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बच्चों में बढ़ती बेचैनी

पढ़ाई के दौरान बच्चों को हर आधे घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक ज़रूर दें। ऐसे बच्चे बेहद जिज्ञासु और क्रिएटिव होते हैं।

By Edited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 03:48 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 03:48 PM (IST)
बच्चों में बढ़ती बेचैनी
मेरे 8 वर्षीय बेटे में जरा भी धैर्य नहीं है। सार्वजनिक स्थलों पर अपनी बारी का इंतजार करते वक्त उसे बहुत झुंझलाहट होती है। वह पल भर के लिए भी चैन से नहीं बैठ पाता। हर काम में बहुत जल्दबाजी करता है। इसी वजह से वह परीक्षा में सवालों के गलत जवाब लिख देता है। मुझे ऐसा लगता है कि मैं उसे अच्छी परवरिश नहीं दे पा रही हूं। उसके लिए मुझे क्या करना चाहिए? सुनंदा ग्रोवर, चंडीगढ यहां बताए गए लक्षणों से ऐसा लगता है कि आपका बेटा एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसॉर्डर से ग्रस्त है। इसलिए आप किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार से संपर्क करें। यह समस्या बच्चों में जन्मजात रूप से पाई जाती है पर इसकी पहचान पांच साल की उम्र के बाद ही हो पाती है। इसके लिए आप खुद को दोषी न मानें। अभी इस समस्या के सभी कारण पूर्णत: स्पष्ट नहीं हैं। फिर भी वैज्ञानिकों के अनुसार आनुवंशिक रूप से जीन की संरचना में गडबडी इसकी सबसे प्रमुख वजह है। जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसॉर्डर से ग्रस्त बच्चे किसी भी कार्य में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते, इससे ये पढाई में भी पिछडऩे लगते हैं। साथ ही हाइपर ऐक्टिव होने की वजह से ये बेवजह हिलते-डुलते और शोर मचाते रहते हैं। कई बार इनका व्यवहार बेहद आक्रामक हो जाता है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इनके शरीर में कोई मशीन फिट कर दी गई हो। लक्षणों की तीव्रता के आधार पर इस समस्या को तीन भागों में बांटा जाता है। माइल्ड, मॉडरेट और सिवियर। माइल्ड एडीएचडी होने पर लगभग तीन से छह महीने तक काउंसलर बच्चों से कुछ ऐसी मेंटल एक्सरसाइज करवाते हैं, जिनसे उन्हें ध्यान केंद्रित करने और अपने अति चंचल व्यवहार को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। मॉडरेट या सिवियर एडीएचडी होने पर काउंसलिंग और एक्सरसाइज के साथ बच्चे को कुछ दवाएं भी दी जाती हैं। उपचार शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से बच्चे को ज्य़ादा नींद और कम भूख की समस्या हो सकती है लेकिन बाद में ये लक्षण दूर हो जाते हैं। आधुनिक तकनीक के विकास के साथ आजकल कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जो सीधे ब्रेन के प्रभावित हिस्से पर असर डालती हैं। इसलिए अब दवाओं के साइड इफेक्ट की आशंका कम हो गई है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि यह समस्या आनुवंशिक कारणों से होती है। इसलिए इससे बचाव मुश्किल है। फिर भी अगर किसी बच्चे को ऐसी समस्या हो तो उसे जंक फूड से दूर रखें क्योंकि उसमें मौजूद आर्टिफिशियल कलर और प्रिजर्वेटिव की वजह से कुछ ऐसे हॉर्मोन्स का सिक्रीशन होता है, जो बच्चे के ब्रेन को अशांत कर देता है। इसके अलावा चॉकलेट और ज्य़ादा मीठी चीजें भी ब्रेन पर ऐसा ही प्रभाव डालती हैं। काउंसलर द्वारा बताई गई एक्सरसाइज बच्चे को घर पर भी नियमित रूप से करवाएं। इससे उसके लिए अपने व्यवहार को नियंत्रित करना आसान हो जाएगा। बच्चे का स्टडी टेबल कोने में रखें, उसके सामने वाली दीवार पर कोई पोस्टर या सजावट नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे बच्चे का ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। अगर बच्चे को ऐसी समस्या है तो उसकी क्लास टीचर को इसके बारे में जरूर बताएं क्योंकि इसे दूर करने के लिए स्कूल का सहयोग बहुत जरूरी है। ऐसे बच्चों को क्लास रूम में हमेशा फस्र्ट बेंच पर बिठाना चाहिए। टीचर क्लास के किसी शांत और समझदार बच्चे को इस बात की जिम्मेदारी सौंपें कि वह एडीएचडी की समस्या से ग्रस्त बच्चे को पढाई में सहयोग दे। जागरूकता के अभाव में कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे को चाइल्ड काउंसलर के पास नहीं ले जाते, जिससे बडे होने के बाद इनका व्यवहार हिंसक हो जाता है। अगर किसी भी बच्चे में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो उसे काउंसलिंग के लिए जरूर ले जाएं। अगर ऐसे बच्चों को पेरेंट्स और टीचर्स का पूरा सहयोग मिले तो उनकी यह समस्या जल्द ही दूर हो जाती है। द्य ऐसी समस्या से ग्रस्त बच्चों का अपने विचारों और शारीरिक गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता। इसलिए उछल-कूद मचाने पर इन्हें बार-बार न डांटें।

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