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दिल से जवां हैं हम

उम्र के असर को रोकना असंभव है। फिर भी हम चाहें तो तमाम परेशानियों के बावजूद हमेशा खुश और ऐक्टिव रह सकते हैं।

By Edited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 02:12 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 02:12 PM (IST)
दिल से जवां हैं हम

दिल्ली की डॉ.साधना और एयर मार्शल वेद प्रकाश काला ऐसे दंपती हैं, जिनका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। उन्होंने इस बात को सच साबित किया है कि इंसान को तन से नहीं, मन से युवा होना चाहिए।

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उम्र के असर को रोकना असंभव है। फिर भी हम चाहें तो तमाम परेशानियों के बावजूद हमेशा खुश और ऐक्टिव रह सकते हैं। डॉ.साधना काला जीवन की इस सच्चाई को बखूबी समझती हैं। वह स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं और 67 वर्ष की आयु में भी पूर्णत: सक्रिय हैं। रोज खुद कार ड्राइव करके हॉस्पिटल जाती हैं और जरूरतमंदों की मदद के लिए कई तरह के सामाजिक कार्यों से भी जुडी हैं। इस नेक कार्य में इनके पति एयर मार्शल वेद प्रकाश काला भी इन्हें पूरा सहयोग देते हैं।

अनुशासित है दिनचर्या बातचीत के दौरान उनसे उनकी फिटनेस का राज पूछने पर हंसती हुई कहती हैं, 'कुछ खास नहीं, चूंकि मेरे पति आर्मी बैकग्राउंड से हैं, इसलिए अनुशासित दिनचर्या हम दोनों की आदतों में सहज रूप से शामिल है। मेरे पिता 93 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। स्वस्थ और सक्रिय रहने की उनकी आदत को मैंने भी पूरी तरह अपना लिया है। हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं। हल्की स्ट्रेचिंग और एक्सरसाइज के बाद तैयार होकर पूजा करती हूं। नाश्ता करने के बाद लंच पैक करके साढे नौ बजे तक क्लिनिक के लिए निकल पडती हूं। लंच में मैं सिर्फ फ्रूट्स लेती हूं। मेरे साथ फ्लास्क में हमेशा गुनगुना पानी होता है, बीच में चाय-कॉफी के बजाय मैं वही पीती हूं। शाम चार बजे तक घर वापस आ जाती हूं। थोडा आराम करने के बाद हम दोनों योगा क्लासेज के लिए जिमखाना क्लब चले जाते हैं। फिर थोडी देर वॉक करने के बाद घर लौट आते हैं। चाहे कितनी भी ठंड हो, मुझे शाम को भी नहाकर पूजा करने की आदत है। पूजा करने के बाद साढे नौ बजे तक डिनर कर लेते हैं और दस बजे तक हम सो जाते हैं। हमें घूमना-फिरना पसंद है। इसलिए साल में एक-दो बार हम विदेश यात्रा के लिए निकल पडते हैं। मैं सोशल साइट्स पर भी ऐक्टिव रहती हूं। मोबाइल के नए-नए एप्लीकेशंस को समझने की पूरी कोशिश करती हूं।

जीवन चलने का नाम ईश्वर के प्रति मेरे मन में गहरी आस्था है। जीवन में चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं, समर्पण की यही भावना मुझे हर हाल में धैर्यवान बने रहने की शक्ति देती है। लगभग चार साल पहले एक सडक दुर्घटना में हमने अपने इकलौते बेटे को खो दिया। एक पल को ऐसा लगा कि सब कुछ खत्म हो गया पर हमने खुद को संभाला। मुझे ऐसा लगता है ईश्वर ने उसे मेरे पास केवल 28 वर्षों के लिए ही भेजा था, उसके साथ बिताए गए हर एक पल की खूबसूरत यादें ही हमें दोबारा जीने का हौसला देती हैं।

एयर मार्शल काला भी साधना जी की बातों पर अपनी सहमति जाहिर करते हुए कहते हैं कि हम जितनी सहजता से सुख को स्वीकारते हैं, उसी तरह हमें दुख में भी विचलित नहीं होना चाहिए। जिन बातों पर हमारा कोई वश ही नहीं, उनके बारे में सोचना भी व्यर्थ है। इसलिए हमें हर हाल में खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।


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