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कुछ तो लोग कहेंगे

अपनी हाउसिंग सोसायटी के कुछ लोगों के साथ मिलकर मैंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की है। घर के आसपास के क्षेत्र को साफ, सुंदर और हरा-भरा बनाए रखने के लिए हम रोज़ाना सुबह एक-दो घंटे स्वैच्छिक श्रमदान करते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 27 Nov 2015 03:46 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2015 03:46 PM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे

बातों की परवाह नहीं करती

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रेखा दीक्षित, वडोदरा

अपनी हाउसिंग सोसायटी के कुछ लोगों के साथ मिलकर मैंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की है। घर के आसपास के क्षेत्र को साफ, सुंदर और हरा-भरा बनाए रखने के लिए हम रोजाना सुबह एक-दो घंटे स्वैच्छिक श्रमदान करते हैं। जब हमने इस कार्य की श्ुारुआत की थी तो आसपास रहने वाले सभी लोगों से आग्रह किया था कि अगर चाहें तो वे भी हमारे साथ इस अभियान में शमिल हो सकते हैं, पर ज्य़ादातर लोगों ने हमारे इस प्रयास का मजाक उडाया और कहा कि हमारे पास ऐसे कार्यों के लिए फालतू समय नहीं है। वे अकसर हमारे ऊपर नकारात्मक टीका-टिप्पणी करते रहे। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि हम नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी ऐसी बातों पर ध्यान दिए बिना हम अपने काम में जुटे रहे। समय के साथ हमारी मेहनत रंग लाने लगी। मेरा मानना है कि अगर हम सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं तो हमें ऐसी बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए।

सुनो सबकी करो अपनी

मीरा जैन, उज्जैन

बात उन दिनों की है, जब मेरे पति की पोस्टिंग भोपाल में थी और मेरे बच्चे बहुत छोटे थे। वहां कॉलोनी की स्त्रियों का एक क्लब था, जिसमें अकसर पार्टियां होती रहती थीं। वैसे तो सभी से मेरा परिचय था, पर बच्चों की वजह से मैंने क्लब की सदस्यता नहीं ली थी। शुरू से ही बच्चे मेरी पहली प्राथमिकता रहे हैं और मुझे उनकी परवरिश में जरा भी लापरवाही पसंद नहीं है। क्लब की एक मेंबर अकसर मुझसे कहतीं कि आप अपने बच्चों को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव हैं। अगर आप ऐसा करेंगी आपके बच्चे पूरी तरह आप पर निर्भर हो जाएंगे। उन्हें आया के साथ छोड कर आपको भी हमारे साथ क्लब में आना चाहिए। थोडा वक्त अपनी ख्ाुशियों के लिए भी निकालना जरूरी है। उनके ऐसे सभी सुझावों को मैं विनम्रता पूर्वक सुन लेती थी, पर मैं जानती थी कि मुझे अपने बच्चों की परवरिश कैसे करनी है। इसलिए जब तक बच्चे छोटे थे, मैंने अपना सारा ध्यान उनकी परवरिश में लगाया। मैं उन्हें ख्ाुद ही पढाती, कहानियां सुनाती और अकसर उनकी मनपसंद जगहों पर आउटिंग के लिए ले जाती। इस बात को तीस साल हो गए। मेरी बिटिया सिविल इंजीनियर बन चुकी है और बेटा भी आइटी सेक्टर में उच्च पद पर कार्यरत है। अब मुझे ऐसा महसूस होता है कि अगर मैंने घूमने-फिरने में अपना कीमती समय बर्बाद किया होता तो शायद मेरे बच्चों को इतने अच्छे संस्कार नहीं मिल पाते। इसीलिए शुरू से ही मेरा तो यही उसूल रहा है कि सुनो सबकी, करो अपनी।


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