हेल्थवॉच
अच्छी नींद बढ़ाती है याद्दाश्त अगर आप भरपूर नींद लेना पसंद करते हैं तो इसे लेकर अपने मन में कोई ग्लानि न रखें क्योंकि अब तो वैज्ञानिकों ने भी यह साबित कर दिया है कि
अच्छी नींद बढाती है याद्दाश्त
अगर आप भरपूर नींद लेना पसंद करते हैं तो इसे लेकर अपने मन में कोई ग्लानि न रखें क्योंकि अब तो वैज्ञानिकों ने भी यह साबित कर दिया है कि याद्दाश्त दुरुस्त रखने के लिए, पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। शोधकर्ताओं के अनुसार पर्याप्त नींद लेने से न केवल स्मरण-शक्ति मजबूत होती है, बल्कि सीखने की क्षमता भी बढती है। अध्ययन के नतीजों से यह संकेत मिला है कि अच्छी नींद के बाद विस्मृत सूचनाओं को याद करने की संभावना लगभग दोगुनी हो जाती है। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि यदि आप पहले की कोई बात याद नहीं कर पा रहे हैं तो थोडी देर के लिए आंखें बंद कर लें तो इससे बात जल्दी याद आ जाएगी। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन से यह साबित किया कि किसी परीक्षा के कुछ घंटे पहले थोडी नींद लेना विद्यार्थियों के लिए एक अच्छी रणनीति साबित हो सकती है। ब्रिटेन स्थित एक्सेटर यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर निकोलस के अनुसार नींद से याद्दाश्त में इजाफा का यह संकेत मिलता है कि कुछ स्मृतियां रात भर अच्छी नींद लेने के बाद सुबह तेज हो जाती हैं। यह अध्ययन इस धारणा की पुष्टि करता है कि सोते समय हमारा मस्तिष्क सक्रिय तौर पर स्मृति में मौजूद सूचनाओं को अहमियत के हिसाब से व्यवस्थित करता है। अगर आप अपनी याद्दाश्त दुरुस्त रखना चाहते हैं तो प्रतिदिन आठ घंटे की अच्छी नींद लें।
थ्री डी प्रिंटिंग से बनेगी ब्रेनसेल
वैज्ञानिकों ने थ्री डी प्रिंटिंग तकनीक को एक नया आयाम देते हुए तंत्रिकीय कोशिकाओं का निर्माण किया है। ये कोशिकाएं हूबहू दिमागी संरचना की तरह दिखती हैं। अब वैज्ञानिक बेंच-टॉप ब्रेन टिशू विकसित करने में जुटे हुए हैं, जो बिलकुल मानवीय मस्तिष्क की तरह काम करता है। इस प्रयोग की सफलता के बाद सिजोफ्रेनिया और अल्जाइमर्स जैसी मानसिक बीमारियों के इलाज में दवाओं के प्रभाव को लेकर शोध करना आसान हो जाएगा। ऑस्ट्रेलिया में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इलेक्ट्रोमटेरियल साइंस के शोधकर्ताओं ने इन कोशिकाओं को तैयार किया है। शोधकर्ताओं ने इस दिमागी संरचना को 86 अरब तंत्रिकीय कोशिकाओं से बनाया है। शोधकर्ता मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को समझने के लिए बेंच-टॉप ब्रेन टिशू बनाने के काफी करीब पहुंच चुके हैं। प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर गॉर्डन वालेंस के मुताबिक, बेंच टॉप ब्रेन बनाने की प्रक्रिया चल रही है। इसके ज्ारिये हम मानवीय मस्तिष्क पर पडऩे वाले दवाओं के प्रभाव का सही ढंग से जांच कर पाएंगे। शोधकर्ताओं ने बॉयो-इंक के ज्ारिये छह परतों वाला ब्रेन का ढांचा तैयार किया है। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के बायोमटेरियल जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
थकान दूर करेगा चुकंदर
अमेरिकन जर्नल ऑफ इंटरेक्टिव एंड कंपरेटिव िफजियोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार चुकंदर का सेवन थकान दूर करने में सहायक होता है। सेलेड या जूस के रूप में इसका नियमित सेवन हमें व्यायाम से होने वाली थकान से बचाता है। दरअसल यह रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढाने में सहायक होता है। इसीलिए इसके नियमित सेवन से थकान दूर हो जाती है।
कैंसर से बचाती है मिर्च
मिर्च को ज्य़ादातर लोग सेहत के लिए नुकसानदेह मानते हैं, लेकिन एक शोध में यह दावा किया गया है कि तीखा खाने से कैंसर, डायबिटीज और हृदय रोग का ख्ातरा काफी हद तक कम हो जाता है। चाइनीज अकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के अनुसार रोजाना की कुकिंग में हरी, लाल और काली मिर्च का इस्तेमाल करना चाहिए।
शोधकर्ताओं ने 30 से 70 साल के लोगों के एक बडे समूह के खानपान की आदतों का अध्ययन किया। इस दौरान सभी प्रतिभागियों से उनके स्वास्थ्य, शारीरिक गठन, तीखा खाने की मात्रा और खानपान की आदतों से संंबंधित सवालों के जवाब पूछे गए थे।
तरंगों से होगा हाई बीपी का उपचार
अल्ट्रासाउंड तरंगों से उक्त रक्तचाप का प्रभावी उपचार किया जा सकता है। आजकल ब्रिटेन के हृदय विशेषज्ञ मरीजों की किडनी पर अल्ट्रासाउंड तरंगों का प्रवाह करके गंभीर उच्च रक्तचाप का उपचार कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इस तकनीक से उन मरीजों को वैकल्पिक उपचार मुहैया कराया जा सकता है, जो पारंपरिक दवाएं खाकर इस स्थिति को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं। कई बार दवाएं खाने के बावजूद उच्च रक्तचाप नियंत्रित नहीं हो पाता। इस स्थिति में शरीर में दिल और धमनियों के ज्ारिये रक्त का प्रवाह काफी तेजी से होता है। अगर इसका समुचित नियंत्रण या उपचार नहीं किया जाए तो इससे दिल के दौरे, आघात या किडनी की बीमारी की आशंका बढ जाती है। उपचार की इस तकनीक के जरिये शरीर के बाहर से ही बिना किसी सर्जरी के किडनी की उन नव्र्स तक अल्ट्रासाउंड तरंगें पहुंचाई जाती हैं, जो हृदय तक जाती हैं। शरीर के भीतर पहुंचकर ये तरंगें ब्लडप्रेशर बढाने वाली नव्र्स की सक्रियता कम कर देती हैं। इसके लिए मरीज को कुछ घंटों तक हॉस्पिटल में रुकना पडता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्य़ादातर मरीजों पर इसके सकारात्मक परिणाम देखे जा रहे हैं, फिर भी इस दिशा में बडे पैमाने पर परीक्षण की तैयारी चल रही है।
मलेरिया के टीके को मिली मंजूरी
मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिससे एशियाई और अफ्रीकी देशों में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मौत हो जाती है। राहत की बात यह है कि इसे दूर करने वाले मॉस्क्यूरिक्स नामक टीके को यूरोपियन ड्रग रेगुलेटर नामक संस्था जल्द ही मंजूरी दे देगी। पूरे तीस साल के शोध के बाद वैज्ञानिकों ने यह टीका तैयार किया है। ब्रिटेन की दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथ ने इस टीके को तैयार किया है। कंपनी का दावा है कि अब अफ्रीका के लाखों बच्चों को इस जानलेवा बीमारी से बचाया जा सकता है।
बिना सर्जरी के दूर होगा कैटरेक्ट
उम्र बढऩे के साथ लोगों को कैटरेक्ट यानी मोतियाबिंद की समस्या परेशान करने लगती है। अब तक सर्जरी ही इस बीमारी का एकमात्र उपचार थी, लेकिन इस समस्या से पीडित लोगों के लिए एक अच्छी ख्ाबर यह है कि अब इसके उपचार के लिए उन्हें सर्जरी की आवश्यकता नहीं पडेगी। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक ऐसा आई ड्रॉप तैयार किया है, जिसकी मदद से बिना ऑपरेशन के ही मोतियाबिंद का इलाज संभव होगा। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने लैनेस्टेरॉल नामक रसायन की खोज की है। वैसे तो यह प्राकृतिक रूप से आंखों में मौजूद होता है और आंखों के लेंस पर प्रोटीन की परत जमने से रोकता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने कृत्रिम तरीके से लैनेस्टेरॉल का आई ड्रॉप तैयार किया है। शुरुआती तौर पर जानवरों पर किए गए इस परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक थे। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इंसानी आंखों पर भी यह आई ड्रॉप उसी तरीके से काम करेगा।
हॉर्मोन की कमी बढाती है मोटापा
यह सच है ओवर ईटिंग मोटापे की प्रमुख वजह है, लेकिन एक शोध के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जब व्यक्ति के नर्वस सिस्टम में ग्लूकागोन लाइक
पेप्टाइड-1 नामक हॉर्मोन की कमी होती है तो उसे ज्य़ादा खाने की इच्छा होती है। दरअसल यह हॉर्मोन भूख को नियंत्रित करने में सहायक होता है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह पाया कि चूहों के तंत्रिका तंत्र में जब ग्लूकागोन लाइक पेप्टाइड-1 हॉर्मोन की कमी होती है, तो उनके खाने की आदत में बदलाव आ जाता है और वे अधिक मात्रा में खाना शुरू कर देते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार चूहों के शरीर में जब पेप्टाइड-1 की कमी की गई तो उनमें अधिक फैट वाली चीजें खाने की इच्छा बढी और उन्होंने अधिक कैलोरी वाली चीजें खानी शुरू कर दीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह शोध ओबेसिटी के उपचार की दिशा में अहम साबित हो सकता है।