Move to Jagran APP

स्वस्थ जीवनशैली से संभव है बचाव

अति व्यस्तता की वजह से आजकल ज्य़ादातर स्त्रियां सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही है। इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यूटरिन फाइब्रॉयड भी एक ऐसी ही स्वास्थ्य समस्या है, जिससे बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत ज़रूरी है।

By Edited By: Published: Thu, 23 Jul 2015 04:27 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2015 04:27 PM (IST)

अति व्यस्तता की वजह से आजकल ज्य़ादातर स्त्रियां सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही है। इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पडता है। यूटरिन फाइब्रॉयड भी एक ऐसी ही स्वास्थ्य समस्या है, जिससे बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत जरूरी है।

loksabha election banner

घर-बाहर की दोहरी जिम्मेदारियां निभाते हुए स्त्रियां सभी कार्य व्यवस्थित ढंग से करना चाहती हैं, लेकिन जीवन की इस भाग-दौड में वे अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतने लगती हैं। उनकी यही आदत कई बीमारियों की वजह बन जाती है। यूटेरिन फाइब्रॉयड भी ऐसी ही समस्याओं में से एक है।

क्या है मजर्

जब यूट्रस की मांसपेशियों का असामान्य रूप से अतिरिक्त विकास होने लगता है तो उसे फाइब्रॉयड कहा जाता है। इसका आकार मटर के दाने से लेकर क्रिकेट की बॉल से भी बडा हो सकता है। जब यह गर्भाशय की मांसपेशियों के बाहरी हिस्से में होता है तो इसे सबसेरस कहा जाता है और अगर यह यूट्रस के भीतरी हिस्से में भी होता है तो ऐसे फाइब्रॉयड को सबम्यूकस कहा जाता है। अगर फाइब्रॉयड का आकार छोटा हो और उसकी वजह से मरीज को कोई तकलीफ न हो या उसे गर्भधारण करने की जरूरत न हो तो उसके लिए उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती। आनुवंशिकता, मोटापा, एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का बढऩा और लंबे समय तक संतान न होना आदि इसके प्रमुख कारण हैं।

लक्षण

- विवाह के कुछ वर्षों के बाद तक कंसीव न कर पाना

- पीरियड्स के दौरान दर्द के साथ ज्य़ादा ब्लीडिंग और मासिक चक्र का अनियमित होना, पेट के निचले हिस्से या कमर में दर्द और भारीपन महसूस होना

- अगर फाइब्रॉयड यूट्रस के अगले हिस्से में हो या उसका आकार ज्य़ादा बडा हो तो इससे यूरिन के ब्लैडर पर दबाव पडता है और बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होती है।

- इस बीमारी में पीरियड्स के दौरान हेवी ब्लीडिंग होने की वजह से कई बार मरीज में एनीमिया के भी लक्षण देखने को मिलते हैं।

बचाव

- अगर परिवार में इस बीमारी की केस हिस्ट्री रही हो तो हर छह माह के अंतराल पर एक बार पेल्विक अल्ट्रासाउंड जरूर कराएं।

- संतुलित खानपान अपनाएं।

- नियमित एक्सरसाइज करें और अपना वजन ज्य़ादा न बढऩे दें, क्योंकि मोटापे की वजह से शरीर में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का सिक्रीशन काफी बढ जाता है, जो कि इस बीमारी की प्रमुख वजह है।

उपचार

पहले ओपन सर्जरी द्वारा इस बीमारी का उपचार होता था, जिससे मरीज को पूर्णत: स्वस्थ होने में लगभग एक महीने का समय लग जाता था। अब लेप्रोस्कोपी की नई तकनीक के जरिये इस बीमारी का कारगर उपचार संभव है, जिसमें ऑपरेशन के अगले ही दिन स्त्री अपने घर वापस जा सकती है।

सर्जरी के बाद रखें ख्ायाल

- दवाओं के साइड इफेक्ट से कुछ दिनों तक एसिडिटी की समस्या रहती है। इसलिए अपने भोजन में घी-तेल और मिर्च-मसाले का सीमित मात्रा में इस्तेमाल करें।

- भारी वजन न उठाएं।

- फाइब्रॉयड निकाले जाने के बाद कम से कम छह सप्ताह तक शारीरिक संबंध से बचें।

- अगर आप सर्जरी के बाद कंसीव करना चाहती हैं तो इसके छह महीने बाद ही

प्रेग्नेंसी की शुरुआत होनी चाहिए। इसके लिए किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया जा सकता है।

सखी फीचर्स

(सर गंगाराम हॉस्पिटल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. माला श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.