शुभ हुई शुभ दृष्टि की रस्म
संदीपनाथ आज बॉलीवुड के चंद चर्चित गीतकारों में शुमार हैं। फिल्म फैशन, सांवरिया, साहब बीबी और गैंगस्टर और बुलेट राजा जैसी फिल्मों के गीत इन्होंने लिखे। इनकी हमसफर हैं सोमा। दोनों की शादी को 14 वर्ष हो चुके हैं। शादी और जिंदगी को लेकर इनका फलसफा क्या है, जानते हैं इस दंपती से।
दीपनाथ आज बॉलीवुड के चर्चित गीतकारों में शुमार हैं। इनकी जीवन-संगिनी हैं सोमा। शादी से पहले एक-दूसरे को देखा भी नहीं था इन्होंने। दोनों मानते हैं कि वैवाहिक जीवन में अहं से दूर रहना जरूरी है। साहित्य-संगीत व कला से जुडाव रखने वाले इस दंपती से मिलते हैं।
अपनी क्रिएटिव यात्रा के बारे में कुछ बताएंगे?
संदीपनाथ : मैंने इलाहाबाद और बिजनौर से पढाई की। फिर दिल्ली आकर कुछ समय पत्रकारिता और वकालत की। कविताएं लिखने का शौक था। इसी शौक ने नया रास्ता दिया और वह रास्ता बना गीत लेखन का। मैंने वर्ष 1998 में मुंबई का रुख किया। ऐड फिल्मों के लिए काम करने के बाद एक दिन फिल्म पैसा वसूल के लिए काम मिला। अभिनेत्री मनीषा कोइराला की मदद से बतौर गीतकार फिल्मों में ब्रेक मिला। फिर सरकार, सरकार राज, भूत, फैशन, सांवरिया, साहब बीवी और गैंगस्टर एवं बुलेट राजा जैसी तमाम फिल्मों के लिए गीत लिखे। इसके अलावा सीरियल्स के लिए भी लिख रहा हूं। बस यही है मेरी क्रिएटिव जर्नी..।
सोमानाथ : मैं इलाहाबाद की हूं। पढाई-लिखाई वहीं से हुई। वर्ष 2000 में शादी के बाद से मुंबई में हूं। तीन बच्चे हैं। बडी बेटी अंबिका एवं जुडवा बच्चे अनुष्का-अयन।
आपकी मुलाकात कब, कैसे, कहां हुई?
संदीपनाथ : (हंसते हुए) हमारी मुलाकात 7 मार्च को शादी के मंडप में ही हुई। शादी से पहले हम मिले ही नहीं। हमें एक-दूसरे का फोटो दिखाया गया था।
..एक-दूसरे को देखा नहीं? फिर शादी के लिए हां कैसे किया?
संदीपनाथ : हमारे घर वाले शादी के बारे में सोच रहे थे। मैं फिल्म इंडस्ट्री में काम तलाश करने मुंबई आ चुका था और अपने पांव जमा लेने के बाद ही शादी करना चाहता था। लेकिन घर वाले ज्यादा इंतजार करने के लिए तैयार नहीं थे। फिर एक दिन माता जी ने फोन पर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करते हुए मुझे शादी के लिए मना ही लिया। हालांकि मेरे मन में आशंका थी कि मुंबई की संघर्ष भरी जिंदगी को पत्नी कैसे हैंडल करेगी। लेकिन शादी के बाद सोमा ने मेरा पूरा साथ दिया। आज जहां हूं, उसमें इनका बडा योगदान है।
अच्छा तो यह पूरी तरह ट्रडिशनल मैरिज थी...
संदीपनाथ : जब घर वालों ने शादी के लिए बात चलानी शुरू की तो सोमा के एक चचेरे भाई ने मेरी मां से कहा कि उनके मामा की बेटी एमए में पढ रही है। इस तरह बात आगे बढी और घर के बडे-बुजुर्ग आपस में मिले। मेरी मां और मौसी ने मेरी भावी पत्नी से मुलाकात की और इस तरह ये उन्हें पसंद आ गर्ई। यह पूरी तरह घर-परिवार वालों की पसंद की परंपरागत किस्म की शादी थी।
सोमा आप पहली बार संदीप से मंडप में ही मिलीं। उन्हें देख कर किस तरह के खयाल आए दिल में?
सोमानाथ : सच कहूं तो उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। परंपरागत शादी में लडकियां वैसे ही थोडी घबराई रहती हैं। वैसे भी शादी के मंडप में कोई क्या सोच सकता है? कई चिंताएं छाई रहती हैं। हम बंगाली परिवार से हैं। हमारे यहां शादी में एक रस्म होती है, जिसे शुभ दृष्टि कहते हैं। इसमें दुलहन अपने चेहरे को पान के पत्ते से ढक कर दूल्हे के सामने आती है। फिर दूल्हा अपनी दुलहन के चेहरे से पान का पत्ता हटा कर दुलहन को अपना मुंह दिखाता है। यही वह रस्म थी, जिसके जरिये हमने पहली बार ठीक से एक-दूसरे को देखा।
अच्छा एक-दूसरे के कौन से गुण आप दोनों को भाए?
संदीपनाथ : हम दोनों को सादगी से जीना अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि कपल के लिए जिंदगी की चुनौतियों से निपटने के लिए इससे कारगर कुछ और नहीं हो सकता।
आप दोनों में कौन सी बातें कॉमन हैं?सोमानाथ : सादगी एवं सामाजिकता के अलावा साहित्य, समाज व संस्कृति से प्यार व लगाव। हम दोनों को ही पढने-लिखने का बहुत शौक है।
कभी मनमुटाव की नौबत आई?
संदीपनाथ : ऐसे मौके कम ही आए हैं जीवन में। आए भी तो समय की कमी रहती है हमारे पास। झगडने के लिए समय चाहिए। मैं पढाई-लिखाई और लेखन में उलझा रहता हूं और सोमा बच्चों और घर की जिम्मेदारी में मशगूल रहती हैं। समय ही न हो तो लडें कैसे? मुझे लगता है, इतना कम समय है, उसे भी व्यर्थ झगडों में क्यों गंवाना!
सोमानाथ : वैसे भी हम अपनी समस्याओं को सुलझाना जानते हैं। हमें एक-दूसरे की जरूरतों, इच्छाओं, सपनों व आदतों के बारे में अच्छी तरह पता है। जब जैसा समय हो, उसके हिसाब से खुद को ढालना आता है।
गुस्सा किसे ज्यादा आता है?
संदीपनाथ : आमतौर पर मुझे गुस्सा नहीं आता है। कभी कोई अति कर दे तो क्रोध आएगा ही। आखिर तो इंसान हूं। जैसे कोई बेवकूफी वाला काम कर दे, बिना वजह पैसा बर्बाद करे तो मुझे बहुत गुस्सा आता है।
सोमानाथ : मुझे गुस्सा नहीं आता। क्रोध से बडा कोई दुश्मन नहीं। इसलिए मैं हर समस्या को शांति से सुलझाने में यकीन रखती हूं।
संबंधों के स्तर पर आप दोनों की ताकत और कमजोरियां क्या हैं?
संदीपनाथ : पता नहीं मेरी ताकत और अच्छाई क्या है। मगर मेरी बुराई यह है कि परिवार को समय नहीं दे पाता। यहां तक कि कई बार तो अपनी सेहत का भी ध्यान नहीं रख पाता।
सोमानाथ : अरे! मैं तो बुरी हूं ही नहीं..। इसे ही मेरी ताकत या अच्छाई समझ लें।
आपकी जिंदगी में यादगार लमहे कौन से हैं?
संदीपनाथ : क्या भूलूं-क्या याद करूं। बहुत से यादगार लमहे हैं जीवन के। मेरे मन में तो उन यादगार लमहों की धमक गूंजती रहती है जो आने वाले हैं।
सोमानाथ : बहुत से ऐसे लमहे हैं। हर इंसान के मन में यादगार लमहों की अनखुली किताब होती है। जब भी कुछ ऐसा हमारे साथ होता है, वे यादें ताजा हो जाती हैं।
जिंदगी का यादगार तोहफा क्या है?
संदीपनाथ-सोमा : हमारे तीनों बच्चे। ये हमें ऊपर वाले की अनुपम भेंट हैं। पहले बेटी अंबिका हुई। इसके बाद जुडवा बेटा-बेटी अयन और अनुष्का का जन्म हुआ।
एक-दूसरे की पसंद का खयाल कैसे रखते हैं?
सोमानाथ : सिंपल है- जो दूसरे को पसंद नहीं, उसे करने से बचते हैं।
एक-दूसरे के काम में मदद करते हैं?
संदीप-सोमा : जब भी मदद चाहिए, हम एक-दूसरे को देते हैं। सहयोग, सपोर्ट और मदद से ही आगे बढ सकते हैं।
मुंबई की बिजी लाइफस्टाइल में किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
संदीपनाथ : इस सवाल का जवाब मैं आज तक ठीक से नहीं ढूंढ पाया हूं। सामंजस्य शब्द में ही कहीं उत्तर छिपा है। दो लोग चाहें तो आपस में तालमेल बैठ जाता है। परिस्थिति के हिसाब से ही परिवार का सपोर्ट भी मिलता है। पत्नी और बच्चे मेरी व्यावसायिक प्रतिबद्धता की गंभीरता को समझते हैं। इस मामले में मैं भाग्यशाली हूं।
प्रेम-सम्मान, त्याग, भरोसा और समर्पण..क्या-क्या जरूरी है रिश्तों में?
सोमानाथ : हर बात जरूरी है। समर्पण और भरोसे के बिना तो रिश्ता चल ही नहीं सकता। प्यार रिश्ते को मजबूती देता है। एक और बात है जो रिश्तों के लिए जरूरी है। वह है- अहं को खत्म करना। अहं से रिश्ता आगे बढ ही नहीं सकता। जो है सब तेरा है.. रिश्ते में यही सोच ऊपर होनी चाहिए।
दांपत्य की सफलता का राज क्या है?
सोमानाथ : आपसी तालमेल, झूठे दंभ या इगो से बचना और एक-दूसरे को स्पेस देना दांपत्य की सबसे बडी जरूरत है।
संदीपनाथ : छोटी-छोटी बातों को लेकर मुंह फुलाना या रूठना अच्छी बात नहीं है। ये कब बडी बन जाएं, पता नहीं चलता। छोटी समस्याओं को सुलझा लेना चाहिए, क्योंकि वे बडी हो गई तो जीवन नर्क हो जाएगा।
रतन