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इंसाफ के दर पर तारीख दर तारीख

बीमार होने पर सभी हॉस्पिटल जाते हैं, लेकिन क्या हो यदि अस्पताल की लापरवाही मरीज़्ा की जान पर भारी पड़ जाए! ऐसे ही एक मामले के बारे में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट कमलेश जैन।

By Edited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 03:24 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 03:24 PM (IST)
इंसाफ के दर पर तारीख दर तारीख

बीमार होने पर सभी हॉस्पिटल जाते हैं, लेकिन क्या हो यदि अस्पताल की लापरवाही मरीज्ा की जान पर भारी पड जाए! ऐसे ही एक मामले के बारे में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट कमलेश जैन।

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उपभोक्ता संरक्षण कानून लोगों की मदद के लिए बनाया गया है। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां उपभोक्ता हितों की सरासर अनदेखी होती है, यहां तक कि यह लापरवाही उनकी जान की कीमत पर की जाती है। लापरवाही का ऐसा ही एक मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। वह उपभोक्ता संरक्षण कानून के लूपहोल्स की तरफ इशारा करता है।

सर्जरी से पहले जांच नहीं

यह घटना है 8 नवंबर 1995 की। नवीं कक्षा में पढऩे वाला छात्र संजय कुमार पेट दर्द और कब्ज्ा की शिकायत लेकर पटना के एक डॉक्टर के पास पहुंचा। ऊपरी जांच के बाद डॉक्टर ने कुछ मेडिकल टेस्ट्स की सलाह दी। डॉक्टर ने उसे बिहार के सर्वोत्तम कहे जाने वाले कुर्जी हॉस्पिटल पटना जाने को कहा। वहां कुछ मेडिकल टेस्ट हुए। सर्जन डॉ. हमीदी को लगा कि मरीज्ा को ऑपरेशन की ज्ारूरत पड सकती है। इस समय बच्चे की हालत ख्ाराब थी, वह कमज्ाोर था और उसकी आंखों से ख्ाून बह रहा था।

प्लेटलेट्स की कमी से मौत

मामले की जांच कर रहे डॉ. हमीदी ने बिना यह जांचे कि आंख से ख्ाून बहने का कारण क्या है, ऑपरेशन थिएटर तैयार कर लिया। किसी भी सर्जरी से पहले शरीर की तमाम जांचें होनी अनिवार्य हैं। ब्लड प्रेशर और अन्य बीमारियों, दवा से एलर्जी, प्लेटलेट्स काउंट, ख्ाून आदि की पूरी जांच के बाद ही मरीज्ा के ऑपरेशन के बारे में सोचा जाता है। ध्यान रहे कि प्लेटलेट्स काउंट अगर डेढ लाख से साढे तीन लाख के बीच हो, तभी कोई सर्जरी हो सकती है। इस अस्पताल में जांच करने की आवश्यकता नहीं समझी गई। ऑपरेशन शुरू हो गया, लेकिन ख्ाून बहना बंद न हुआ। आंखों के अलावा कान, नाक, मुंह, एनस, ऑपरेशन की जगह पर बने घाव से निरंतर दो दिनों तक ख्ाून बहता रहा। इसके बाद उसे ख्ाून चढाना पडा। दो दिन लगातार ख्ाून चढाने के बाद भी प्लेटलेट्स काउंट 55 हज्ाार आया। प्लेटलेट्स बहुत गिरने से रक्त के थक्के नहीं बन पा रहे थे और शरीर में ख्ाून बन ही नहीं रहा था। नतीजा यह हुआ कि छात्र की दर्दनाक मौत हो गई।

पिता ने की शिकायत

टीनएजर बेटे की असामयिक मौत से आहत पिता नंद किशोर प्रसाद ने लापरवाही से जुडे इस मामले के ख्िालाफ राज्य उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग बिहार में मुकदमा फाइल किया। लेकिन यहां मामला ख्ाारिज्ा कर दिया गया। इसके बाद नंद किशोर दिल्ली आए और यहां उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद-निस्तारण आयोग में मामला दाख्िाल किया। यहां से मुकदमा रिमांड पर बिहार पटना स्टेट कमिशन पहुंचा। इस बार राज्य उपभोक्ता आयोग ने अस्पताल पर चार लाख रुपये ज्ाुर्माना लगाया, इसके अलावा डॉ. हमीदी पर अलग से दो लाख रुपये का ज्ाुर्माना लगाया गया।

मामला ऐसे ही घिसटता रहा। कभी अस्पताल तो कभी डॉक्टर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के चक्कर काटते रहे। पटना में एक्सपट्र्स की सलाह ली गई, जिन्होंने माना कि यह अस्पताल और डॉक्टर की घोर लापरवाही से जुडा मामला है। यह आपराधिक लापरवाही है। बिना प्लेटलेट्स की जांच किए ऑपरेशन करने का अर्थ है, सीधे मौत को दावत देना। सीधे खून चढाने से प्लेटलेट्स कभी नहीं बढते। इसके लिए प्लाज्मा सेल्स चढाने पडते हैं।

बरसों से लंबित मामला

शिकायतों, आरोपों, बचाव पक्ष की दलीलों और एक्सपट्र्स की प्रतिक्रियाओं से भरी यह पूरी प्रक्रिया लगभग 20 वर्ष तक चलती रही। इस बीच पिता ने लगातार अदालतों के चक्कर काटे। यहां तक कि उन्होंने स्वयं दिल्ली उपभोक्ता कमिशन में बहस की, क्योंकि वकील रखने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उधर डॉक्टर ने भी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग से इस आशय का आदेश पारित करवा लिया कि मेडिकल स्तर पर लापरवाही तो हुई है, लेकिन उन्हें दो लाख रुपये देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अस्पताल ने भी अब तक चार लाख रुपये नहीं जमा कराए हैं।

ऐसे में किस न्याय की बात की जा सकती है! िफलहाल मामला सर्वोच्च न्यायालय में रजिस्टर कर लिया गया है। एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अस्पताल सहित डॉक्टर को नोटिस दिया गया है।

कमलेश जैन


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