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चलो इक बार फिर से..

हर दंपती की जिंदगी जिम्मेदारियों से भरी होती है। जीवन के कई वर्ष इन्हीं को पूरा करने में निकल जाते हैं। फिर एक दिन अचानक खालीपन व एकाकीपन महसूस होने लगता है। मिड एज क्राइसिस और शारीरिक बदलाव दांपत्य को भी प्रभावित करने लगते हैं। ऐसे में अपने रिश्ते को फिर से नया बनाने की कोशिश जरूरी है। क्यों न चुनौतियों से भरे इस दौर को सेकंड हनीमून की सौगात दें। सखी से जानें मिड एज में अपने दांपत्य को संवारने के गुर।

By Edited By: Published: Wed, 01 Jan 2014 12:54 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jan 2014 12:54 AM (IST)

सेकंड हनीमून? शादी के 20-25  साल बाद अगर इस शब्द को सुन कर कुछ-कुछ होने लगे तो वाकई हनीमून की जरूरत है। 40 की उम्र पार करते ही जहां जिंदगी  की कई जिम्मेदारियों  को पूरा करने का संतोष होता है, वहीं थोडी नीरसता व एकाकीपन का एहसास भी होने लगता है। हॉर्मोनल बदलाव भावनात्मक रूप से भी प्रभावित करने लगते हैं। उम्र की ढलान का एहसास भी होने लगता है। इस मोड पर भी कोई है, जो हर मुश्किल का सामना करने का हौसला देता है और वह है- जीवनसाथी। अपनी शादी को थोडा रोमांचक, हसीन, जोशीला बनाने और उसमें प्रेम की ऊर्जा पैदा करने से कई मुश्किलें आसान हो सकती हैं।

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मिड एज क्राइसिस

यह टर्म सबसे पहले वर्ष 1965  में सामने आया था। माना जाता है कि पुरुषों में यह क्राइसिस तीन से दस साल तक रह सकती है, जबकि स्त्रियों में इसका दौर अधिकतम पांच वर्ष तक होता है। इसके लक्षण भी स्त्री-पुरुषों में अलग-अलग होते हैं। दिल्ली स्थित रॉकलैंड  हॉस्पिटल  की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा शर्मा कहती हैं, स्त्रियों में 40 की उम्र के बाद से प्री-मेनोपॉज के लक्षण धीरे-धीरे शुरू होने लगते हैं। वजन बढने, डायबिटीज,  थायरॉयड,  हॉर्मोनल  बदलाव, मेल हॉर्मोस हावी होने, नेत्र-विकार, स्पॉण्डलाइटिस, चक्कर, एसिडिटी, गैस के अलावा पीरियड्स  की अनियमितता का सामना इस उम्र की अधिकतर स्त्रियों को करना होता है। इसके साथ ही पारिवारिक स्तर पर भी कई चुनौतियां आती हैं। बच्चों की पढाई और उन्हें व्यवस्थित करने की चिंता के अलावा अपने माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता भी होती है। इनका असर पति-पत्नी के आपसी रिश्तों पर पडने लगता है।

पुरुष भी होते हैं प्रभावित

स्त्रियों की तुलना में पुरुषों में मिड एज क्राइसिस की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है। इस दौरान वे बीते दिनों के बारे में बात करने लगते हैं, बचपन को याद करने लगते हैं, सोशल साइट्स पर ऐक्टिव हो जाते हैं, गिरते या सफेद होते बालों के बारे में चिंतित होते हैं, कुछ लोग बाल कलर कराने लगते हैं, कइयों को नौकरी खोने या रिटायरमेंट की चिंता खाने लगती है तो कुछ संगीत में दिलचस्पी लेने लगते हैं, कुछ अपने व्यक्तित्व को निखारने की कोशिशें करते हैं। कई पुरुष तो कम उम्र की लडकियों के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। मिड एज क्राइसिस से गुजरते कई प्रतिष्ठित लोगों पर यौन अपराधों के आरोप भी लगे हैं।

डॉ. शर्मा अपना अनुभव सुनाती हैं, कुछ समय पहले मेरे पास एक मिडिल एज दंपती आया। पुरुष ने बताया कि उनकी संतान नहीं है और वे संतान की इच्छा रखते हैं। पुरुष ने अपने व्यक्तित्व को शानदार दिखाने में कोई कसर नहीं छोडी थी, जबकि पत्नी साधारण सी थी। उम्र को देखते हुए उन्हें सरोगेसी की सलाह दी गई। पति यह कहते हुए सहर्ष तैयार हो गया कि वह बच्चे के लिए 8-10 लाख रुपये तक खरर्च कर सकता है। इसके बाद पत्नी उठ कर कुछ देर के लिए बाहर गई। वहां से उसने धीरे से इशारा किया कि उनके पांच बच्चे हैं। यह बडी अजीब सा अनुभव था मेरे चिकित्सीय जीवन का। यह टिपिकल मिड एज क्राइसिस का लक्षण था। शायद अगली सिटिंग में उन्हें काउंसलिंग देनी पडे।

शादी को दें एक मौका

ऐसे अध्ययन भी हुए हैं, जो बताते हैं कि विदेशों में 40  से 50  की उम्र में तलाक के मामले काफी बढ गए हैं। जीवन के इस नाजुक मोड पर दांपत्य को एक बार फिर से समझने-संवारने की जरूरत होती है। बच्चे अपनी दुनिया में मस्त हो जाते हैं, पढाई या करियर  बनाने के लिए बाहर चले जाते हैं। हेल्थ प्रॉब्लम्स शुरू होने लगती हैं और कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं होने लगती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि वैवाहिक जीवन में थोडा सा बदलाव लाकर इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। शादी को एक मौका देने और सेकंड हनीमून प्लान करने से स्थितियां बहुत हद तक सुधर सकती हैं। रिश्ते को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें-

सकारात्मक रहें

आधी समस्याओं का हल सकारात्मक सोच से हो सकता है। डॉ. शर्मा कहती हैं, कुछ स्त्रियां मेनोपॉज  के लक्षण शुरू होने के बाद हॉर्मोनल  थेरेपी लेने के बारे में सोचती हैं, लेकिन चिकित्सक होने के नाते हम इसकी सलाह आमतौर पर नहीं देते। इसलिए प्रकृति के नियमों को स्वीकारें, उम्र और शारीरिक बदलावों के हिसाब से दिनचर्या, खानपान और आदतों में सुधार लाएं। डाइट को सिंपल करें, नियमित योग व व्यायाम से स्वस्थ रहें।

सेक्स को न नकारें

अमूमन दंपतियों के जीवन से इस उम्र तक सेक्स संबंध गायब होने लगते हैं। स्त्रियां सेक्स से भागने लगती हैं। सेक्सप‌र्ट्स  मानते हैं कि ज्यादा दिनों तक सेक्स संबंध न बनाने से वजाइनल मसल्स टाइट हो सकती हैं। सेक्स संबंधों में लंबा अंतराल होने पर इंटरकोर्स  मुश्किल हो जाता है। इसलिए सेक्स के महत्व को न नकारें। किसी अच्छे ल्युब्रिकेंट का इस्तेमाल करें और पेल्विक एक्सरसाइजेज के द्वारा खुद को सेक्सुअली फिट रखें। इंटरकोर्स न सिर्फ भावनात्मक तौर पर स्थिर बनाता है, बल्कि कई शारीरिक परेशानियों का भी समाधान है। यह दांपत्य का अनिवार्य पहलू है।

चिंता से भागें

इस उम्र में कई तरह की चिंताएं हावी होने लगती हैं। बच्चों के करियर-शादी  की चिंता के अलावा बुजुर्गो की सेहत, नौकरी या रिटायरमेंट को लेकर चिंताएं शुरू हो जाती हैं। समस्याओं के बारे में सोचने से उनका हल नहीं होता। सोचने के बजाय उनका सामना करने और हल ढूंढने की कोशिश करें। जीवन में नीरसता आ रही हो तो पार्टनर के साथ झटपट हॉलीडे  प्लान करें और चिंताओं से दूर कुछ दिन सिर्फ साथी के साथ वक्त बिताएं।

साथ-साथ रहें स्वस्थ

एक-दूसरे के लिए समय निकालें, बॉण्डिंग मजबूत करें। दिन की शुरुआत साथ वॉक से करें। वीकेंड पर बाहर जाएं और रुटीन को तोडें। रिश्तों की बेहतरी के लिए ऐसा जरूरी है। खेलें, इवनिंग  वॉक  करें, मूवी या डिनर प्लान करें। मन में यह इच्छा हो कि साथी को खुश रखना है। हर रिश्ता गिव एंड टेक पर टिकता है। दांपत्य के लिए भी यही बात कही जा सकती है।

सेकंड हनीमून

हर दंपती हनीमून की यादें ताउम्र मन में संजोए रहता है। अगर उम्र के दूसरे दौर में फिर से हनीमून प्लान करें तो कैसा रहे!

प्राइवेट स्कूल की शिक्षिका निशा कहती हैं, जिम्मेदारियों के बीच कब शादी के 25 साल गुजर गए, पता नहीं चला। मगर 25वीं वर्षगांठ पर मेरी बेटी ने मुझे वह तोहफा दिया, जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी। वह एक एमएनसी में कार्यरत है। उसने अचानक हमें सिंगापुर का एक हफ्ते का टूर पैकेज थमा दिया। हमारी खुशी का ठिकाना न था। मेरी सुस्त रफ्तार जिंदगी को जैसे पंख मिल गए। सात दिन पति के साथ कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। हमने हर पल को एंजॉय किया और जिंदगी को नया अर्थ दिया।

तब मुझे एहसास हुआ कि इतने सालों से हमारे दांपत्यसे कौन सी चीजें मिसिंग थीं। खुद के लिए जीना तो जैसे हम भूल ही चुके थे। बेटी ने मुझे एहसास कराया कि अपने लिए जीना भी जरूरी है। ऐसा करके कोई स्वार्थी नहीं कहलाता। अब तो मेरे पति सुधीर ने नियम बना लिया है कि हम हर साल कहीं न कहीं हॉलीडे पर जरूर जाएंगे।

कहते हैं, प्यार की कोई उम्र नहीं होती। जीवन का हर क्षण नया है-कीमती है। इसलिए अपने रिश्ते को पल-पल संवारें, उसमें स्पार्क  जगाएं और मन में जगाएं उम्मीदें आने वाले सालों के लिए!

इंदिरा राठौर


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