों को सर्वाधिक महत्व दें, तभी खुश रह सकेेंगे।

5. शादी को निभाने के लिए त्याग, समर्पण, परस्पर भरोसा, समझौता, सामंजस्य जैसी बातें जरूरी हैं, मगर इनमें से किसी भी पहलू पर अति से रिश्ते में खटास पैदा हो सकती है।

इंदिरा राठौर


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