क्या मातृत्व की राह में बाधक है करियर?
भारतीय स्त्रियां तेज़ी से आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रही हैं, पर नौकरी और परिवार के बीच सही तालमेल बिठाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। समाज की दोनों पीढिय़ां क्या सोचती हैं, इस बारे में,आइए जानते हैं सखी के साथ।
भारतीय स्त्रियां तेजी से आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ रही हैं, पर नौकरी और परिवार के बीच सही तालमेल बिठाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। समाज की दोनों पीढियां क्या सोचती हैं, इस बारे में,आइए जानते हैं सखी के साथ।
आती हैं कई मुश्किलें
शुभा त्यागी, गाजिय़ाबाद
अपने अनुभवों के आधार पर मुझे ऐसा महसूस होता है कि बच्चों की परवरिश के मामले में कामकाजी स्त्रियों को काफी दिक्कतें आती हैं। मैं हाल ही में भारतीय रेलवे की नौकरी से सेवा निवृत्त हुई हूं। इस मामले में मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि अपनी बेटी की परवरिश के दौरान मुझे अपने माता-पिता का पूरा सहयोग मिला, तभी मैं अपने करियर पर ध्यान दे पाई। कामकाजी स्त्रियों के लिए परिवार का सहयोग बहुत मायने रखता है। जॉब के साथ बच्चों और घर-परिवार को संभालना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन स्त्रियों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता भी बेहद जरूरी है। घर-परिवार और करियर के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सही टाइम मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। अगर कोई मां घर से बाहर जाकर जॉब करती है तो उसके बच्चे छोटी उम्र से ही जिम्मेदार बन जाते हैं।
करियर भी है जरूरी
आस्था माहेश्वरी, कानपुर
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि करियर की वजह से स्त्री के पारिवारिक जीवन में मुश्किलें आती हैं। आज की स्त्री मल्टीटास्किंग है। वह बडी कुशलता से घर और दफ्तर की जिम्मेदारियों को एक साथ निभा सकती है। सबसे अच्छी बात यह है कि आजकल परिवारों में पति और सास-ससुर भी कामकाजी स्त्री की जरूरतों को समझते हुए उसे पूरा सहयोग देते हैं। लडकियों को अपनी शिक्षा का सही इस्तेमाल करना चाहिए और यह तभी संभव होगा, जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी। दरअसल जिन स्त्रियों के परिवार के सदस्य उन्हें जॉब करने से रोकना चाहते हैं, वही लोग ऐसा बहाना बनाते हैं कि करियर मातृत्व की राह में बाधक है। मेरा मानना है कि एक आत्मनिर्भर मां अपने बच्चे को ज्यादा अच्छी परवरिश दे सकती है।
विशेषज्ञ की राय
जहां तक स्त्रियों के करियर का सवाल है तो मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि इसकी वजह से उनके पारिवारिक जीवन की सुख-शांति में कोई बाधा उत्पन्न होती है। हां, समय के साथ परिवार और समाज में कामकाजी स्त्रियों के दायित्व तेजी से बढ रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी वजह से वे दुखी या परेशान हैं। दरअसल जिन्हें स्त्री की काबिलीयत पर भरोसा नहीं होता या जो अपने परिवार की स्त्रियों को जॉब के लिए घर से बाहर निकलने की आजादी नहीं देना चाहते, वही लोग जानबूझ कर ऐसी बातें करते हैं। अपने परिवार के सदस्यों द्वारा बार-बार ऐसी बातें सुनकर कई बार शिक्षित स्त्रियों का भी मनोबल कमजोर पडने लगता है और वे आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में सोचना छोड देती हैं। चाहे निजी हो या सरकारी, आजकल सभी संस्थान अपने यहां काम करने वाली स्त्रियों को मैटरनिटी लीव के अलावा अन्य कई तरह की सुविधाएं देते हैं, जिससे उनके लिए बच्चे की देखभाल के साथ अपने प्रोफेशनल दायित्व निभाना आसान हो जाता है। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि बुजुर्ग पाठिका शुभा जी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। युवा पाठिका आस्था की इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि स्त्रियों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदल रहा है और अब परिवार के सभी सदस्य कामकाजी स्त्रियों को पूरा सहयोग देते हैं।
गीतिका कपूर,
मनोवैज्ञानिक सलाहकार