कुछ तो लोग कहेंगे
विवाह बेहद ख़्ाुशनुमा माहौल में संपन्न हुआ और दोनों प्रांतों की सारी रस्में निभाई गईं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि मेरे घर में ऐसी समझदार और सुशील बहू आई है कि सब उसकी तारीफ करते हैं।
गर्व है अपने निर्णय पर
अनीता कडनेकर, भिलाई
हम लोग मूलत: मराठी हैं, पर जब मेरे बेटे ने अपने साथ पढऩे वाली बिहारी लडकी से विवाह करने की इच्छा •ााहिर की तो यह बात सुनकर हमारे सभी रिश्तेदार बहुत परेशान हो गए। लोग कहने लगे कि दोनों प्रांतों के खानपान, भाषा और रीति-रिवाजों में बहुत ज्य़ादा अंतर है। इसलिए वहां की लडकी हमारे परिवार में एडजस्ट नहीं कर पाएगी। जितने मुंह, उतनी बातें। लोग कह रहे थे कि वह लडकी हमारे परिवार के तौर-तरीके नहीं अपनाएगी। शादी हमेशा अपनी बिरादरी में ही होनी चाहिए, पर मैं लोगों की ऐसी बातों की परवाह किए बिना शादी की तैयारियों में जुटी रही क्योंकि मेरे लिए रीति-रिवाजों की तुलना में अपने बेटे की खुशी ज्य़ादा अहमियत रखती है। विवाह बेहद ख्ाुशनुमा माहौल में संपन्न हुआ और दोनों प्रांतों की सारी रस्में निभाई गईं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि मेरे घर में ऐसी समझदार और सुशील बहू आई है कि सब उसकी तारीफ करते हैं।
कोई भी कार्य छोटा नहीं होता
संगीता चौधरी, मुरादाबाद
लगभग बीस साल पुरानी बात है। परिवार की आर्थिक स्थिति ख्ाराब होने की वजह से मुझे जॉब करने की जरूरत महसूस हुई। मैंने बीएड के साथ फैशन डिजाइनिंग का भी कोर्स किया था। लिहाजा मेरे परिवार के सदस्यों ने किसी स्कूल में टीचर का जॉब ढूंढने की सलाह दी, लेकिन उन दिनों टीचर्स को बहुत कम सैलरी मिलती थी, जिससे मेरे परिवार का गुजारा होना मुश्किल था। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न बच्चों के लिए स्कूल यूनिफॉर्म सप्लाई करने का काम शुरू किया जाए। यह सुनकर कई परिचितों ने कहना शुरू कर दिया कि यह बहुत मुश्किल काम है और इसके लिए अनुभव का होना बहुत जरूरी है। यह सब तुमसे नहीं हो पाएगा। तुम पढी-लिखी हो, किसी स्कूल में बच्चों को पढाओ। कुछ लोगों ने मेरे परिवार की प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए यह भी कहा कि यह काम तुम्हें शोभा नहीं देता। सचमुच, शुरुआती दौर में मुझे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडा। इससे मेरा मनोबल टूटने लगा था। फिर भी हिम्मत जुटा कर मैं लगातार कोशिश करती रही। फिर कुछ ही दिनों में सफल व्यवसायी के रूप में मेरी पहचान बनने लगी। इस तरह परिवार की सारी आर्थिक जिम्मेदारियां अच्छी तरह पूरी करने के बाद मैं टीचिंग के प्रोफेशन में आ गई क्योंकि यह काम मेरी रुचि से जुडा है। मेरे विचार से कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। इसलिए दूसरों की परवाह किए बगैर हमें अपना हर कार्य पूरी मेहनत और ईमानदारी से करना चाहिए।