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रिश्तों में तेज़ाब

रास्ते चलती लड़की के चेहरे पर तेज़ाब फेंक कर उसकी जि़ंदगी नष्टï कर देने की घिनौनी हरकत अब केवल एकतरफा प्यार में नाकाम मनचलों तक सीमित नहीं रह गई है। घरेलू हिंसा से लेकर व्यावसायिक द्वेष तक यह प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। आखिर कहां है इसका अंत?

By Edited By: Published: Mon, 23 Mar 2015 03:44 PM (IST)Updated: Mon, 23 Mar 2015 03:44 PM (IST)

रास्ते चलती लडकी के चेहरे पर तेजाब फेंक कर उसकी जिंदगी नष्ट कर देने की घिनौनी हरकत अब केवल एकतरफा प्यार में नाकाम मनचलों तक सीमित नहीं रह गई है। घरेलू हिंसा से लेकर व्यावसायिक द्वेष तक यह प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। आखिर कहां है इसका अंत?

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लक्ष्मी उस वक्त स्टॉप पर खडी बस का इंतजार कर रही थी, जब उसे अचानक धकेल कर गिरा दिया गया और फिर चेहरे पर तेजाब उडेल दिया गया। उस पर हमला करने वाला लडका पडोसी ही नहीं, उसकी दोस्त का भाई भी था और हमलावर का साथ देने वाली लडकी उसके भाई की गर्लफ्रेंड थी।

कोलकाता की शबाना खातून को उसके ब्वॉयफे्रंड के परिवार वालों ने घर बुलाया, शादी की बातचीत के लिए। पहुंचने पर उसे पहले तो अपमानित किया और बाद में जबरिया तेजाब पिला दिया।

बंगालुरू की हसीना एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करती थी। उसे दूसरी जॉब मिल गई। इससे पहली कंपनी के मालिक का अहं आहत हुआ और उसने हसीना पर एसिड अटैक कर दिया।

दिल्ली के एक होटल में डांसर रही अन्नू मुखर्जी अपनी ही सहकर्मी के एसिड अटैक की शिकार हुई। अन्नू ज्यादा सेलरी पाती थी, इसलिए सहकर्मी उससे ईष्र्या करती थी।

स्वार्थ, ईष्र्या और अहं

ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। देश भर में आए दिन लडकियां ऐसे ही तेजाबी हमलों की शिकार होती रहती हैं। ये घटनाएं कुछ दिन अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। चर्चा में रहती हैं। फिर दूसरी कई घटनाओं की तरह आई-गई बात हो जाती हैं। आम तौर पर माना जाता है कि लडकियों के खिलाफ इस घिनौने कृत्य को सिर्फ लडके ही अंजाम देते हैं, लेकिन ऊपर जिन मामलों का जिक्र किया गया है, उनसे यह धारणा गलत साबित होती है। स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले इस जघन्य अपराध में स्त्रियां पुरुषों के साथ सिर्फ शामिल ही नहीं होतीं, बल्कि खुद शिकार भी बनाती हैं। कभी स्वार्थ, तो कभी ईष्र्या और कभी अहं आहत होने के कारण। इसके पीछे की वजहों और मानसिकता पर गौर करें तो और भी शर्मनाक स्थिति सामने आती है। लंदन के संगठन एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया भर में होने वाले एसिड अटैक्स की 80 फीसद शिकार स्त्रियां होती हैं।

भारत में हुए अध्ययन के अनुसार 34 फीसद घटनाओं के पीछे वजह विवाह या प्रेम प्रस्ताव का अस्वीकार है। अधिकतर मामलों में पुरुष का एकतरफा प्यार, जो सही माने में आकर्षण से अधिक कुछ नहीं था, आहत हुआ और उसने बदले की भावना से इस जघन्य कृत्य को अंजाम दे डाला। सन 2002 से 2010 के बीच हुए मामलों में 20 प्रतिशत के पीछे वजह संपत्ति विवाद रहा। कुछ मामलों में यौन उत्पीडऩ का विरोध और यहां तक कि दहेज भी कारण रहा।

मुश्किलें मन की

इस हमले के शिकार व्यक्ति के शरीर को तो क्षति पहुंचती ही है, उसे सामाजिक , आर्थिक और मनोवैज्ञानिक जटिलताएं भी झेलनी पडती हैं। कई स्त्रियां तो एसिड अटैक झेलने के बाद विकलांगता जैसी स्थिति में पहुंच चुकी हैं। वे अपने दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो कर रह जाती हैं। कुछ के लिए चलना-फिरना दुश्वार हो जाता है तो कुछ के लिए खाना-पीना तक मुश्किल हो जाता है। कोलकाता की शबाना खातून अब केवल लिक्विड डाइट पर जिंदा है। मनोवैज्ञानिक समस्याओं का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जो स्त्री अपने दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो, उसकी मानसिक पीडा का स्तर क्या होगा? युगांडा में तो एसिड अटैक की शिकार 25 प्रतिशत स्त्रियों को तलाक की दोहरी पीडा से भी गुजरना पडा। पश्चिम में हुए एक अध्ययन में ऐसी स्त्रियों में अवसाद, चिंता और तनाव का स्तर बहुत अधिक पाया गया। इससे उनका आत्मविश्वास भी प्रभावित होता है। सऊदी अरब, बहरीन और कुवैत की स्थिति और भी खराब है।

भयावह हैं हालात

इस मामले में सबसे भयावह स्थिति दक्षिण एशिया में ही है। बांग्लादेश में तो कभी यह आए दिन की बात रही है। सबसे ज्य़ादा एसिड अटैक वहां घरेलू हिंसा के मामलों में ही होते हैं। 1999 में वहां ऐसे 3000 मामले दर्ज किए गए थे। हालांकि कडे कानून बनाए जाने के बाद से वहां ऐसी घटनाओं में लगातार कमी आ रही है। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक पाकिस्तान में यह संख्या प्रतिवर्ष 400 से 750 के बीच होती है। कंबोडिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। उत्तर अमेरिका और यूरोप भी इससे अछूते नहीं हैं।

भारत में तो अभी तक इसके आधिकारिक आंकडे भी उपलब्ध नहीं हैं। फरवरी 2013 तक इसके लिए अलग से कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं था। इसे स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अन्य अत्याचारों में ही दर्ज किया जाता रहा है। फरवरी 2013 में भारतीय दंड विधान में हुए एक संशोधन के बाद इसे धारा 326क और धारा 326ख के तहत अलग से दर्ज किया जाने लगा। तेजाबी हमलों से पीडित स्त्रियों के लिए काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन स्टॉप एसिड अटैक से जुडे आशीष शुक्ल के अनुसार 8 मार्च 2013 के बाद से अब तक भारत में कुल 180 से अधिक एसिड अटैक हुए हैं। हालांकि यह आंकडा मीडिया में छपी खबरों से जुटाई गई सूचनाओं पर आधारित है।

पाबंदी तेजाब पर

जानकार लोग इन हमलों पर प्रभावी रोक के लिए सबसे जरूरी मानते हैं तेजाब की बिक्री का नियमन किया जाना। एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी की एक याचिका की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2013 में एसिड की बिक्री के नियमन के लिए एक अंतरिम आदेश भी जारी किया था, पर यह व्यवस्था अभी तक प्रभावी नहीं बनाई जा सकी। केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश जारी किया था कि जो दुकानदार तेजाब की बिक्री के मामले में अपना रजिस्टर और खरीदार का ब्योरा दर्ज न करें, उन पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाए। लेकिन, यह अभी तक लागू नहीं हो सका है। वैसे भी इसे प्रभावी बना पाना कोई आसान काम नहीं है।

हालांकि बांग्लादेश में तेजाब के विक्रय, उपयोग और भंडारण का कानून के जरिये नियमन किया जा चुका है। इसके साथ ही वहां एसिड अटैक करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान भी है। सन 2002 में ही वहां इसके लिए अपराध साबित होने पर फांसी की सजा मुकर्रर की जा चुकी है और इसका ही नतीजा है कि इसके बाद से वहां ऐसी वारदातों में काफी कमी आई है।

भारत में सुप्रीम कोर्ट एसिड अटैक से पीडित व्यक्ति के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था भी दे चुका है। इसका अनुपालन राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के अस्पतालों को करना होगा। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस भी जारी किया है। कोर्ट ने स्थिति को दयनीय बताते हुए केंद्र सरकार से भी पूछा है कि ऐसी शिथिलता क्यों बरती जा रही है। एसिड अटैक की शिकार लडकियों के इलाज और उनके पुनर्वास की व्यवस्था के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन लाख रुपये तक मुआवजा देने का निर्देश भी जारी किया था। हालांकि इसके अनुपालन को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। जरूरत इस बात की है कि एसिड अटैक से पीडितों के तुरंत इलाज की व्यवस्था बनाई जाए। समाज में इतनी जागरूकता लाई जाए कि लोग उनके प्रति सामान्य रवैया अपनाएं।

एसिड अटैक का असर

ह्न सिर का ऊपरी हिस्सा आंशिक या पूरी तरह विकृत या नष्ट हो सकता है।

ह्न कान की हड्डियों पर असर के अलावा बहरेपन की समस्या भी हो सकती है।

ह्न पलकें जल सकती हैं और अगर तेजाब आंखों में चला गया तो अंधापन भी हो सकता है।

ह्न नाक में सिकुडऩ आ सकती है। अगर हड्डियों पर असर पड जाए तो नथुने पूरी तरह बंद भी हो सकते हैं।

ह्न मुंह भी संकरा हो सकता है, जिसके चलते बोलने और खाने में भी मुश्किल हो सकती है।

ह्न पूरे चेहरे के अलावा गर्दन पर भी घाव बन सकता है और दाग पड सकते हैं।

तुरंत शुरू करें उपचार

एसिड से होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर है कि वह कितना कंसंट्रेटेड और शरीर के किस हिस्से पर पडा है। एसिड जितना कंसंट्रेटेड होगा, उससे होने वाला घाव उतना ही अधिक होगा। यह बात भी गौर करने की है कि चेहरे और पेट जैसे कुछ हिस्सों की त्वचा काफी नर्म और नाजुक होती है, जबकि हाथ-पैर जैसे हिस्सों की त्वचा कडी होती है। जितनी नर्म त्वचा पर एसिड पडता है घाव उतना ही गहरा होता है। एसिड पडऩे से त्वचा तो खराब होती ही है, उसके नीचे के सब कोटानियस टिश्यूज और मसल्स पर भी गहरे घाव हो सकते हैं।

जैसे ही लगे कि कोई एसिड फेंक रहा है, सबसे पहले आंखें ढक लें।

-जितनी जल्दी संभव हो, शरीर पर पडी एसिड की बूंदों को किसी कपडे से सुखा दें।

-पहने हुए कपडों के जिन हिस्सों पर एसिड पडा हो, उन्हें जितनी संभव हो निकाल दें। क्योंकि एसिड को कपडे से रिस कर शरीर तक पहुंचते देर नहीं लगती। वे कपडे शरीर पर रह गए तो इससे घाव हो सकता है और दुष्प्रभाव बढ सकता है।

-अगर पानी मिल जाए तो उसे तुरंत धुलने की कोशिश करें।

-जितनी जल्दी हो सके किसी हॉस्पिटल पहुंचें। अगर आसपास कोई हॉस्पिटल न हो तो निकटतम डॉक्टर के पास जाएं।

(दिल्ली स्थित रॉकलैंड हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रतन कुमार वैश्य से बातचीत पर आधारित।)

इष्ट देव सांकृत्यायन


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