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प्रेम का राग गुनगुनाते हैं हम: सलिल भट्ट-प्रीति

सात्विक वीणा के सृजनकर्ता सलिल भट्ट को संगीत विरासत में मिला। पिता पं. विश्वमोहन भट्ट ने मोहन वीणा का सृजन किया। उन्हें पद्मश्री सहित विश्वप्रसिद्ध ग्रैमी अवॉर्ड मिला। सलिल की पत्नी हैं प्रीति। तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद उम्मीद और भरोसे के बल पर इन्होंने अपने दांपत्य को लगातार संवारा है। मिलते हैं इस दंपती से।

By Edited By: Published: Thu, 03 Oct 2013 11:22 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2013 11:22 AM (IST)
प्रेम का राग गुनगुनाते हैं हम: सलिल भट्ट-प्रीति

सात्विक वीणा के सृजनकर्ता सलिल भट्ट को संगीत विरासत में मिला। पिता पं. विश्वमोहन भट्ट ने मोहन वीणा का सृजन किया। उन्हें पद्मश्री सहित विश्वप्रसिद्ध ग्रैमी अवॉर्ड मिला। सलिल की पत्नी हैं प्रीति। तमाम उतार-चढावों के बावजूद उम्मीद और भरोसे  के बल पर इन्होंने अपने दांपत्य को लगातार संवारा है। मिलते हैं इस दंपती  से।

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जयपुर घराने के पं. सलिल भट्ट को संगीत विरासत में मिला है। दादी चंद्रकला भट्ट आजादी से पहले के भारत में संगीत की प्रवक्ता थीं तो पिता पं. विश्वमोहन भट्ट ने मोहन-वीणा बनाई। सलिल ने प्रीति से 20  वर्ष पहले प्रेम विवाह किया। प्रीति जयपुर के एमएनआइटी कॉलेज  में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। संगीतकार और प्रोफेसर की यह जुगलबंदी कितनी सफल है, जानते हैं उनसे।

इलाहाबाद-जयपुर कनेक्शन

प्रीति : मैं इलाहाबाद में पैदा हुई थी। पापा डॉक्टर थे क्रेंद्र सरकार में। उनका ट्रांस्फर होता रहता था। कुछ समय जयपुर में भी रहे। मेरी कॉलेज की शिक्षा यहीं हुई। मुझे संगीत में रुचि थी। मैं पापा के साथ पं. विश्वमोहन भट्ट जी से मिली। फिर सलिल जी से संगीत सीखने लगी। इसी दौरान हमारी दोस्ती हुई।

सलिल :  प्रीति से पहली मुलाकात संगीत की कक्षाओं के दौरान हुई। इंस्ट्रूमेंट्स में इन्हें दिलचस्पी थी। ये मुझसे संगीत सीखती थीं। क्लासिकल के बजाय इन्हें फिल्म संगीत में रुचि थी, मगर इनकी पसंद बेहद रिफाइंड किस्म की थी। इन्होंने कहा कि मैं फिल्म लेकिन में गुलजार के लिखे और लता जी के गाए गीत यारा सीली सीली.. की धुन बजा कर सुनाऊं। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हुई। यह 1991 की बात है।

बातें जो करीब लाई

सलिल :  उस वक्त मेरे पास बाइक हुआ करती थी। प्रीति जयपुर में नई थीं। इन्हें कहीं जाना था तो मैंने इनसे कहा कि बाइक से छोड दूंगा। हम ओल्ड जयपुर की ओर जा रहे थे। अचानक एक साइकिल सवार सामने आ गया और उसे बचाने के लिए मैंने तेज ब्रेक लगाया। वह तो बच गया, पर हम गिर गए। खैर बडी चोट नहीं आई.। पहली बार साथ जाने का तजुर्बा कुछ ऐसा था। गिरते-गिरते मैं चिल्लाया- सब ठीक तो है? प्रीति बोलीं- पहले पूरी तरह गिर तो जाओ, फिर पूछना.। मैं बडा शर्मिदा हुआ कि प्रीति सोच रही होंगी कि कैसे अनाडी के साथ बैठ गई।

एक और घटना मॉनसून की है। तेज बारिश थी। सडकों पर पानी भरा था। इनका फोन आया कि ये किसी जगह खडी हैं और वहां से इन्हें पिक कर लूं। मैं तुरंत बाइक से वहां पहुंचा। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, तो हम ऐसे ही मौसम में निकल पडे। अचानक मेरी बाइक एक बडे से गड्ढे में गिर गई। पानी भरा होने से गड्ढे का पता नहीं चला। प्रीति पहले ही कूद गई थीं। इसके बाद कुछ दिन तक तो ये मेरे साथ गई ही नहीं।

प्रीति :  वह समय दूरदर्शन का था। पंडित विश्वमोहन  भट्ट जी के साथ एक कार्यक्रम में सलिल ने भी सात्विक वीणा बजाई थी। हम लोग तब दिल्ली में रहते थे। मेरे पूरे परिवार ने यह कार्यक्रम देखा और पापा इनसे प्रभावित भी हुए। लेकिन शादी के लिए तो कुछ और गुण भी देखे जाते हैं..। हमारे परिवार में डॉक्टर्स ज्यादा हैं। शायद पापा मेरे लिए भी निश्चित करियर वाला लडका चाहते थे।

लडका करता क्या है?

सलिल :  हां.., प्रीति के पिता ने कहा कि भई, म्यूजिक  तो ठीक है, मगर लडका करता क्या है? शादी तो हमें करनी ही थी तो मैं इनके पापा से मिलने पहुंचा। उसी दौरान मेरा चयन एमबीए और आइएमए  में हो गया था। इनके पापा खुश हुए कि चलो, लडका कुछ काबिल तो हुआ। लेकिन जब मैंने उनसे कहा कि मैं एमबीए या मिलिट्री में नहीं, संगीत में ही आगे बढना चाहता हूं तो वे चकित रह गए। बोले, तुम कैसे व्यक्ति हो? भरी प्लेट सामने है और तुम ठुकरा रहे हो? मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि आगे स्थितियां ठीक होंगी, हालांकि मैं निश्चित नहीं कह सकता कि कितने साल बाद यहां पहचान बना सकूंगा। मेरे सभी दोस्त दो-तीन या पांच साल बाद इंजीनियर, एमबीए या डॉक्टर बनने वाले थे। मगर मुझे नहीं पता था कि मेरी मंजिल कहां होगी। एक बार यही बात मैंने गुरुजी (पिताजी) से पूछी तो उन्होंने मुझे कुछ ऐसे देखा कि वहां खडे रहने की हिम्मत नहीं हुई। उनकी इस नजर में ही उनका जवाब छिपा था। खैर, शादी को लेकर मेरे घर वालों की कोई आपत्ति नहीं थी। पिताजी ने इतना ही पूछा, क्या शादी को लेकर सीरियस हो? मेरे हां कहने पर उनकी रजामंदी मिल गई।

प्रीति : दरअसल हर पिता की तरह पापा मेरे भविष्य को लेकर चिंतित थे..। अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मैंने रिसर्च पूरी की थी। शादी के समय तक मैं एक कॉलेज में पढाने भी लगी थी। खैर, अंत में पापा कन्विंस हुए। दोनों परिवार मिले और परंपरागत ढंग से शादी हुई।

शादी के बाद तालमेल

सलिल :  मुश्किलें तो हुई। जिम्मेदारियां भी बढ गई। प्रीति काम कर रही थीं। मैंने भी कंस‌र्ट्स पर ध्यान देना शुरू किया, कमर्शियल  स्तर पर क्लासेज लीं। बहुत मेहनत की और जूझता रहा। मैं वर्कोहॉलिक हूं, बहुत काम कर सकता हूं। शुरुआत में हमने अपने खर्च भी सीमित रखे। धीरे-धीरे स्थितियां सुधरीं। प्रीति ने मुझ पर भरोसा रखा, इसीलिए अपनी राह से डिगा नहीं। धैर्य का फल भी मिला। फिर वह दिन भी आया, जब मैं जर्मनी की संसद में बजा रहा था और प्रीति तानपूरे पर थीं। यह 2005  की बात है। कई कंस‌र्ट्स  में प्रीति भी साथ जाती हैं। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ मैं आइसलैंड गया, केनेडा में म्यूजिक के सर्वश्रेष्ठ अवॉर्ड जूनो के लिए मेरा नामांकन हुआ। ऐसे दौर में जब कई म्यूजिक कंपनीज  बंद हो रही हैं, इस साल मैंने लगातार तीन एलबम्स  लॉन्च  किए हैं।

प्रीति :  स्थितियां जल्दी ही ठीक हो गई। शादी के बाद सामंजस्य बिठाने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। मेरी सास भी टीचर थीं। उन्होंने मुझसे परंपरागत बहुओं जैसी अपेक्षाएं नहीं रखीं। पंडितजी और सलिल ज्यादातर  बाहर ही रहते थे। घर में सास के साथ मैं ही रहती थी।

बंटवारा जिम्मेदारियों  का

सलिल :  घर और बच्चे तो प्रीति के हवाले हैं। बेटा सात्विक दसवीं में है और बेटी सत्कृति छठी क्लास में। बेटे को संगीत और कंप्यूटर्स में दिलचस्पी है तो बेटी को ड्रॉइंग-पेंटिंग में। बेटी के नाम पर मेरा एलबम सत्कृति हाल ही में रिलीज  हुआ है। प्रीति घर में ज्यादा रहती हैं, इसलिए रिश्ते-नाते भी ये ही निभाती हैं। घर के बडे-बूढे इन्हें बहुत मानते हैं। मेरी भाभी भावना (चचेरे भाई की पत्नी) से इनकी खूब बनती है तो गुरुबहन शिवा भी इनकी अच्छी दोस्त है। मैं तो घर पर भी होता हूं तो ज्यादातर  समय फोन, मेल्स या साजों की देखरेख में ही बीतता है।

प्रीति :  घर के कामकाज में मुझे सलिल का ज्यादा सपोर्ट नहीं मिल पाता। बच्चों की पढाई-लिखाई, पीटीएम जैसे काम अकेले ही मैनेज करने पडते हैं। हालांकि जब ये घर पर होते हैं तो काफी मदद करते हैं। बाहर जाने के बाद भी कई चीजें फोन से मैनेज करते हैं। बच्चों को कुछ चाहिए तो वे सलिल को फोन कर देते हैं। पापा (पं. विश्वमोहन भट्ट) से भी हमारा दोस्ताना रिश्ता है। उन्होंने कभी दूरी नहीं रखी। बच्चों को सिखाते हैं-उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। बच्चे भी दादा जी की कही हुई कोई बात नहीं नकारते।

अलग विचारों का आकर्षण

सलिल :  मैं थोडा जटिल स्वभाव का हूं। शायद सारे संगीतकार ऐसे होते हों, लेकिन प्रीति सुकून-चैन से जीने वाली हैं। हम दो विपरीत ध्रुवों की तरह हैं। वह पूरब सोचेंगी तो मैं पश्चिम, लेकिन यही विरोधी स्वभाव हमें एक-दूसरे के करीब लाया। फिर भी प्रेम का राग तो हम साथ-साथ गुनगुनाते हैं। मुझे क्रिकेट और फिल्में पसंद हैं, प्रीति को नहीं। मुझे तीखा-मिर्चीला खाना पसंद है। खाते समय आंसू न निकलें तो मुझे मजा नहीं आता। मगर प्रीति को सिंपल-हेल्दी खाना भाता है। वह बच्चों को भी ऐसा ही खाना देती हैं। वह अपने पिता की तरह फोकस्ड  हैं। उनकी हर बात सटीक होती है। अनुशासित हैं, कई बार तो बच्चे इनसे घबराने लगते हैं।

प्रीति :  हां, इन्हीं बातों के कारण कई बार झगडा भी होता है, लेकिन हम लंबे समय तक इसे नहीं चलने देते। हम एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करना जानते हैं।

सलिल :  मुझे हर चीज ऑर्डर में चाहिए। अव्यवस्था से मुझे चिढ है। सोफा हो या बिस्तर, मैं प्रोफेशनल्स की तरह उन्हें ठीक कर सकता हूं। मुझे अकसर बाहर जाना पडता है। मेरा सूटकेस तैयार रहता है। देखता रहता हूं कि कहीं किसी कपडे की क्रीज न बिगड जाए। मेरी यह आदत भी झगडे की वजह बनती है। कई बार बच्चे भी प्रीति का साथ देते हैं। तीन लोगों के बीच मैं अकेला पड जाता हूं। मेरी यह आदत बेटी में भी आई है।

प्रीति :  सलिल दूरदर्शी और आशावादी हैं। कैसी भी स्थिति हो, कभी तनाव में नहीं दिखते। अपनी जडों से जुडे हैं, इसलिए हमारे बीच कभी अहं का टकराव नहीं होता। हम हर विषय पर बात कर सकते हैं। देश-विदेश में उनका बहुत सम्मान है। कई बार हम साथ जाते हैं और दर्शकों की तालियां बजती हैं तो मुझे गर्व महसूस होता है। सलिल समय के बहुत पाबंद हैं। कहीं जाना हो तो ये समय से थोडा पहले ही तैयार हो जाते हैं, पर मैं इतनी जल्दबाज नहीं हूं। अगर हम जल्दी तैयार न हों तो इन्हें गुस्सा  आ जाता है। इनके साथ मैं हरदम भागती रहती हूं। वैसे सलिल बहुत केयरिंग  हैं। बाहर हों तो फोन सेहालचाल लेते रहते हैं। इन्हें सबका खयाल रहता है।

इंदिरा राठौर

इंदिरा राठौर


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