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कुछ तो लोग कहेंगे

जब हार्ट अटैक की वजह से मेरे पति का असामयिक निधन हुआ था, तब मेरे तीनों बच्चों की उम्र क्रमश: 15, 13 और 11 वर्ष थी। मैं मात्र दसवीं पास थी। मेरे लिए दोबारा पढ़ाई शुरू करना बहुत मुश्किल था। मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहती थी, पर मेरी

By Edited By: Published: Mon, 28 Dec 2015 03:34 PM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2015 03:34 PM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे

निर्णय पर डटी रही

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रंजना कुंडरा, अजमेर

जब हार्ट अटैक की वजह से मेरे पति का असामयिक निधन हुआ था, तब मेरे तीनों बच्चों की उम्र क्रमश: 15, 13 और 11 वर्ष थी। मैं मात्र दसवीं पास थी। मेरे लिए दोबारा पढाई शुरू करना बहुत मुश्किल था। मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहती थी, पर मेरी ससुराल वाले इसके सख्त ख्िालाफ थे। फिर भी मैंने हिम्मत जुटा कर दोबारा पढऩा शुरू किया। फिर ग्रेजुएशन के बाद मुझे भारतीय रेल विभाग में अपने पति की जगह पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गई। इसके बाद मेरी ससुराल वालों ने मुझे बहुत कोसा और मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव करने लगे। फिर भी उनकी बातों की परवाह किए बिना मैं सिर्फ अपने बच्चों की परवरिश में जुटी रही। आज मेरे तीनों बच्चे अपने करियर में कामयाबी की बुलंदियों को छू रहे हैं। उन्हें देखकर मैं अपना सारा दुख भूल जाती हूं। अगर उस वक्त लोगों की बातों से डर कर मैंने अपना निर्णय बदल दिया होता तो आज मेरे बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाता।

जो सही लगा वही किया

रीता माटा, दिल्ली

बात उन दिनों की है, जब मेरी माता जी का स्वर्गवास हुआ था। उनकी आयु 85 वर्ष थी। बहुत ख्ाुशहाल जिंदगी बिताने के बाद वह अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड गई थीं। हमारे यहां ऐसी परंपरा है कि परिवार के किसी सदस्य के गुज्ार जाने के बाद उसके शोक में साल भर न तो कोई त्योहार मनाया जाता है और न ही घर में किसी समारोह का आयोजन किया जाता है। उस साल कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मां के निधन के ठीक दस दिन के बाद मेरे पोते का जन्मदिन आया और वह घर पर अपने दोस्तों को बुलाने की जिद करने लगा। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर बच्चों में इतनी समझ कहां होती है? उसे तो बस केक काटना था। उसका उत्साह देखकर मेरे मन में यह ख्ायाल आया कि शोक मनाने से हमारी माता जी वापस नहीं आ सकतीं, तो परंपरा के नाम पर मासूम बच्चे का दिल दुखाने से क्या फायदा? मैंने घर पर उसके दोस्तों को बुलाकर उसके बर्थडे की छोटी सी पार्टी रखी। जब हमारे रिश्तेदारों और पडोसियों को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि मुझे अपनी मां के जाने का जरा भी अफसोस नहीं है तभी तो मैं अपने घर में बच्चे का जन्मदिन मना रही हूं, पर मैंने इन बातों की जरा भी परवाह नहीं की। मुझसे अपने मासूम पोते का उदास चेहरा देखा नहीं जा रहा था। इसलिए मैंने उसके लिए यह बर्थडे पार्टी रखी थी। मेरा मानना है कि दूसरों की व्यर्थ बातों पर ध्यान देने के बजाय हमें अपने विवेक से निर्णय लेना चाहिए।


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