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कुछ तो लोग कहेंगे

वैसे तो होममेकर हूं, लेकिन शुरू से ही पढऩे-लिखने में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है। दुर्भाग्यवश मेरे जीवन में एक ऐसा दौर भी आया जब मैं गंभीर रूप से बीमार हो गई और लगभग साल भर तक मेरा इलाज चलता रहा, पर मैं हमेशा कुछ न कुछ पढऩे-लिखने की कोशिश

By Edited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 03:21 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 03:21 PM (IST)

ध्यान नहीं देती ऐसी बातों पर

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मधु श्रीवास्तव, मुज्ाफ्फरपुर (बिहार)

मैं वैसे तो होममेकर हूं, लेकिन शुरू से ही पढऩे-लिखने में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है। दुर्भाग्यवश मेरे जीवन में एक ऐसा दौर भी आया जब मैं गंभीर रूप से बीमार हो गई और लगभग साल भर तक मेरा इलाज चलता रहा, पर मैं हमेशा कुछ न कुछ पढऩे-लिखने की कोशिश में जुटी रहती और अपनी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं के कार्यालय में भिजवा देती। उस दौरन मुझसे मिलने के लिए अकसर पास-पडोस की स्त्रियां आतीं तो वे मुझे इस बात के लिए हमेशा रोकती-टोकती रहतीं किआख्िार आपको कौन सी परीक्षा की तैयारी करनी है, जो इतनी मेहनत करती हैं, अभी आपको आराम करना चाहिए, पर मैं उनकी बातों पर ध्यान दिए बिना अपने काम में जुटी रहती। एक रोज उन्हीं स्त्रियों से मुझे यह मालूम हुआ कि एक पत्रिका में तसवीर सहित मेरी कहानी छपी है। अब मुझे ऐसा लगता है कि अगर मैं उन लोगों की बातों पर ध्यान देती तो शायद मुझे यह ख्ाुशी नहीं मिल पाती।

सुनती हूं दिल की आवाज

रजनी वालिया, कपूरथला

मैं बचपन से ही पढाई में बहुत होशियार थी। इसीलिए शादी के बाद भी मैंने अपनी पढाई जारी रखी। बात उन दिनों की है, जब मेरी बीएड. परीक्षा का रिजल्ट आया था। मैं अपने कॉलेज की टॉपर स्टूडेंट थी। इसीलिए मेरे पास कॉलेज की ओर से वार्षिक समारोह का निमंत्रण पत्र भी आया था, जिसमें मुझे कॉलेज की ओर से पुरस्कृत किया जाना था। मैं भी वहां जाना चाहती थी, पर समस्या यह थी कि तब मेरा बेटा मात्र एक महीने का था। मेरे मायके-ससुराल वाले मुझे वहां जाने से बार-बार मना कर रहे थे। उनका कहना था कि इतने छोटे बच्चे को घर से बाहर लेकर जाना ठीक नहीं है। एक पुरस्कार के लिए ऐसा भी क्या उतावलापन, वहां जाकर बेकार परेशानी होगी, वे पुरस्कार के नाम पर तुम्हें कोई छोटी सी चीज पकडा देंगे। यह सब सुनकर मुझे बहुत रोना आ रहा था। तब मैंने लोगों की बातें मानने के बजाय अपने दिल की आवाज सुनी और उनसे बार-बार कहती रही कि मुझे वहां जाना है। ऐसेे में मेरे पति ने मेरा साथ दिया और वह ख्ाुद मुझे अपने साथ चंडीगढ लेकर गए। वहां मंच पर जब मुझे पुरस्कार देने के लिए बुलाया गया तो मैंने वहां से अपने पति को धन्यवाद दिया और कहा कि उनकी मदद के बिना मैं यहां तक पहुंच नहीं पाती। तब हमारी प्रिंसिपल ने पति को भी मंच पर बुलाया। वह पल मेरे लिए यादगार बन गया। अब सोचती हूं कि अगर उस वक्त मैं लोगों के दबाव में आ जाती तो अपने जीवन का वह ख्ाुशनुमा पल खो देती।


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