फीमेल सेक्सुअलिटी इतने सवाल क्यों?
स्त्रियां पैसिव पार्टनर होती हैं, उनमें सेक्स की इच्छा कम होती है, उन्हें फेक ऑर्गेजम होता है, वे अति संवेदनशील होती हैं, सच तो यह है कि सेक्स के मामले में स्त्री और पुरुष दो विपरीत ध्रुवों के प्राणी हैं.., अरे-अरे रुकिए! हम यहां इन धारणाओं को पुख्ता नहीं, खारिज क रना चाहते हैं। फीमेल सेक्सुअलिटी को लेकर कई स्टीरियोटाइप्ड धारणाएं हैं। इनमें कितनी सच्चाई है, यही बता रहे हैं इस लेख के जरिये।
मेन आर फ्रॉम मार्स विमेन आर फ्रॉम वीनस..। हो सकता है, कई मामलों में यह उक्ति सच हो, मगर अंतरंग रिश्तों की बात की जाए तो यह बात थोडी पुरानी हो गई है। सेक्स डिजायर्स को लेकर दोनों में इतना भी फर्क नहीं है, जितना कि कहा जाता रहा है। स्त्रियों की सेक्सुअलिटी को लेकर अधिकतर जो बातें की जाती हैं, वे आधा सच ही होती हैं।
कुछ यही मानना है सेक्स और रिलेशनशिप एक्सपर्ट व रिसर्चर क्रिस्टीन मार्क का, जिनका शोध कुछ समय पहले हफिंगटन पोस्ट में प्रकाशित हुआ है। वह मानती हैं कि स्त्रियों की सेक्सुअलिटी को लेकर आमतौर पर गलत और भ्रामक सूचनाएं लोगों तक पहुंचती हैं। स्त्रियां स्वाभाविक संकोचवश कुछ कह नहीं पातीं, क्योंकि सेक्स डिजायर्स पर बोलना उनके लिए आज भी मुश्किल है।
आखिर वे कौन सी बातें हैं, जो स्त्री की सेक्सुअलिटी को लेकर कही जाती हैं, मगर ये स्त्री की स्वाभाविक सेक्स डिजायर्स से बिलकुल मेल नहीं खातीं, जानते हैं।
धारणा 1
स्त्रियों में सेक्स इच्छा कम होती है
यह बात एक हद तक ही सही है। शोध बताते हैं कि स्त्री व पुरुष दोनों की सेक्स डिजायर्स में कभी न कभी कमी आती है। सेक्सएक्सपर्ट्स मानते हैं कि कई बार स्त्रियां भी शिकायत करती हैं कि उनके पार्टनर की सेक्स-इच्छा कम है और इससे उनके संबंध प्रभावित हो रहे हैं। चूंकि स्त्रियों को प्रेग्नेंसी, मेनोपॉज और कई हॉर्मोनल बदलावों से गुजरना पडता है, लिहाजा उनकी सेक्स इच्छाएं समय-समय पर बदलती हैं।
धारणा 2
पहले डिजायर्स, फिर अराउजल
ऐसा माना जाता है कि सेक्सुअल रिस्पॉन्स में इच्छाएं प्रमुख हैं, इसी से अराउजल होता है और इसके बाद ही कोई स्त्री ऑर्गेजम तक पहुंचती है। लेकिन कई बार डिजायर्स न होने के बावजूद अराउजल हो जाता है। अराउजल के बाद ही सेक्स की इच्छा जाग्रत होती है। डिजायर्स किसी भी स्तर पर पैदा हो सकते हैं, इसलिए यदि पार्टनर के साथ भी इच्छाएं न जगें तो इसमें शर्म या हीन भावना नहीं महसूस होनी चाहिए। कई स्त्रियां मानती हैं कि शुरू में उनके भीतर कोई इच्छा नहीं होती, लेकिन पार्टनर के फोरप्ले शुरू करने के बाद अराउजल होने लगता है, इसके बाद ही उनमें सेक्स डिजायर्स पैदा होती हैं। सेक्स संबंधों में ऐसी कोई शर्त नहीं है कि पहले इच्छा जगेगी, तभी संबंध बनेगा।
धारणा 3
स्त्रियों में सेक्सुअल डिस्फंक्शन ज्यादा
सर्वे और रिसर्च भी ऐसा सटीक आंकडा नहीं दे सकते कि कितने प्रतिशत लोग सेक्सुअल डिस्फंक्शन से ग्रस्त हैं। इसका कारण यह है कि हम सचमुच नहीं जानते कि जिसे डिस्फंक्शन कहा जा रहा है, वह सही मायने में डिस्फंक्शन है भी या नहीं। वर्ष 1999 में हुए एक शोध में कहा गया था कि लगभग 43 प्रतिशत स्त्रियां सेक्सुअल डिस्फंक्शन से ग्रस्त हैं। इस तरह के कुछ और सर्वे भी हुए और इनके आधार पर एक आंकडा दे दिया गया। दरअसल इस सर्वे में प्रतिभागियों को अपने जवाब हां या नहीं में देने थे। उनसे पूछा गया था कि क्या पिछले एक वर्ष में दो महीने तक उन्होंने इन सात में से किसी एक समस्या का सामना किया? इस सवाल के जवाब में सिर्फ दो विकल्प थे- हां/नहीं। जिस स्त्री ने जवाब हां दिया, उसे इस 43 प्रतिशत वाली श्रेणी में शामिल कर लिया गया। प्रतिभागी स्त्रियों को यह सुविधा नहीं दी गई कि वे अपने जवाब को विस्तार में बता सकें। जबकि उनकी कुछ समस्याएं परफॉर्मेस संबंधी बेचैनी, ल्युब्रिकेशन या सेहत को लेकर थीं।
डिस्फंक्शन के अलावा भी ऐसे कई कारण हैं, जिनसे सेक्स प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। जैसे- कोई बीमारी, सर्जरी, प्रसव, सामाजिक-पारिवारिक कारण।
धारणा 4
सेक्स की यादा इच्छा सामान्य नहीं
सच्चाई यह है कि स्त्रियों में भी पुरुषों की ही तरह सेक्स इच्छा कम या ज्यादा हो सकती है। ज्यादा इच्छा होने का अर्थ यह नहीं है कि स्त्री सामान्य नहीं है। कई बार हॉर्मोनल बदलावों के दौर में भी लिबिडो स्तर बढने लगता है। इस तरह का एक ऑनलाइन सर्वे हाल ही में कराया गया। इसमें स्त्रियों की सेक्सुअलिटी को परखने की कोशिश की गई। सर्वे में लगभग 52 फीसदी स्त्रियों को हाइली सेक्सुअल श्रेणी में रखा गया। यह नया सर्वे स्त्रियों में लो लिबिडो को सामान्य मानने वालों को भी जवाब देता है। कहा जा सकता है कि स्त्रियों में भी लिबिडो ज्यादा या कम हो सकता है।
धारणा 5
स्त्रियां पुरुषों से बहुत अलग हैं
जीवन के कुछ पहलुओं पर उनमें कुछ अंतर हो सकता है। बायोलॉजिकल स्तर पर फर्क हो सकता है, लेकिन सेक्स डिजायर्स के स्तर पर स्त्री-पुरुष में कोई बडा फर्क नहीं है। क्रिस्टीन मार्क अपने निरंतर शोधों के बाद इसी नतीजे पर पहुंचती हैं। जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि स्त्री या पुरुष दो विपरीत ध्रुवों के प्राणी नहीं हैं। वे इसी दुनिया में समान परिस्थितियों में जन्मे और पले-बढे हैं। हालांकि थोडा फर्क उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में हो सकता है। दरअसल हमने अपने मन में सदियों से यह धारणा बिठा रखी है कि स्त्री पुरुष के मुकाबले कमतर है और यह धारणा जीवन के हर स्तर पर काम करती है। जाहिर है, सेक्स में भी हम स्त्रियों को पैसिव भूमिका में देखने के आदी हैं, जबकि नए दौर के स्त्री-पुरुष इस धारणा को खारिज कर रहे हैं। कम से कम इस मामले में कोई जेंडर इश्यू नहीं है।
क्रिस्टीन मार्क के शोध को ही बल देता है एक दूसरा शोध जो पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ। इस शोध में कहा गया है, हां-कुछ मामलों में स्त्री और पुरुष की सोच में फर्क हो सकता है, लेकिन वे इतने भी अलग-अलग नहीं हैं, जितना समझा जाता है। अलग-अलग 13 शोधों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि संबंधों की बात करें तो पार्टनर के चयन से लेकर सेक्स में विफल होने और परफॉर्मेस को लेकर होने वाले भय से स्त्री व पुरुष दोनों ही जूझते हैं। शोध में कुछ नतीजे निकले, उनमें से दो ये हैं-
वह पैसिव पार्टनर नहीं
हो सकता है आप अभी तक इसी सोच में डूबे हों कि स्त्री पैसिव पार्टनर है। वर्ष 2011 में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि एक पुरुष दिन भर में 19 बार सेक्स के बारे में सोच सकता है, जबकि स्त्री अधिकतम 10 बार तक। सच्चाई यह है कि उम्र बढने के साथ-साथ स्त्री की सेक्स ड्राइव भी बढती है। 35-40 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते स्त्रियों को अपनी सेक्स लाइफ में संतुष्टि मिलने लगती है। स्त्रियों को फेक ऑर्गेजम होता है, यह मानने वालों के लिए एक तथ्य भी है कि 40+ की 70 फीसदी स्त्रियां मानती हैं कि उन्हें ऑर्गेजम का अनुभव होता है।
वह इतनी भी इमोशनल नहीं
प्रकृति ने स्त्री को भावुक बनाया है और उसके आंसू जल्दी निकल आते हैं। मगर इस तथ्य से यह साबित नहीं होता कि पुरुष पत्थरदिल होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि संबंधों के स्तर पर पुरुष स्त्री की तुलना में अधिक भावुक और तनावग्रस्त रहते हैं। संबंध बेहतर होते हैं तो स्त्री की तुलना में पुरुष ही ज्यादा खुश रहते हैं। हालांकि इसका एक कारण यह भी है कि स्त्री के पास परिवार व समाज का एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम होता है। संबंध ठीक न हों तो भी स्त्रियों में जूझने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है।
सही-गलत से परे हैं कुछ बातें
स्त्रियों की सेक्सुअल डिजायर्स (पुरुषों की भी) पर बात करना किसी मुश्किल पजल को हल करने जैसा है। दिल्ली की वरिष्ठ मैरिज काउंसलर डॉ. वसंता आर. पत्रे मानती हैं कि सब कुछ स्याह या सफेद नहीं होता, कुछ और शेड्स भी होते हैं जो जिंदगी और संबंधों को प्रभावित करते हैं। लेकिन गलत या भ्रामक धारणाओं को मन में बिठा लेने से संबंधों का कोई भला नहीं होता। इसलिए कम से कम संबंधों के स्तर पर किसी को कमतर या बडा समझने की भूल न करें तो बेहतर होगा।
इंदिरा राठौर