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अनदेखा न करें इसे

पेटदर्द को अकसर लोग खानपान में गड़बड़ी की वजह से पैदा होने वाली मामूली समस्या समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ऐसी लापरवाही ठीक नहीं है। पेप्टिक अल्सर की वजह से भी यह परेशानी हो सकती है। समय के साथ बदलती जीवनशैली की गलत आदतों ने जिन स्वास्थ्य समस्याओं को

By Edited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 04:37 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 04:37 PM (IST)

पेटदर्द को अकसर लोग खानपान में गडबडी की वजह से पैदा होने वाली मामूली समस्या समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसी लापरवाही ठीक नहीं है। पेप्टिक अल्सर की वजह से भी यह परेशानी हो सकती है।

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समय के साथ बदलती जीवनशैली की गलत आदतों ने जिन स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दिया है, पेप्टिक अल्सर भी उनमें से एक है। दरअसल पेट मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अत्यंत नाजुक टिश्यूज से बना होता है। इसलिए खानपान में होने वाली लापरवाही का सीधा असर पेट की सेहत पर पडता है। हालांकि पेट में दर्द, जलन, सूजन या जी मिचलाने जैसी समस्याओं को अकसर लोग पाचन संबंधी मामूली गडबडी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। बहुत कम लोगों को ही यह मालूम होता है कि बार-बार दिखाई देने वाले ऐसे लक्षण पेप्टिक अल्सर की वजह से भी पैदा हो सकते हैं।

क्या है मजर्

पेट के भीतरी हिस्से की त्वचा बहुत नाजुक होती है। कई बार खानपान की गलत आदतों की वजह से आंतों की त्वचा में छाले या जख्म की समस्या हो जाती है, जिसे अल्सर कहा जाता है। पेट के भीतर स्थित भोजन की नली, आमाशय और आंतों के भीतर म्यूकस की एक चिकनी परत होती है, जो इन अंगों को पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचाती है। इनकी ख्ाासियत यह है कि ये अम्लीय तत्व भोजन को पचाने में सहायक होते हैं, लेकिन ये पेट के टिश्यूज के लिए नुकसानदेह भी होते हैं। पाचन क्रिया को सही ढंग से चलाने के लिए इनकी मौजूदगी जरूरी है। आमतौर पर एसिड और म्यूकस की परतों के बीच संतुलन बना रहता है, लेकिन इसके बिगडऩे पर अल्सर की आशंका बढ जाती है। अल्सर तीन प्रकार के होते हैं :

1. गैस्ट्रिक अल्सर : यह आमाशय के भीतर विकसित होता है।

2. इसोफैगियल अल्सर : यह खाने की नली इसोफैगस में होता है, जो भोजन को गले से पेट में ले जाती है।

3. डुओडेनल अल्सर : छोटी आंत के ऊपरी हिस्से को ड्योडेनम कहा जाता है और इस हिस्से में होने वाले अल्सर को डुओडेनल अल्सर कहा जाता है। पेप्टिक अल्सर से पीडितों में लगभग 80 प्रतिशत लोग डुओडेनल अल्सर से ग्रस्त होते हैं।

प्रमुख वजह

इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण एच.पायलोरी (॥द्गद्यद्बष्शड्ढड्डष्ह्लद्गह्म् क्क4द्यशह्म्द्ब) बैक्टीरिया है, जिसका संक्रमण गंदगी या दूषित पानी की वजह से होता है। शारीरिक सक्रियता में कमी या कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से भी यह समस्या हो सकती है। रोजाना के भोजन में बहुत ज्य़ादा घी-तेल या मिर्च-मसाले का इस्तेमाल, अधिक मात्रा में चाय-कॉफी, एल्कोहॉल, सिगरेट एवं तंबाकू का सेवन पेट में पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा को बढा देता है, जो पेप्टिक अल्सर का कारण बन जाता है। मानसिक तनाव की स्थिति में भी आंतों से अधिक मात्रा में एसिड का सिक्रीशन होता है, जिससे यह समस्या हो सकती है। स्टेरॉयड और दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन भी पेप्टिक अल्सर के लिए जिम्मेदार होता है।

कैसे पहचानें लक्षण

हर व्यक्ति में पेप्टिक अल्सर के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं। फिर भी कुछ ऐसे प्रमुख लक्षण हैं, जो सब में समान रूप से पाए जाते हैं। भूख न लगना, पेट के ऊपरी हिस्से में हलका दर्द आदि। ख्ाासतौर पर ज्य़ादा देर तक ख्ााली पेट रहने पर एसिड अल्सर ग्रस्त कोशिकाओं पर असर डालने लगता है और दर्द तेज हो जाता है। पेप्टिक अल्सर का दर्द ज्य़ादातर रात के वक्त बढ जाता है। ऐसी समस्या होने पर पेट में जलन और सूजन जैसे लक्षण नजर आते हैं। पेप्टिक अल्सर होने पर खाने की नली सिकुडकर छोटी हो जाती है। इससे नॉजिया और उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। उपचार में ज्य़ादा देर होने पर अल्सर में हैमरेज भी हो सकता है। ऐसे में मोशन के साथ ब्लीडिंग या ख्ाून की उल्टी जैसी समस्या हो सकती है। यह स्थिति जानलेवा साबित होती है।

क्या है उपचार

पेप्टिक अल्सर का सही समय पर उपचार बेहद जरूरी है। अन्यथा, ज्य़ादा देर होने पर इसकी वजह से आंतों का कैंसर भी हो सकता है। गंभीर स्थिति में प्रभावित स्थान से ख्ाून का रिसाव होने लगता है। नतीजतन शरीर में ख्ाून की कमी हो जाती है और आमाशय या छोटी आंत की दीवारों में छेद हो जाता है। इससे संक्रमण की आशंका बढ जाती है, पेट के टिश्यूज तेजी से क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और भोजन के प्रवाह में भी बाधा पहुंचती है। व्यक्ति का वजन तेजी से घटने लगता है। ब्लड या स्टूल एंटीजेन टेस्ट की मदद से शरीर में एच. पायलोरी बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता चल जाता है। एंडोस्कोपी के जरिये आंतों की बायोप्सी करके भी इस बीमारी का पता लगाया जाता है। रिपोर्ट पॉजिटिव होने की स्थिति मेें पीपीआइ (क्कह्म्शह्लश--श्चह्वद्वश्च द्ब-द्धद्बड्ढद्बह्लशह्म्) दवाओं का डोज दिया जाता है, जो एसिड बनने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। अगर शुरुआती दौर में ही पहचान कर ली जाए तो केवल दवाओं के सेवन और सादगीपूर्ण खानपान की मदद से तीन-चार महीने में यह समस्या दूर हो जाती है। बैक्टीरिया का रेजिस्टेंस पावर बढऩे की वजह से कई बार लोगों को लंबे समय तक दवाएं खाने की जरूरत पड सकती है। गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र उपचार है। ऑपरेशन के एक सप्ताह बाद मरीज अस्पताल से घर वापस लौट आता है। इसके बाद डॉक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए वह पूर्णत: स्वस्थ और सक्रिय जीवन व्यतीत करता है।

कैसा हो खानपान

उपचार से बेहतर है बचाव। इसलिए अगर पहले से ही इन बातों का ध्यान रखा जाए तो पेप्टिक अल्सर से बचाव संभव है :

-रोजाना सुबह के नाश्ते में केले को नियमित रूप से शामिल करें। इसमें मौजूद एंटी बैक्टीरियल तत्व पेप्टिक अल्सर से बचाव में मददगार होते हैं।

-चाय, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक्स से दूर रहने की कोशिश करें। ये चीजें पेट में एसिड की मात्रा बढा देती हैं, जिससे यह बीमारी हो सकती है।

-नाशपाती में मौजूद फ्लेवोनॉयड (स्नद्यड्ड1श-शद्बस्रह्य ) नामक एंटी ऑक्सीडेंट तत्व अल्सर के लक्षणों को कम करता है। इसमें पाया जाने वाला फाइबर पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है।

-बंदगोभी में मौजूद अमीनो एसिड और ग्लूटामाइन (त्रद्यह्वह्लड्डद्वद्ब-द्ग) जैसे तत्व पाचन नली की भीतरी दीवारों को मजबूत बनाते हैं। ये जख्मों को भरने में भी मददगार होते हैं।

-इसके अलावा फूलगोभी में सल्फोराफेन (स्ह्वद्यद्घशह्म्ड्डश्चद्धड्ड-द्ग) नामक तत्व पाया जाता है, जो पाचन मार्ग में पाए जाने वाले नुकसानदेह बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है।

-लहसुन में एंटी अल्सर गुण मौजूद होते हैं। इसलिए रोजाना कच्चे लहसुन की दो कलियां चबाना भी फायदेमंद होता है।

-अपने रोजाना के खानपान में दही को नियमित रूप से शामिल करें क्योंकि यह नुकसानदेह बैक्टीरिया एच.पायलोरी को नष्ट करने में मददगार होता है। इसके अलावा दही में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया आंतों के जख्मों को भरने में मददगार होते हैं।

-शहद में नुकसानदेह बैक्टीरिया से लडऩे की क्षमता होती है। यह न केवल शरीर के टिश्यूज को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है, बल्कि नए टिश्यूज के विकास की गति को तेज कर देता है। इसलिए रोजाना नाश्ते से पहले एक चम्मच शहद का सेवन नियमित रूप से करें।

-ज्य़ादा घी-तेल और मिर्च-मसाले से युक्त चीजों का सेवन न करें।

-अगर पेप्टिक अल्सर की समस्या हो तो खट्टे फलों, अचार, डिब्बाबंद जैम, जेली और जूस जैसी चीजों का सेवन न करें। इनमें साइट्रिक एसिड की मात्रा अधिक होती है, जो अल्सर के जख्मों को बढा सकती है।

-रेड मीट, मैदे से बनी चीजों, चॉकलेट, मिठाई और जंक फूड से यथासंभव दूर रहने की कोशिश करें। इन चीजों से डायबिटीज होने का ख्ातरा रहता है। अगर अल्सर के साथ शुगर लेवल बढ जाए तो उसके जख्मों को भरने में बहुत ज्य़ादा समय लगता है।

-यह समस्या गंदगी में मौजूद एच. पायलोरी बैक्टीरिया की वजह से होती है। इसलिए घर में खाना बनाते समय सफाई का विशेष ध्यान रखें। खुले में बिकने वाली चीजों, कटे फलों और जूस आदि के सेवन से बचें।

-नियमित एक्सरसाइज करने से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है और इससे पेप्टिक अल्सर की समस्या नहीं होती।

सखी फीचर्स

इनपुट्स : डॉ. सौमित्र रावत, सर्जिकल गैस्ट्रोलॉजी एंड लिवर ट्रांस्प्लांट डिपार्टमेंट, सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली


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