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हमेशा गलत नहीं होते दोस्त

हमें अपने बच्चों के दोस्तों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए क्योंकि इस उम्र में दोस्तों के दबाव की वजह से वे बहुत जल्दी बिगड़ते हैं। पेरेंटिंग की इस परंपरागत अवधारणा पर अब अभिभावकों को नए सिरे से सोचने की जरूरत है।

By Edited By: Published: Sat, 10 May 2014 11:20 AM (IST)Updated: Sat, 10 May 2014 11:20 AM (IST)

आप मुझे नहीं समझ सकतीं। टीनएजर्स की मां को अपने बच्चे के मुंह से अकसर यही वाक्य सुनने को मिलता है। हर मां यही सोचती है कि अपने बच्चों के साथ उसका बेहद दोस्ताना संबंध है। ..पर अफसोस हमेशा ऐसा नहीं होता। बारह साल की उम्र तक पहुंचते ही बच्चों के दोस्तों की अलग दुनिया बनने लगती है, जहां वे सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। वे पेरेंट्स से कहीं ज्यादा दोस्तों पर भरोसा करते हैं। उन्हें हमेशा यही लगता है कि दोस्त हमारे हमउम्र हैं, उनकी समस्याएं भी हमारे ही जैसी हैं। इसलिए हम एक-दूसरे के साथ अपने मन की सारी बातें ज्यादा सहजता से शेयर कर सकते हैं। उम्र के इसी दौर में सच्ची दोस्ती होती है। दोस्तों के साथ होना, आपके बच्चे के मन में खास तरह के अपनत्व की भावना विकसित करता है। एक-दूसरे की मदद करना उनके लिए बेहद सुखद और सकारात्मक अनुभव होता है। दोस्ती के जरिये उनके मन में दूसरों को समझने की भावना विकसित होती है। हां, पीयर प्रेशर माता-पिता के लिए चिंता का विषय जरूर हो सकता है, लेकिन इस उम्र में बच्चे आपके विचारों से पूरी तरह बेख्ाबर होते हैं। पेरेंट्स उनके दोस्तों को पसंद करते हैं या नहीं, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पडता।

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जरूरत जुडाव की

टीनएजर्स अपने दोस्तों के साथ बहुत ज्यादा जुडाव महसूस करते हैं। अपनी इस भावना को वे रोजमर्रा की गतिविधियों के जरिये दर्शाना चाहते हैं। आपने भी नोटिस किया होगा कि टीनएजर्स का एक खास ग्रुप होता है। अकसर एक ही ग्रुप में रहने वाले बच्चों की ड्रेस सेंस और हेयरस्टाइल जैसी छोटी-छोटी बातों में भी काफी समानता देखने को मिलती है। दरअसल दोस्तों से मिलती-जुलती स्टाइल अपनाकर वे उनके ग्रुप में अपनी जगह बनाना चाहते हैं। पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता बनाने की चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न करें, पर उन्हें हमेशा हमउम्र दोस्तों की जरूरत महसूस होती है। माता-पिता चाहकर भी बच्चों के दोस्त नहीं बन सकते। दोस्तों के साथ बातचीत के दौरान उन्हें कई तरह के विचारों को जानने-समझने का अवसर मिलता है और इससे उनकी अपनी सोच भी विकसित होती है। दोस्तों का साथ उन्हें तनाव और डिप्रेशन जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं से भी बचाता है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में पीयर प्रेशर का नकारात्मक प्रभाव भी पडता है। ऐसे में अगर शुरू से ही बच्चे के मन में पारिवारिक और नैतिक मूल्यों के प्रति जुडाव होगा तो दोस्तों से प्रभावित होकर वह कोई भी ऐसी आदत नहीं अपनाएगा, जिसे उसके परिवार में नापसंद किया जाता है।

बाहर की दुनिया

इस उम्र में बच्चे अपने सपनों को लेकर बेहद महत्वाकांक्षी होते हैं। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए वे परिवार के सीमित दायरे से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। पेरेंट्स की नजरों में भले ही वे बच्चे हों, लेकिन इस उम्र तक वे अपने भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर देते हैं। ऐसे में वे पेरेंट्स के बजाय दोस्तों से मदद की उम्मीद रखते हैं। पढाई-लिखाई, खेलकूद और स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की वजह से इस उम्र में ग्रुप एक्टिविटीज की खासी अहमियत होती है। टीम भावना का टीनएजर्स की सोच पर गहरा प्रभाव पडता है। चाहे पहनावा हो या हेयर स्टाइल या फिर दूसरों के साथ बातचीत का तरीका। टीनएजर्स का कई तरह के नए अनुभवों से सामना होता है। इस उम्र में सही चुनाव को लेकर वे अकसर उलझन में पड जाते हैं। ऐसे में उन्हें केवल अपने दोस्तों पर ही भरोसा होता है, जो उन्हें नए जमाने के अनुकूल उन्हें सही सलाह दे सकते हैं।

नकारात्मक नहीं है यह

आमतौर पर पीयर प्रेशर शब्द का इस्तेमाल नकारात्मक अर्थ में किया जाता है, लेकिन जरा धैर्य से सोचिए कि क्या यह सचमुच नेगेटिव है? नहीं, हमेशा ऐसा नहीं होता। यह बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में बहुत मददगार साबित होता है। कई बार बच्चे अपने दोस्तों के साथ रह कर उनकी अच्छी आदतों को भी अपनाने की कोशिश करते हैं। यह सहज मानवीय प्रवृत्ति है कि हमारी दोस्ती हमेशा अपने जैसे लोगों से ही होती है। अगर परिवार से बच्चे को अच्छे संस्कार मिले होंगे तो उसकी दोस्ती विपरीत रुचि वाले लोगों के साथ हो ही नहीं सकती। ऐसे में पीयर प्रेशर के नकारात्मक प्रभाव की आशंका अपने आप खत्म हो जाती है। कई बार दोस्तों की मदद से बच्चों के लिए अपने बारे में सही निर्णय लेना आसान हो जाता है और इससे उनका आत्मविश्वास भी बढता है।

कब होती है मुश्किल

जिस तरह टीनएजर्स के जीवन में दोस्त सकारात्मक भूमिका निभाते हैं, उसी तरह कई बार दोस्तों की वजह से ही उनमें कुछ गलत आदतें भी विकसित हो जाती हैं। कमजोर सेल्फ एस्टीम वाले टीनएजर खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इसी वजह से दोस्तों के प्रभाव में आकर वे सिगरेट-एल्कोहॉल और ड्रग्स जैसी नुकसानदेह चीजों का सेवन शुरू कर देते हैं। अपने बच्चे को ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचाने के लिए उसके साथ पेरेंट्स को खुलकर बातचीत करनी चाहिए। अभिभावकों के प्यार भरे मार्गदर्शन से पीयर प्रेशर के नकारात्मक प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। अगर पेरेंट्स वक्त के साथ बच्चों की दुनिया में आने वाले बदलावों से खुद को अपडेट रखें तो उनके लिए इस समस्या का समाधान बहुत आसान हो जाएगा। इस उम्र में उनसे गलतियां हो सकती हैं, लेकिन आपके लिए उनके मन में यह विश्वास जगाना बहुत जरूरी है कि आप अपने बच्चे से बेहद प्यार करते हैं और हर मुश्किल में उसके साथ खडे होंगे। उस पर बहुत ज्यादा प्रतिबंध लगाने के बजाय उसे खुद अपनी गलतियों से सीखने का मौका दें।

अपडेट रखें खुद को

समय के साथ टेक्नोलॉजी और बच्चों के सामाजिक जीवन में आने वाले सभी नए बदलावों की जानकारियों से खुद को हमेशा अपडेट रखें। आपको आधुनिक फैशन और ट्रेंड की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि आजकल बच्चों को अपने दोस्तों के बीच किस तरह के दबावों का सामना करना पडता है।

बातचीत है जरूरी

पीयर प्रेशर के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए आप अपने टीनएजर के साथ निरंतर संवाद बनाए रखें। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि जिन टीएजर्स के पेरेंट्स उनके साथ नियमित रूप से बातचीत करते हैं, वे सिगरेट, एल्कोहॉल या ड्रग्स जैसी नशीली चीजों का सहारा नहीं लेते। माता-पिता से मिलने वाला भरपूर प्यार उनका आत्मविश्वास बढाता है और उन्हें ऐसे गलत रास्ते पर जाने से रोकता है। आप उन्हें यह एहसास दिलाएं कि उन पर आपको पूरा विश्वास है। जिन बच्चों को घर में जिम्मेदार समझा जाता है, बाहर भी उनका व्यवहार बेहद संतुलित और जिम्मेदारी भरा होता है। बच्चे की हर बुरी आदत के लिए उसके दोस्तों को दोषी ठहराना गलत है। आपको व्यक्तिगत स्तर पर भी उसकी परेशानी समझने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप खुद को अपने टीनएजर की स्थिति में रखकर देखें तो आपके लिए उसकी समस्याओं को समझना और सुलझाना आसान हो जाएगा।

कुछ जरूरी बातें

-निरंतर प्रशंसा और प्रोत्साहन से अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढाने की कोशिश करें।

-उसे अपने पारिवारिक मूल्यों पर गर्व महसूस करना सिखाएं।

-जहां तक संभव हो उसे खुद निर्णय लेने के लिए प्रेरित करें।

-उसे अपने मूल्यों और सही निर्णय पर अडिग रहना सिखाएं। -उसे निडर बनाएं और न कहना सिखाएं।

-बच्चे के दोस्तों और उनके माता-पिता से भी अपनी जान-पहचान बढाने की कोशिश करें।

-अगर आपको उसके किसी दोस्त की आदतें नापसंद हैं तो बच्चे पर उससे दूर रहने का दबाव न बनाएं। उस पर इसका उल्टा असर होगा। ऐसे में उसे उसकी रुचि से जुडे किसी अन्य कार्य में व्यस्त रखने की कोशिश करें। इससे दोस्तों के साथ बिताने के लिए उसके पास ज्यादा वक्त नहीं होगा।

-उसके साथ क्वॉलिटी टाइम बिताते हुए उसे सही और गलत के बीच फर्क करना सिखाएं। इससे उसके लिए अच्छे दोस्त का चुनाव करना आसान हो जाएगा।

(चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार से बातचीत पर आधारित)

प्रस्तुति : विनीता


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