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नाज़ुक से हैं लमहे ज़्ारा आहिस्ता...

मां बनना जीवन का सबसे प्यारा और अनोखा एहसास है, लेकिन ख़्ाुशी के लमहे आने से पहले स्त्री में कई शारीरिक-भावनात्मक और हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स संबंध बनाए जाने चाहिए या नहीं, इसे लेकर आज भी कई धारणाएं और मिथक मौजूद हैं। प्रेग्नेंसी में सुरक्षित संबंध

By Edited By: Published: Mon, 01 Jun 2015 04:14 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2015 04:14 PM (IST)
नाज़ुक से हैं लमहे ज़्ारा आहिस्ता...

मां बनना जीवन का सबसे प्यारा और अनोखा एहसास है, लेकिन ख्ाुशी के लमहे आने से पहले स्त्री में कई शारीरिक-भावनात्मक और हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स संबंध बनाए जाने चाहिए या नहीं, इसे लेकर आज भी कई धारणाएं और मिथक मौजूद हैं। प्रेग्नेंसी में सुरक्षित संबंध कैसे बनाए जा सकते हैं, जानें एक्सपट्र्स से।

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तृत्व स्त्री के जीवन का सबसे ख्ाूबसूरत और रोमांचक दौर होता है। हालांकि यह समय कई तरह के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलावों से भरा होता है। इससे पति-पत्नी के सेक्स संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

हॉर्मोंस का खेल

प्रेग्नेंसी के दौरान हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण कभी सेक्स की इच्छा प्रबल हो सकती है तो कभी इससे अरुचि हो सकती है। स्त्रियां भावुक और संवेदनशील हो जाती हैं और चाहती हैं कि पति व परिवार के अन्य सदस्य उनकी केयर करें। उनमें चिडचिडापन, बेचैनी, घबराहट जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। जी मिचलाने, वॉमिटिंग और शरीर में भारीपन महसूस करने से भी सेक्स की इच्छा कम हो सकती है। यह स्थिति तीन महीने तक रहती है। चौथे महीने से पेट का उभार शुरू हो जाता है और जी मिचलाने जैसी स्थितियां कम हो जाती हैं।

एक सर्वे के अनुसार ऐसा माना जाता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान अमूमन स्त्रियों की सेक्स डिज्ाायर्स कम हो जाती हैं, मगर 40 फीसद स्त्रियां सेक्स एंजॉय करती हैं। हालांकि एक अध्ययन में कहा गया है कि प्रेग्नेंसी के 36 हफ्ते बाद पति-पत्नी को सेक्स संबंधों से बचना चाहिए। यानी अंतिम चार महीने में सेक्स संबंधों से नुकसान हो सकता हैै।

परेशानियां और सुझाव

प्रेग्नेंसी के दौरान ब्रेस्ट से निकलने वाला फ्लूइड भी सेक्स संबंधों में बाधा पहुंचा सकता है। कुछ स्त्रियों में ब्रेस्ट सेंसेशन कम हो सकता है, लेकिन प्रसव के चार-पांच महीने बाद स्थितियां सामान्य हो जाती हैं। वजाइनल मसल्स ढीली होने के कारण भी सेक्स क्रिया में बाधा आती है। इसके लिए गर्भावस्था और प्रसव के बाद डॉक्टर की सलाह से हलकी-फुलकी एक्सरसाइज्ा, ख्ाासतौर पर पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज्ा करनी चाहिए। जैसे यूरिन कंट्रोल करने की कोशिश करें। हिप मसल्स सिकोडें, पांच तक गिनें, फिर सामान्य स्थिति में लौटें। दिन में चार-पांच बार पांच-पांच मिनट के लिए यह एक्सरसाइज्ा की जा सकती है। लेकिन पहले डॉक्टर की सलाह ज्ारूर लें।

एक्सपट्र्स की राय

ज्य़ादातर एक्सपट्र्स का मानना है कि पहले और आख्िारी ट्राइमेस्टर (पहले तीन और अंतिम तीन महीने) में सेक्स संबंधों से बचना चाहिए। यदि शारीरिक समस्याएं नहीं हैं तो दूसरे ट्राइमेस्टर यानी चौथे से सातवें महीने तक कुछ सावधानियों के साथ सेक्स संबंध बनाए जा सकते हैं। लेकिन ध्यान देना ज्ारूरी है कि पेट पर दबाव न पडे।

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वारिज्ाा चौधरी कहती हैं, 'संबंध बनाते हुए ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती को दर्द, दबाव या भावनात्मक तनाव न हो। पत्नी की शारीरिक-मानसिक स्थिति व उसकी इच्छा का ध्यान रखना भी अनिवार्य है। सामान्य स्थितियों में सेक्स संबंधों से बच्चे को नुकसान नहीं होता। लेकिन पहले मिसकैरेज हुआ हो या प्री-टर्म लेबर जैसा रिस्क हो तो सेक्स संबंधों के लिए डॉक्टर की सलाह ज्ारूरी है। सामान्य स्थिति में गर्भ (वूम) के भीतर बच्चा एम्नीऑटिक सैक और यूट्रस की मसल्स में सुरक्षित होता है। बच्चे को इसमें इन्फेक्शन का ख्ातरा नहीं होता। इसलिए सेक्स संबंधों से उसे नुकसान नहीं होता। हां, गर्भावस्था के दौरान स्त्री की सेक्स ड्राइव में उतार-चढाव हो सकता है। कभी उसका रुझान घट सकता है तो कभी बढ सकता है। कई प्रेग्नेंट स्त्रियां थकान और नॉज्िाया की शिकायत करती हैं। ऐसा पहली प्रेग्नेंसी के दौरान ज्य़ादा होता है। इससे सेक्स इच्छा में कमी आती है। पुरुषों की सेक्स डिज्ाायर्स भी इससे प्रभावित होती हैं। कई पुरुषों को पत्नी की प्रेग्नेंसी के दौरान रिजेक्शन की फीलिंग भी होती है। इसका कारण है, स्त्री का सेक्स क्रिया में दिलचस्पी न दिखाना। इसके अलावा प्रेग्नेंसी में वही सबके आकर्षण का केंद्र होती है, जिससे पुरुष को उपेक्षा महसूस होती है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ काउंसलिंग, दिल्ली की चेयरपर्सन डॉ. वसंता आर. पत्रे कहती हैं, 'यूट्रस सुरक्षित जगह है, जहां भ्रूण को विकसित होने का पूरा मौका मिलता है। शुरुआती चरण में गर्भाशय के प्रवेशद्वार या सर्विक्स में म्यूकस प्लग बनता है, जो किसी भी बाहरी बैक्टीरिया को यूट्रस में प्रवेश करने से रोकता है। इस कारण गर्भवती आराम से दैनिक क्रियाएं कर सकती है। इसमें सेक्स भी शामिल है। मिसकैरेज के मामले भी शुरू के तीन महीनों में ही ज्य़ादा होते हैं, इसलिए इस दौरान सेक्स संबंध न बनाएं तो बेहतर होगा।

सेक्स संबंधों में रखें ध्यान

1. प्रेग्नेंसी के छठे से बारहवें हफ्ते तक इंटरकोर्स न करें तो बेहतर होगा। इससे मिसकैरेज का ख्ातरा हो सकता है। आख्िारी दो महीनों में भी सेक्सुअल प्लेज्ार के लिए अन्य विकल्पों को चुना जा सकता है, ताकि प्रसव सुरक्षित हो।

2. मिशनरी पॉज्िाशन (जिसमें पुरुष ऊपर रहे) से भी गर्भस्थ शिशु को नुकसान हो सकता है।

3. यदि प्रेग्नेंसी सामान्य है और कोई जटिल समस्या नहीं है तो चौथे से सातवें महीने तक सेक्स संबंध सुरक्षित हैं। लेकिन इस दौरान स्त्री के कंफर्ट का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

4. प्रेग्नेंसी में साइड बाय साइड, सिटिंग पॉज्िाशन या वुमन ऑन टॉप जैसी पॉज्िाशंस बेहतर होती हैं।

5. सेक्स क्रिया में परेशानी हो तो ओरल सेक्स, मसाज और फोरप्ले ज्ारूर करें।

6. सेक्स संबंधों के दौरान पर्सनल हाइजीन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वजाइनल एरिया में किसी भी बाहरी वस्तु या सेक्स टॉयज्ा का इस दौरान प्रयोग न करें।

7. ऐसी किसी क्रीम या जैल का प्रयोग न करें, जिससे एलर्जी हो सकती हो।

रेड अलट्र्स

गर्भावस्था में सेक्स संबंधों में सावधानी बरतें और डॉक्टर की सलाह लें यदि-

1. पहले मिसकैरेज हुआ हो

2. पहले ट्राइमेस्टर के दौरान रक्तस्राव या स्पॉटिंग जैसी समस्याएं हुई हों

3. सेक्स संबंधों के दौरान स्त्री को दर्द या ब्लीडिंग हो

4. गर्भधारण के लिए उपचार कराया हो

5. पहली प्रेग्नेंसी में उम्र अधिक हो।

इंदिरा राठौर


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