ऐसे सुलझी रिश्ते की उलझी डोर
दांपत्य जीवन में साथी की भावनाओं का सम्मान न करने की वजह से कई बार आपसी संबंध बेहद तनावपूर्ण हो जाते हैं। रिश्ते की ऐसी उलझी डोर को कैसे सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद।
तकरीबन चार साल पहले बेहद हैरान-परेशान सी स्त्री मुझसे मिलने आई। आते ही वह कहने लगी, मैम, पता नहीं मेरे पति को क्या हो गया है? शादी के 22 साल बाद अचानक वह मुझसे कहने लगे हैं कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना। पहले उन्हें मेरी खुशियों का इतना खयाल रहता था कि वह मेरी मर्जी के खिलाफ कोई काम नहीं करते थे। मुझे याद नहीं आता कि उन्होंने कभी भी मुझसे ऊंची आवाज में बात भी की हो। शादी के इतने वर्षो बाद अचानक उनके ऐसे व्यवहार से मैं सदमे में आ गई हूं। समझ नहीं पा रही कि इसकी क्या वजह हो सकती है? कहती हुई वह रुआंसी हो उठी। मैंने उससे कहा कि एक बार मैं आपके पति से भी अकेले में बात करना चाहूंगी।
तसवीर का दूसरा रुख
दूसरी सिटिंग में उसके पति ने मुझे बताया, मेरा नाम विकास खन्ना (काल्पनिक नाम) है और मैं आर्मी में हूं। मैंने हर कीमत पर अपनी पत्नी अर्चना (काल्पनिक नाम) को खुश रखने की कोशिश की, लेकिन अब थक चुका हूं। मुझे मालूम है कि लाख कोशिशों के बावजूद मैं उसे खुश नहीं रख सकता। इसीलिए अब अकेले रहना चाहता हूं। न तो मैं तलाक ले रहा हूं और न ही किसी लडकी से मेरा कोई अफेयर है। मेरी इकलौती बेटी कॉलेज में पढती है। अलग रहते हुए भी पत्नी और बेटी की सारी जिम्मेदारियां खुद निभाऊंगा, पर अब मैं शांतिपूर्ण जिंदगी जीना चाहता हूं।
मैंने उससे पूछा कि आखिर ऐसी कौन सी परेशानी है, जिसकी वजह से आप 22 साल पुरानी शादी तोडने जा रहे हैं? यह पूछने पर उसने उदासी भरे स्वर में कहा, अब हमारे इस रिश्ते में कोई उम्मीद नहीं बची है। उसकी मांगों और इच्छाओं का कोई अंत ही नहीं है। मुझे सबसे ज्यादा दुख तो इस बात से होता है कि मैं उसकी जरूरतें पूरी करने की मशीन बन कर रह गया हूं। उसे मेरे सुख-दुख की जरा भी परवाह नहीं है। शादी के बाद उसे मेरे माता-पिता के साथ रहना पसंद नहीं था, इसलिए मैं दूसरी कॉलोनी में शिफ्ट हो गया। जब भी मैं यहां आता तो वह मेरे साथ अपनी ससुराल वालों से मिलने नहीं जाती, पर मायके के सारे रिश्तेदारों के यहां मुझे अपने साथ जरूर लेकर जाती। छोटी-छोटी बातों को लेकर बेवजह जिद करने लगती। मेरे लिए छुट्टियां बहुत कीमती होती हैं। उस दौरान परिवार में शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए मैं उसकी हर बात मान लेता था। अगर कभी मेरे माता-पिता बीमार होते तो भी वह उनका हाल पूछने की जरूरत नहीं समझती। अगर मैं ऐसे ही उसकी ज्यादतियां झेलता रहा तो मैं जल्द ही डिप्रेशन का मरीज बन जाऊंगा। इसी वजह से मैंने काफी सोच-समझकर यह निर्णय लिया है। उस वक्त वह इतने गुस्से में था कि उससे बात करने की कोशिश बेकार थी। पति का अडियल रवैया देखकर मैं समझ गई थी कि इस केस को सुलझाने में उसकी तरफ से सहयोग की उम्मीद नहीं की जा सकती।
कदम बढे आहिस्ता-आहिस्ता
कुछ सिटिंग्स में मैंने अर्चना को अकेले ही बुलाया और उसे समझाया कि पति का दिल जीतने के लिए बहुत जरूरी है कि आप सास-ससुर सहित परिवार के अन्य सदस्यों का भी खयाल रखें, तभी उनके दिल में आपके लिए प्यार और सम्मान बढेगा। उसने मुझसे वादा किया कि वह हमारे इन सुझावों पर अमल करने की पूरी कोशिश करेगी, पर जब भी वह सास-ससुर से मिलने जाती तो फोन पर इसकी जानकारी पति को जरूर देती थी। इससे उसका चिडचिडापन और बढ जाता। उसे ऐसा लगने लगा कि अर्चना यह सब दिखावे के लिए कर रही है।
आखिर हो गई सुलह
फिर मैंने उसे समझाया कि किसी भी रिश्ते को बिगाडना बहुत आसान है, पर उसे संभालने के लिए धैर्य की जरूरत होती है। आप अपने व्यवहार में धीरे-धीरे सहजता से बदलाव लाएं। थोडा इंतजार करें। वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस बीच उस दंपती ने मुझसे कोई संपर्क नहीं रखा। लगभग आठ महीने बाद एक रोज अचानक मेरे पास विकास का फोन आया। उसने उल्लासित स्वर में कहा, मैडम, मैंने आपको थैंक्स बोलने के लिए फोन किया है। आजकल मेरी छुट्टियां चल रही हैं। इस बार मुझे अर्चना के व्यवहार में पॉजिटिव चेंज नजर आ रहा है। अब उसने छोटी-छोटी बातों के लिए मुझे रोकना-टोकना बंद कर दिया है। मैंने दोबारा शांत मन से अपने निर्णय पर विचार किया तो मुझे ऐसा लगा कि साथ रहने में ही समझदारी है। दापंत्य जीवन की इस उलझन को पूरी तरह सुलझाने में लगभग एक साल लग गए। इस केस का सकारात्मक पहलू यह था कि पति-पत्नी दोनों में से कोई भी झूठ नहीं बोल रहा था। शुरुआत में पति का रवैया असहयोगपूर्ण था, लेकिन बाद में समस्या के समाधान में दोनों का पूरा सहयोग मिला।