क्या समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है?
समय के साथ बदलते समाज में दिखावे की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। आजकल ज्य़ादातर लोग दूसरों के सामने अपनी नकली छवि पेश करते हैं। इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं दोनों पीढिय़ां, आइए जानें सखी के साथ।
By Edited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 03:14 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2017 03:14 PM (IST)
वास्तव में ऐसा नहीं है लीला रामचंद्रन, दिल्ली मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूं कि हमारे समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ रही है। जिसे हम दिखावा समझते हैं, दरअसल वह भी हमारे समाज की उन्नति का एक हिस्सा है। समय के साथ लोगों के रहन-सहन में बदलाव स्वाभाविक है। हम पुरानी पीढी के लोगों को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि जिन चीजों को हमारे जमाने में लग्जरी समझा जाता था, वे आज के जमाने में लोगों की जरूरत बन चुकी हैं। इसलिए कार, मोबाइल और घरेलू उपकरणों के इस्तेमाल को दिखावा कहना अनुचित है क्योंकि आज के जमाने में इनके बिना लोगों का जीवन मुश्किल हो जाएगा। यह सच है कि कुछ लोग अपनी आर्थिक संपन्नता का झूठा दिखावा करते हैं पर इसके आधार पर पूरे समाज के बारे में ऐसी नकारात्मक धारणा बनाना गलत है। आज भी कई ऐसे परिवार हैं, जहां लोग सादगीपूर्ण जीवनशैली अपनाते हैं। रिश्तों में भी दिखावा अनामिका गुलाटी, जालंधर आजकल केवल रहन-सहन में ही नहीं, बल्कि रिश्तों के मामले में भी लोग नकली व्यवहार करने लगे हैं। यहां तक कि प्यार जैसी कोमल और सच्ची भावना में भी अब दिखावे की मिलावट हो रही है। आज की युवा पीढी में रिश्तों के प्रति पहले जैसी ईमानदारी नजर नहीं आती। लोग मन ही मन दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं पर उनके सामने अच्छा बने रहने का ढोंग करते हैं। झूठ की बुनियाद पर टिके ऐसे रिश्ते नकली और खोखले होते हैं, इसीलिए वे जल्द ही टूट भी जाते हैं। विशेषज्ञ की राय सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि अगर समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ रही है तो इसकी वजह क्या है? आज लोगों को पहले की तुलना में पैसे कमाने के ज्य़ादा विकल्प मिल रहे हैं। पहले लोग अपनी सीमित आमदनी में भी संतुष्ट रहना जानते थे। अब वे सोचते हैं कि हमारे पास और क्या होना चाहिए, जिससे समाज में हमारा स्टेटस ऊंचा नजर आए। काफी हद तक ईएमआइ की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढावा दिया है। दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर लोगों के मन में लालच की भावना जाग जाती है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ रही है। रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है। हम अपनी सभी गतिविधियों को वहां साझा करके चर्चा में बने रहना चाहते हैं। जहां तक पाठिकाओं के विचारों का सवाल है तो बुजुर्ग पाठिका लीला रामचंद्रन के विचार जानकर बहुत अच्छा लगा कि वह आज के जमाने की जरूरतों को समझती हैं। युवा पाठिका अनामिका ने भी बिलकुल सही कहा है कि अब लोग रिश्तों के मामले में भी दिखावा करने लगे हैं। जीवन में अब पहले जैसी सहजता नहीं रही। इसी समाज का हिस्सा होने के कारण जाने-अनजाने हम सब इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए हमें सचेत ढंग से ऐसी आदत से बचने की कोशिश करनी चाहिए। गीतिका कपूर, मनोवैज्ञानिक सलाहकार
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