बेदर्द न बन जाए घुटने का दर्द
आजकल ज्य़ादातर लोग घुटने के दर्द से परेशान रहते हैं, इसकी वजह से उनकी रोज़मर्रा की दिनचर्या भी प्रभावित होती है। अगर पहले से ही सजगता बरती जाए तो इस समस्या से बचाव संभव है। पहले ऐसा माना जाता था कि घुटने का दर्द बढ़ती उम्र की समस्या है, पर
आजकल ज्य़ादातर लोग घुटने के दर्द से परेशान रहते हैं, इसकी वजह से उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या भी प्रभावित होती है। अगर पहले से ही सजगता बरती जाए तो इस समस्या से बचाव संभव है।
पहले ऐसा माना जाता था कि घुटने का दर्द बढती उम्र की समस्या है, पर आजकल युवाओं में भी इसके लक्षण नजर आने लगे हैं। आधुनिक जीवनशैली की व्यस्तता और खानपान की गलत आदतों की वजह से आबादी का बडा हिस्सा इसकी गिरफ्त में आ रहा है।
क्या है समस्या
उम्र बढऩे के साथ घुटनों के बीच मौजूद कार्टिलेज घिस कर सूखने लगता है। इससे घुटने मोडऩे और चलने-फिरने में तकलीफ होती है। 60 साल की उम्र के बाद ज्य़ादातर लोगों को ऐसी परेशानी का सामना करना पडता है और इसे प्राइमरी ऑस्टियो ऑथ्राइटिस कहा जाता है। हालांकि, आजकल एक्सरसाइज की कमी, बढते वजन, खानपान में कैल्शियम और विटमिन डी-3 के अभाव की वजह से युवाओं को भी घुटने का दर्द परेशान करने लगा है। ऐसी समस्या को रुमेटाइड आथ्र्रांइटिस कहा जाता है। इसके अलावा मेनोपॉज के बाद स्त्रियों को भी ऐसी समस्या होती है, जिसे पोस्ट मेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है। दरअसल मेनोपॉज के बाद स्त्रियों के शरीर में फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजेन का सिक्रीशन कम हो जाता है। यह हॉर्मोन उनकी हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। इसकी मात्रा घटने की वजह से हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव होने लगता है। यह शरीर का अपना मेकैनिज्म है, जब ख्ाून में कैल्शियम की कमी होती है तो उसे पूरा करने के लिए हड्डियों से रक्त कैल्शियम खींचने लगता है, नतीजतन हड्डियां कमजोर पड जाती हैं। इसके अलावा कैल्शियम के मेटाबॉलिज्म में भी यह हॉर्मोन मददगार साबित होता है। जब शरीर में एस्ट्रोजेन की कमी हो जाती है तो खानपान में कैल्शियम की मात्रा बढाने पर भी उसका लाभ हड्डियों को नहीं मिल पाता। इसी वजह से मेनोपॉज के बाद स्त्रियों को घुटने के दर्द की समस्या परेशान करने लगती है। इसके अलावा यूट्रस रिमूवल सर्जरी की वजह से भी स्त्रियों के शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी हो जाती है, जो अंतत: घुटने के दर्द का कारण बन जाती है। शरीर काअधिक वजन भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार है। दरअसल अधिक वजन के दबाव से शॉक एब्जॉर्विंग आर्टिक्यूलर कार्टिलेज घिसने लगते हैं। कार्टिलेज प्रोटीन से बना एक कोमल पदार्थ है, जो घुटने की दोनों हड्डियों के बीच लचीली गद्दी का काम करता है। यह लगभग एक सेंटीमीटर मोटा होता है। इसके घिसने से हड्डियां आपस में टकराने लगती हैं, जिससे पैरों के जोड अंदर की ओर झुक जाते हैं, जिससे उनकी बनावट में टेढापन आ जाता है और पैरों में दर्द भी होता है। इसके लिए आनुवंशिक कारण भी जिम्मेदार हैं। उठने-बैठने और खानपान के गलत तरीके और सही फुटवेयर का चुनाव न करने की वजह से भी यह समस्या होती है।
दर्द का निदान
घुटनों का दर्द होने पर पहले मरीज को दवाओं, संतुलित आहार और फिजियोथेरेपी की मदद से आराम दिलाने की कोशिश की जाती है। कई तरह की एक्सरसाइज व एलाइनमेंट करेक्शन थेरेपी की मदद से घुटने का अलाइनमेंट भी ठीक किया जा सकता है। दर्द असहनीय न हो तो सबसे पहले घुटने की झिल्ली साइनोवियल मेंब्रेन (स्4-श1द्बड्डद्य रूद्गद्वड्ढह्म्ड्ड-द्ग) को हटाकर और आर्थोस्कोपी की मदद से जोड के प्रभावित हिस्से को साफ करने से ही मरीजों को काफी राहत मिल जाती है। यदि कार्टिलेज कम क्षतिग्रस्त है और घुटने के जोड का अलाइनमेंट बिगड गया हो तो हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी (॥द्बद्दद्ध ञ्जद्बड्ढद्बड्डद्य ह्रह्यह्लद्गशद्व4) की मदद से जोडों को सीधा किया जाता है। इस छोटे से ऑपरेशन से कुछ वर्षों तक दर्द से काफी राहत मिल जाती है। बाजार में कार्टिलेज को दोबारा बनाने में मदद करने के लिए कई आधुनिकतम दवाएं भी मौजूद हैं। इस तरह योग, व्यायाम, सही खानपान और दवाओं के मिले-जुले इस्तेमाल से घुटनों का उपचार किया जाता है। ख्ाास तरह के इंजेक्शन की मदद से घुटनों में कृत्रिम चिकनाई पहुंचाई जाती है।
अंतिम विकल्प है सर्जरी
जब दर्द इतना अधिक हो कि उसकी वजह से रोजमर्रा की दिनचर्या प्रभावित होने लगे और उपचार के ये सारे तरीके बेअसर साबित हो रहे हों तभी सर्जरी का विकल्प चुना जाता है। किसी भी मरीज के लिए सर्जरी का निर्णय लेने से पहले मरीज के सेहत की विस्तृत जांच की जाती है। इस दौरान तीन स्थितियों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है-1. कॉर्डियक स्टेटस यानी सर्जरी कराने वाले व्यक्ति के दिल की कार्यप्रणाली बिलकुल दुरुस्त होनी चाहिए।
2.न्यूरोलॉजिकल स्टेटस यानी मरीज के ब्रेन और नर्वस सिस्टम के बीच सही तालमेल और मांसपेशियों पर ब्रेन का सही नियंत्रण होना जरूरी है।
3.बोन स्ट्रेंथ यानी हड्डियों की क्वॉलिटी जांचने के बाद ही प्रत्यारोपण का निर्णय लिया जाता है। इसके अलावा सर्जरी कराने वाले व्यक्ति का शुगर लेवल भी नियंत्रित होना चाहिए, अन्यथा इसकी वजह से सर्जरी के बाद रिकवरी में देर हो सकती है।
वैसे तो आजकल 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्तियों की नी रिप्लेस्मेंट सर्जरी भी कामयाब होती है, लेकिन इसके लिए मरीज का पूर्णत: स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। आमतौर पर दोनों घुटनों के प्रत्यारोपण पर लगभग 3.5 लाख रुपये का ख्ार्च आता है और व्यक्ति को पांच दिनों तक अस्पताल में रखा जाता है। आजकल एडवांस पेन कंट्रोल तकनीक से सर्जरी की जाती है। इसमें व्यक्ति को दर्द का जरा भी एहसास नहीं होता। इस सर्जरी के दौरान ज्य़ादा ब्लड लॉस नहीं होता और जख्म भी बहुत जल्दी भर जाता है। सर्जरी के 48 घंटे बाद व्यक्ति को सहारा देकर ख्ाुद चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस दौरान उसे फिजियोथेरेपी भी दी जाती है।
सावधानी है जरूरी
घर लौटने के बाद मरीज को 15 दिनों तक िफजियोथेरेपी की जरूरत पडती है। इसके लिए किसी कुशल विशेषज्ञ का चुनाव करना चाहिए। अगर घर लौटने के बाद बुखार, उल्टी और लूज मोशंस जैसी समस्याएं हों तो बिना देर किए अपने डॉक्टर को बताना चाहिए। तीन सप्ताह बाद मरीज अकेले घर से बाहर निकलने के काबिल हो जाता है। सर्जरी के बाद मरीज को संतुलित खानपान का तरीका अपनाते हुए अपने बढते वजन को नियंत्रित रखना चाहिए क्योंकि शरीर का भार घुटनों पर पडऩे की वजह से व्यक्ति को दोबारा दर्द की समस्या हो सकती है। अगर डॉक्टर के सभी निर्देशों पर अमल किया जाए तो सर्जरी के बाद कोई परेशानी नहीं होती।
कैसे करें बचाव
अगर आप घुटने के दर्द से बचना चाहते हैं तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें :
-लंच या डिनर से पहले तीन-चार ग्लास पानी पीएं। फिर ढेर सारा सैलड खाने के बाद मेन कोर्स शुरू करें। पहले से ही आपका पेट भरा हुआ महसूस होगा और आप ओवरईटिंग से बचे रहेंगे। अपनी डाइट में फलों और सब्जियों को प्रमुखता से शामिल करें।
-एनिमल फैट और उससे बनी चीजें जैसे घी, मक्खन, चीज आदि से दूर रहने की कोशिश करें। इस फैट की वजह से घुटनों की झिल्ली में सूजन, जकडऩ व दर्द पैदा हो सकता है। बेहतर यही होगा कि कुकिंग के लिए किसी वेजटेबल ऑयल का इस्तेमाल किया जाए।
-अपने भोजन में अंकुरित अनाज और फायबरयुक्त चीजों, जैसे- दलिया, सूजी और ओट्स आदि को प्रमुखता से शामिल करें।
-हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें। अपने भोजन में सोयाबीन को प्रमुखता से शामिल करें। इसमें प्राकृतिक एस्ट्रोजन होता है। इससे जोडों की सूजन भी कम होती है।
-आटे में गेहंू के साथ सोयाबीन या चना मिलवाएं। इससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में फाइबर मिलता है, जो मांसपेशियों के लिए भी फायदेमंद होता है।
- ज्य़ादा घी-तेल का इस्तेमाल रोकने के लिए नॉनस्टिक बर्तन का इस्तेमाल करें।
-किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन न करें।
-मेवों का सेवन कम करें क्योंकि इनमें मौजूद अतिरिक्त कैलरी वजन बढा सकती है।
-चावल व आलू जैसी स्टार्चयुक्त चीजों का सेवन सीमित मात्रा में करें। तली-भुनी और मीठी चीजें न खाएं।
-आथ्र्रराइटिस के मरीजों को अनावश्यक रूप से खडे होने व चलने से बचना चाहिए। घुटनों को जहां तक संभव हो 90 डिग्री के एंगल से ज्य़ादा न मोंडें। पालथी मारकर या उकडूं बैठने से बचें। डेढ फुट से ऊंचे स्टूल पर बैठकर ही स्नान करें। खाना भी ऊंची कुर्सी पर बैठकर ही बनाएं। सीढियां चढते-उतरते समय साइड रेलिंग का सहारा लें। घुटने पर नी कैप पहनना दर्द से राहत दिलाता है। कुछ मरीजों को नी ब्रेस पहनने की सलाह भी दी जाती है। आरामदेह फुटवेयर का चुनाव करें। रोजाना सात-आठ घंटे की नींद जरूर लें। इससे कार्टिलेज की मरम्मत में मदद मिलती है।
विनीता
(मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एल. तोमर से बातचीत पर आधारित)