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सखी इनबॉक्स

सखी सही मायने में संपूर्ण पारिवारिक पत्रिका है। सकारात्मक दृष्टिïकोण से परिपूर्ण इसकी रचनाएं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुश रहने को प्रेरित करती हैं।

By Edited By: Published: Thu, 28 Apr 2016 04:03 PM (IST)Updated: Thu, 28 Apr 2016 04:03 PM (IST)
सखी इनबॉक्स
सखी सही मायने में संपूर्ण पारिवारिक पत्रिका है। सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण इसकी रचनाएं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुश रहने को प्रेरित करती हैं। अगर फैशन और सौंदर्य संबंधी लेख मेरे बाहरी व्यक्तित्व को संवारते हैं तो 'अध्यात्म' मेरे अंतर्मन को संबल देता है। स्वास्थ्य पर आधारित रचनाएं मेरे पूरे परिवार को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होती हैं। इतनी अच्छी पत्रिका प्रकाशित करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं।

सीमा चौहान, बनकुंअर टीला,हाउस नं-2

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पोस्ट-खारगुली, गुवाहाटी (असम)

पिन-781004

मो-08011018184

आकर्षक कवर से सुसज्जित सखी का अप्रैल अंक बेहतरीन रचनाओं से भरपूर था। कवर स्टोरी 'सृजन का सुख' मुझे खास तौर पर पसंद आई। मैं भी इस बात से सहमत हूं कि क्रिएटिविटी इंसान को मुश्किलों से लडऩे की ताकत देती है। लेख 'जब हर काम जरूरी होता है' के माध्यम से टाइम मैनेजमेंट के बारे में बहुत अच्छे सुझाव दिए गए थे। कहानियां भी मर्मस्पर्शी थीं।

निरुपमा अग्रवाल, बीकानेर

हमेशा की तरह इस बार भी सखी का अप्रैल अंक रोचक और जानकारीपूर्ण रचनाओं से भरपूर था। हाल ही में मैंने अपना करियर शुरू किया है। ऐसे में लेख 'चुनौतियां पहली जॉब की' मेरे लिए बहुत मददगार साबित हुआ। 'दूसरा पहलू' के अंतर्गत वरिष्ठ शिल्पकार राम वी. सुतार के अनुभव बेहद प्रेरक थे। लेख 'बातों-बातों में' में बिलकुल सही सलाह दी गई है कि हमें हमेशा सोच-समझकर बोलना चाहिए। 'जरूरी है निवेश की निगरानी' में दी गई जानकारियां भी बेहद उपयोगी साबित हुईं। सभी स्थायी स्तंभ भी रोचक थे।

नलिनी रैना, जम्मू

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं। पत्रिका का हर अंक मुझे कुछ न कुछ नया सीखने को प्रेरित करता है। नया स्तंभ 'शेफ से पूछें शुरू करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। इसमें कुकिंग संबंधी समस्याओं का अ'छा समाधान मिल जाता है। लेख 'वजन है कि घटता नहीं... पढऩे के बाद अब मैं सही तरीके से अपना वजन घटाने की कोशिश कर रही हूं। 'मिसाल के अंतर्गत प्रिया भार्गव के जीवन से पाठिकाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए।

सुरभि वर्मा, पटना

सखी का अप्रैल अंक देखकर दिल खुश हो गया। 'मुद्दा के अंतर्गत जंक फूड की वजह से स्कूली ब'चों में बढती ओबेसिटी की समस्या और उसके समाधान का सटीक विश्लेषण किया गया था। लेख 'वॉर्डरोब रखें व्यवस्थित'

में उपयोगी सुझाव दिए गए थे। कहानी 'दस्तक भी मर्मस्पर्शी थी। लेख 'ठीक नहीं है लापरवाही' पढकर माउथ अल्सर से बचाव के बारे में कई उपयोगी बातें जानने को मिलीं। हमेशा की तरह सारे स्तंभ स्तरीय थे।

आभा रावत, देहरादून

- सखी का अप्रैल अंक लाजवाब था। मैंने हाल ही में अपने बेटे का एडमिशन प्ले स्कूल में कराया है। सुबह स्कूल जाते समय वह बहुत रोता है। ऐसे में लेख 'स्कूल में पहला कदम' मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। लेख 'पति-पत्नी और दोस्त' में बिलकुल सही कहा गया है कि आजकल पति-पत्नी दोनों के दोस्त कॉमन होते हैं, जो जीवन के हर सुख-दुख में एक-दूसरे के मददगार होते हैं। कवर स्टोरी 'सृजन का सुख' में क्रिएटिविटी का बहुत सुंदर

विश्लेषण किया गया है। लेख 'इससे दूरी

है जरूरी' पढकर यह मालूम हुआ कि

बढता कोलेस्ट्रॉल सेहत के लिए कितना नुकसानदेह है।

अर्पिता माथुर, जयपुर

- मुझे हर महीने बेसब्री से सखी का इंतजार रहता है। पत्रिका का अप्रैल अंक देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। मनोज कुमार मेरे प्रिय अभिनेता हैं। 'फिल्म ऐसे बनी' के अंतर्गत उनकी फिल्म 'उपकार' की मेकिंग के बारे में जानना बेहद दिलचस्प अनुभव था। 'अध्यात्म' में श्री श्रीरविशंकर ने बिलकुल ठीक कहा है कि हमें शुरू से ही अपने ब'चों को अ'छे संस्कार देने चाहिए। इतनी अ'छी पत्रिका प्रकाशित करने के लिए आप मेरी बधाई स्वीकारें।

सुधा शर्मा, जबलपुर

- मैं सखी का हर अंक संजोकर रखती हूं क्योंकि इसमें दी गई जानकारियां हमेशा मेरे लिए उपयोगी साबित होती हैं। कुकिंग मेरी हॉबी है और अपनी किचन में हमेशा कुछ न कुछ नया बनाने की कोशिश में जुटी रहती हूं। पत्रिका के अप्रैल अंक में 'घर की थाली' के अंतर्गत दी गई बेसन की रेसिपीज को मैंने भी आजमाया। 'जायका' हमेशा की तरह लाजवाब था। 'इंटीरियर ट्रेंड' के अंतर्गत फ्लोरल प्रिंट के बारे में बहुत अ'छी जानकारी दी गई थी।

स्नेहा भार्गव, इंदौर

- गर्मियों के तपिश भरे मौसम में सखी का अप्रैल अंक ठंडी हवा के झोंके की तरह आया और हमारे मन को सुकून का एहसास करा गया। लेख 'चलें समय के साथ' ने मेरी आंखें खोल दीं क्योंकि मैं भी तीन वर्षीय ब'चे की मां हूं और उसे घर पर छोडकर ऑफिस जाते हुए मुझे बहुत ग्लानि होती है। 'मिसाल' के अंतर्गत नोएडा की प्रिया भार्गव के संघर्ष की कहानी प्रेरक थी। हमेशा की तरह 'कैंपस' भी रोचक था। 'कहानी कलीग्स की' ने हंसने पर मजबूर कर दिया।

मधु चंद्रा, गुडग़ांव

- सखी का अप्रैल अंक साज-सज्जा और रचनाओं की दृष्टि से बेजोड था। कवर स्टोरी

'सृजन का सुख सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर थी। लेख 'एक्सरसाइज के दौरान जब लग जाए चोट पढऩे के बाद से अब मैं वर्कआउट करते समय पूरी सावधानी बरतती हूं। लेख 'मौसमी बुखार जरा संभलकर पढकर वायरल इन्फेक्शन के बारे में कई उपयोगी बातें जानने को मिलीं। 'हेल्थ वॉच में दी गई जानकारियां उपयोगी थीं। सभी स्थायी स्तंभ भी रोचक थे।

पल्लवी जैन, रोहतक

- मैं पहले अंक से ही सखी की नियमित पाठिका हूं। पत्रिका का अप्रैल अंक देखा। कवर स्टोरी 'सृजन का सुख के माध्यम से सृजनशील सोच से जुडे सवालों को बडी खूबसूरती के साथ उठाया गया है। लेख 'जंक से जंग जारी के जरिये ब'चों में बढती ओबेसिटी की समस्या का बहुत गहन विश्लेषण किया गया है। लेख 'क्या भूलूं क्या याद करूं में अल्जाइमर्स के कारणों और बचाव के बारे में बहुत अ'छी जानकारी दी गई थी। स्टोरी 'पॉजिटिव पेरेंटिंग मेें सिब्लिंग राइवलरी से बचाव के बारे में दिए गए सुझाव बेहद उपयोगी थे।

प्रमिला शर्मा, वाराणसी

द्य सखी का मार्च माह का अंक अप्रत्याशित नवीनता लेकर आया। इस पत्रिका ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को अपने में समाहित कर लिया है। यह अपने प्रत्येक अंक में हर अवसर के अनुकूल सामग्री प्रस्तुत करती है। इसमें प्रकाशित होने वाले खानपान और स्वास्थ्य पर आधारित लेख मुझे सबसे य़ादा पसंद आते हैं। इस पत्रिका में परंपराओं और आधुनिकता का बहुत सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। इसके उज्वल भविष्य हेतु हमारी हार्दिक शुभकामनाएं।

दीपा सक्सेना, कानपुर

- सखी का हर अंक सराहनीय होता है। पत्रिका के अप्रैल अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी 'सृजन का सुख' बेहतरीन थी। इसे पढते हुए बार-बार मेरे मन में यही खयाल आ रहा था कि यह जरूरी नहीं है कि हर रचनात्मक व्यक्ति को कामयाबी ही मिले, कुछ लोग क्रिएटिव होने के बाव•ाूद अपने जीवन में कामयाब नहीं होते। मुझ जैसी कई ऐसी होममेकर्स हैं, जो काबिल होने के बावजूद अपनी पहचान नहीं बना पातीं। आपसे अनुरोध है कि हमारी जैसी स्त्रियों के लिए कुछ ऐसी जानकारी दें कि हम घर बैठे अपना रो•ागार शुरू कर सकें।

सीमा सहाय, दिल्ली

- मैं सखी की बुजुर्ग पाठिका हूं। पत्रिका का अप्रैल अंक देखा। वैसे तो इसमें सभी रचनाएं पठनीय थीं, लेकिन लेख 'उम्र से बेअसर खूबसूरती' में बढती उम्र की स्त्रियों के लिए बहुत उपयोगी मेकअप टिप्स दिए गए थे। लेख 'जरूरी है निवेश की निगरानी' में दिए गए सुझाव भी उपयोगी साबित हुए। कहानी 'मुझे माफ कर दो' दिल को छू गई।

अंबिका गर्ग, बिजनौर

- सखी पत्रिका ने हमेशा से हमें प्रभावित किया है। यह कब मेरी दोस्त बन गई, यह मुझे आज तक समझ नहीं आया। इसने जीवन के हर सुख-दुख में सदैव मेरा साथ निभाया है। इसका हर अंक सराहनीय होता है। आज के युग में तमाम पत्रिकाएं बाजार में आ रही हैं, परंतु जो सुकून मुझे सखी पढ कर मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। यह मेरे पूरे परिवार की चहेती है।

रागिनी देवी निगम, कानपुर

-सखी के अप्रैल अंक की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित सभी रचनाएं एक से बढकर एक थीं। लेख 'फ्रूट्स का टच देगा नया लुक में होममेड फेसपैक के बारे में बहुत अ'छी जानकारी दी गई थी। 'फैशन फोरकास्ट पढकर मैंने भी फ्लोरल प्रिंट्स वाले आउटफिट्स को अपनी वॉर्डरोब में जगह देना शुरू कर दिया है।

अरुणिमा पांडे, गोरखपुर


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