जंक से जंग जारी
महानगरीय बच्चों में ओबेसिटी एक बड़ी समस्या है। पिछले दिनों सीबीएसई और दिल्ली सरकार ने स्कूलों को कैंटीन्स में जंक फूड की बिक्री को नियंत्रित करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस लड़ाई में अभिभावकों को भी आगे आना होगा, तभी बचपन स्वस्थ रहेगा।
महानगरीय बच्चों में ओबेसिटी एक बडी समस्या है। पिछले दिनों सीबीएसई और दिल्ली सरकार ने स्कूलों को कैंटीन्स में जंक फूड की बिक्री को नियंत्रित करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस लडाई में अभिभावकों को भी आगे आना होगा, तभी बचपन स्वस्थ रहेगा।
पिछले कई वर्षों से स्कूलों की कैंटीन में बिकने वाले खाद्य पदार्थों को लेकर बहसें हो रही हैं। कई बार गाइडलाइंस जारी हुईं, सीबीएसई ने स्कूल्स को निर्देश जारी किए, अभिभावकों को कहा गया कि वे बच्चों के टिफिन में हेल्दी फूड को तरजीह दें। हाल-िफलहाल दिल्ली सरकार के एजुकेशन डिपार्टमेंट ने सभी स्कूलों के लिए सर्कुलर जारी किया है, ताकि वे छात्रों और अभिभावकों को जंक फूड के ख्ातरों के प्रति आगाह करें। सवाल यह है कि क्या बच्चे वास्तव में जंक खाना चाहते हैं या फिर उनके पास फूड चॉइस नहीं है?
बदल रहे हैं टीनएजर्स
बी.टेक. फस्र्ट ईयर के छात्र स्नेहिल कहते हैं, 'दो साल पहले तक पिज्ज्ाा, बर्गर, समोसा, चिप्स जैसी चीज्ों मेरी पहली पसंद थीं। सच कहूं तो स्कूल की कैंटीन में मिलता भी यही था। जंक खा-खाकर मेरा वज्ान भी बढ गया। मगर अब मैंने ख्ाुद को नियंत्रित कर लिया है। मैं बैडमिंटन खेलता हूं, जिम, एक्सरसाइज्ा और वॉक करता हूं। मुझे वेजटेबल और पनीर सैंडविच और रोल्स पसंद हैं। अगर कभी बाहर खाना पडे तो पनीर या एग रोल्स ही लेता हूं।
यूथ पर आधारित एक ब्लॉग के सर्वे को मानें तो इन दिनों 60 फीसदी टीनएजर्स जंक फूड के ख्ातरों से वािकफ हैं और हेल्दी फूड पसंद करने लगे हैं। केवल 16 फीसदी टीनएजर्स ने कहा कि उन्हें जंक फूड पसंद है और हफ्ते में 3-4 दिन वे जंक फूड खाते हैं।
पिछले 3-4 वर्षों में जिम में टीनएजर्स की संख्या में ख्ाासी वृद्धि हुई है। दिल्ली के पॉश इलाके में स्थित एक जिम के संचालक राघव मेहरा बताते हैं, 'आठ साल पहले मैंने जिम खोला था। तब मेरे क्लाइंट्स में 23-24 से 35-40 की उम्र के लोग ज्य़ादा थे। आज 15-18 साल के टीनएजर्स भी मेरे क्लाइंट्स हैं। बोर्ड एग्ज्ौम्स के बाद जिम में टीनएजर्स की संख्या बढ जाती है। वे कॉलेज जाने से पहले स्मार्ट दिखना चाहते हैं।
बदलें स्कूल कैंटीन
सीबीएसई ने अपने स्कूलों को निर्देश दिया था कि वे कैंटीन्स में कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, बर्गर्स, चिप्स, पि••ाा और कन्फेक्शनरी आइटम्स तुरंत बंद करें और हेल्दी स्नैक्स को बढावा दें। स्कूलों में कैंटीन मैनेजमेंट कमेटी का गठन हो, जो सुनिश्चित करे कि छात्रों को हानिकारक जंक फूड नहीं परोसे जाएंगे। यह भी देखें कि बच्चे लंच बॉक्स में क्या लेकर आ रहे हैं। स्कूल से 200 मीटर की दूरी तक जंक फूड की बिक्री न हो। कैंटीन में बने खाने की क्वॉलिटी, सामग्री और हाइजीन की जांच करें। हेल्दी खानपान के प्रचार-प्रसार के लिए सितंबर महीने में न्यूट्रिशन वीक मनाए जाने जैसी प्लैनिंग भी की गई।
ज्य़ादातर स्कूलों का मानना था कि उन्होंने जंक फूड की बिक्री पर रोक लगा दी है। वे अभिभावकों को भी सूची देते हैं कि बच्चों के टिफिन में कैसा खाना रखें। नर्सरी कक्षाओं में उन्हें रोज्ा का मेन्यू दिया जाता है। हाल ही में दिल्ली सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल सामने आई है। एजुकेशन डिपार्टमेंट ने यहां के हर स्कूल के लिए एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि वे स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को जंक फूड के ख्ातरों से सावधान करें। ड्रॉइंग कॉम्पिटीशन, स्लोगन राइटिंग, डिबेट के ज्ारिये भी जंक फूड के ख्ातरों के प्रति आगाह किया जाए। कैंटीन और टिफिंस में वेजटेबल सैंडविच, फल, पनीर, कटलेट्स, खांडवी, पोहा, लस्सी, जलजीरा और फैट-फ्री मिल्कशेक आदि को बढावा दिया जाए।
जंक फूड के नुकसान
अध्ययनों में पाया गया है कि दिल्ली और अन्य महानगरों के स्कूली बच्चों में मोटापा गंभीर समस्या बनता जा रहा है। राजधानी दिल्ली में तो बच्चों में फैटी लिवर भी बडी समस्या है। दिल्ली स्थित एम्स की एक स्टडी में लगभग 62 प्रतिशत बच्चों में फैटी लिवर की समस्या देखी गई। इससे कैंसर तक हो सकता है। कितना नुकसानदायक है जंक फूड, जानें-
फ्रेंच फ्राइज्ा या चिप्स में प्रोसेस्ड सॉल्ट की भारी मात्रा होती है, जिससे क्रेविंग बढती है। फैट और सोडियम का यह मेल शरीर में सोडियम-पोटैशियम बैलेंस को बिगाडता है। किडनी ब्लड में आने वाले सभी टॉक्ंिसस को फिल्टर करती है, ऐसे में जंक फूड किडनी फंक्शन को बाधित करता है।
फाइबर की कमी, शुगर व फैटयुक्त खाद्य पदार्थ कैंसर के ख्ातरे को बढाते हैं।
जंक फूड से
डायबिटीज्ा का खतरा बढ सकता है।
इनमें पोषक तत्वों व विटमिंस की मात्रा कम होती है, जिस कारण ये ऊर्जा नहीं प्रदान करते। इससे फटीग और कमज्ाोरी होती है।
ब्लड शुगर स्तर में उतार-चढाव हो सकता है। रिफाइंड शुगर से पैंक्रियाज्ा ज्य़ादा इंसुलिन बनाता है, इससे समस्याएं होती हैं।
एक स्टडी के अनुसार बुरे फैट्स ब्रेन के हेल्दी फैट्स को रिप्लेस कर देते हैं। इससे नई स्किल्स सीखने में भी परेशानी हो सकती है।
सैचुरेटेड या ट्रांस फैट्स बैड कोलेस्ट्रॉल
क ो बढाते हैं, जिससे हार्ट डि•ाी•ा का ख्ातरा होता है।
लिवर फंक्शन कमज्ाोर हो जाता है।
क्या खाना है ज्ारूरी
फूड और ड्रिंक की तीन कैटेगरी•ा हैं, जिन्हें पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है।
ग्रीन कैटेगरी फूड : बच्चों के लिए ज्ारूरी
आधा कप पकी ग्रीन-ऑरेंज सब्ज्िायां ब्रॉक्ली, पालक, गाजर, टमाटर, सीताफल, एक कप हरी पत्तेदार सब्ज्िायां, सैलेड, आधा कप स्वीट कॉर्न, आधा मीडियम साइज्ा का उबला आलू या स्टार्चयुक्त सब्ज्ाी, जैसे शकरकंद, आधा कप पकी बींस, एक मीडियम साइज्ा का फल जैसे सेब/केला/संतरा/नाशपाती।
अनाज में हाई फाइबर युक्त अनाज, जैसे- होलग्रेन ब्रेड, राइस, पास्ता, नूडल्स, ओट्स, एक स्लाइस्ड ब्रेड, आधा मीडियम रोल या फ्लैट ब्रेड, आधा कप कुक्ड राइस/पास्ता/ नूडल्स/कुटू, आधा कप पका दलिया, दो तिहाई कप व्हीट फ्लेक्स या चौथाई कप म्यूसली, 30 ग्राम नट्स जैसे अखरोट या बादाम, सीड्स जैसे फ्लैक्स या सनफ्लावर सीड्स, पीनट्स, सोया प्रोडक्ट में एक कप या 250 मिलीलीटर सोया मिल्क या टोफू-30 ग्राम, फैट फ्री दूध, दही और चीज्ा।
अंबर कैटेगरी
इस कैटेगरी के फूड में यूं तो सभी पोषक तत्व मिलते हैं, लेकिन सैचुरेटेड फैट, शुगर या सोडियम की बहुतायत होती है। जैसे, फैट मिल्क, सोया ड्रिंक्स प्लेन और फ्लेवर्ड दोनों, इनमें आर्टिफिशियल स्वीटनर हो सकते हैं, कॉफी या मिल्क ड्रिंक, फ्रूट और वेजटेबल जूस, शुगरी ब्रेकफस्ट सीरियल्स, कस्टर्ड, योगर्ट, चीज्ा, लो फैट आइसक्रीम, डेयरी डेज्ाट्र्स।
रेड कैटेगरी फूड्स
इनमें न्यूट्रिशनल वैल्यू बहुत कम होती है, साथ ही सैचुरेटेड फैट, शुगर और सॉल्ट बहुत होता है। जैसे- बिस्किट्स, केक्स, पेस्ट्री•ा, प्रोसेस्ड मीट, बर्गर, पिज्ज्ाा, फ्राइड फूड, पटैटो चिप्स, बटर, क्रीम, कोकोनट-पाम ऑयल, सॉफ्ट ड्रिंक्स, आइस्ड टी, स्पोट्र्स ड्रिंक्स, फ्लेवर्ड मिनरल वॉटर, एनर्जी ड्रिंक्स, स्वीटनर वॉटर्स, कॉफी, क्रीम फिल्ड बन और केक्स, कन्फेक्शनरी आइटम्स जैसे-चॉकलेट्स, चॉकलेट स्प्रेड्स, कैफीनयुक्त पदार्थ, डीप फ्राइड फूड्स आदि।
हेल्दी बाइट
यह सच है कि बचपन में जैसी आदतें विकसित की जाती हैं, वही आगे तक बच्चों के साथ रहती हैं। इसलिए बच्चा जैसे ही ब्रेस्ट फीडिंग छोडऩा शुरू करे, उसमें सही फूड हैबिट डालना शुरू कर दें। कैसा हो घर का खाना -
बच्चे को कई रंगों के खाद्य पदार्थों से परिचित कराएं।
एक ही तरह का खाना बार-बार न दें।
रोज्ा का मेन्यू तैयार करें।
घर और बाहर के खाने के बीच बच्चों को फर्क करना सिखाएं।
डाइनिंग टेबल पर अलग-अलग खाना रखें, ताकि बच्चे में खाने का चाव जागे।
बच्चों के साथ बैठ कर खाना खाएं।
भावी पीढी को स्वस्थ बनाना है तो उन्हें जंक से दूर रखना ज्ारूरी है।
इंदिरा राठौर