रुद्रावतार हैं श्री हनुमान
सनातन संस्कृति में श्रीहनुमानजी को विशेष रूप से पूजनीय माना गया है। वह सभी मंगलों के मूल कारण और संसार के भार को दूर करने वाले हैं। इन्हें रुद्र अर्थात शंकर भगवान का अवतार माना गया है। शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को श्री हनुमान जी का जन्म
पापमोचनी एकादशी & अप्रैल
भौम प्रदोष व्रत 5 अप्रैल
अमावस्या 7 अप्रैल
नवसंवत्सर एवं नवरात्र प्रारंभ 8 अप्रैल
दुर्गाष्टमी 14 अप्रैल
कामदा एकादशी 17 अप्रैल
हनुमान जयंती 21 अप्रैल
सनातन संस्कृति में श्रीहनुमानजी को विशेष रूप से पूजनीय माना गया है। वह सभी मंगलों के मूल कारण और संसार के भार को दूर करने वाले हैं। इन्हें रुद्र अर्थात शंकर भगवान का अवतार माना गया है। शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था।
अवतरण की कथा
श्रीहनुमानजी के अवतरण के संबंध में रामायण सहित विभिन्न धर्म ग्रंथों में अनेक प्रसंग प्रचलित हैं। भगवान श्रीराम शिव के उपासक हैं और शिव भी श्रीराम को अपना आराध्य देव मानते हैंं। नारायण ने जब नर रूप में श्रीराम का अवतार ग्रहण किया तो समस्या यह हुई कि शंकरजी अपने वास्तविक रूप में उनके नर रूप की आराधना कैसे करें? अत: उन्होंने भगवान श्रीराम की सहायता के लिए वानर अवतार लेकर अपनी इस इ'छा को पूर्ण किया। वानर के रूप में अवतार लेकर उन्होंने श्रीराम के समस्त असंभव कार्यों जैसे-समुद्र लांघ कर सीता जी का पता लगाना, लंका-दहन, संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को प्राणदान देना और राक्षसों का वध जैसे दुर्गम कार्यों को पूरा किया।
कैसे हुआ नामकरण
श्रीहनुमान जी जाग्रत देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्हें ब्रह्मचर्य की साक्षात प्रतिमूर्ति माना जाता है। यह वीरता के साथ बुद्धिमत्ता और सरलता के भी प्रतीक हैं। सभी पुराणों और विविध रामायणों के अनुसार त्रेतायुग में वह अंजना नाम की अप्सरा के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे। वायु के अंश से उत्पन्न होने के कारण ये पवनपुत्र नाम से विख्यात हुए। श्रीराम का परम भक्त होने के कारण इन्हें रामदूत भी कहा गया है, पर हनुमान इनका सर्वप्रसिद्ध नाम है और इसके पीछे एक रोचक कथा प्रचलित है। एक बार बचपन में हनुमान जी को बहुत तेज भूख लगी थी। आसपास खाने की कोई चीज नहीं दिखी तो उन्होंने उगते लाल रंग के सूरज को फल समझ कर निगल लिया। संयोगवश उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए सूर्य के समीप पहुंचा था। अमावस्या और प्रतिपदा की संधि होने के कारण उस अवधि में सूर्य ग्रहण लगने वाला था। भूख से व्याकुल बाल हनुमान को ऐसा लगा कि राहु उनके रास्ते में रुकावट बनकर खडा है। इसीलिए उन्होंने राहु को धक्का दे दिया। इससे भयभीत होकर वह इंद्र के पास पहुंचा। इस घटना को सृष्टि की व्यवस्था में विघ्न समझकर इंद्र ने अपने व्रज से उनकी ठुड्डी (हनु) पर प्रहार किया, जिससे पवनपुत्र मूर्'िछत हो गए। पुत्र पर व्रज के प्रहार से पवन देवता ने क्रोधित होकर अपना संचार रोक दिया। इसके अभाव में प्रजा व्याकुल होकर ब्रह्मा जी के पास पहुंची। देवताओं के साथ ब्रह्मा जी वायु देव के पास गए, जहां वह अपने मूर्'िछत पुत्र को लेकर बैठे थे। ब्रह्मा जी ने अपने स्पर्श से उस बालक को सचेत कर दिया और उन्होंने पवन देवता को वरदान देते हुए कहा कि हे मारुत! तुम्हारा यह पुत्र शत्रुओं का विनाशक साबित होगा। हनु पर प्रहार होने के कारण आज से यह हनुमान के नाम से लोक विख्यात होगा।
अति चंचल बाल हनुमान
बाल्यकाल में हनुमानजी अपनी शरारतों से ऋषियों को परेशान कर देते थे, इससे क्रोधित होकर उन्होंने बालक हनुमान को श्राप दिया कि तुम्हें अपने अतुलित बल का कोई आभास नहीं होगा। जब तुम्हें कोई इसका स्मरण दिलाएगा, तभी तुम्हारी यह शक्ति वापस लौटेगी। जब सीता जी का पता लगाने के लिए हनुमान जी को उडकर समुद्र के उस पार जाना था तो, उन्हें अपनी इस शक्ति का आभास ही नहीं था। ऐसी विकट स्थिति में जामवंतजी ने हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया और अपने बल का भान होने पर उन्होंने विराट रूप धारण कर उडते हुए समुद्र को लांघ कर जानकी माता का पता लगाया और लंका दहन किया। हनुमान जी श्रीराम के परम भक्त हैं। सनातन संस्कृति की मान्यता के अनुसार अगर भक्त की स्तुति की जाए तो इससे भगवान स्वत: प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीहनुमान जी के स्मरण से मनुष्य को बुद्धि, बल, यश, धैर्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए लोग हनुमान जी के सामने श्रद्धा से नतमस्तक होते हैं। द्
शुभ्भ कार्यों में कलश
स्थापना क्यों की जाती है?
प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के प्रारंभ में सबसे पहले मिट्टी के कलश की स्थापना की जाती है, जिसके भीतर आम का पल्लव रखकर उस पर अक्षत से भरी कटोरी और नारियल रखा जाता है, जिसे पूर्णपात्र कहा जाता है। पूर्णपात्र के साथ स्थापित कलश को आरोग्य, सौभाग्य और समृद्धि का सूचक माना जाता है। सनातन संस्कृति में मानव जीवन की तुलना जल भरे कलश से की जाती है। हमारा शरीर मिट्टी के कलश की तरह होता है, जिसमें आत्मा-स्वरूप जल का वास होता है। इस दृष्टि से भी जल से भरे कलश को शुभ फलदायी माना जाता है।
संध्या टंडन