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हेल्थवॉच

चिंता चिता समान है, इस पुरानी कहावत को अब वैज्ञानिकों ने भी सही साबित कर दिया है। एक ताजा शोध के मुताबिक लगातार तनाव में रहने से सोचने की शक्ति क्षीण होने लगती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि बहुत से लोगों का मानना है कि तनाव के कारण उनकी सोचने

By Edited By: Published: Wed, 24 Jun 2015 03:32 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2015 03:32 PM (IST)
हेल्थवॉच

तनाव को कहें अलविदा

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चिंता चिता समान है, इस पुरानी कहावत को अब वैज्ञानिकों ने भी सही साबित कर दिया है। एक ताजा शोध के मुताबिक लगातार तनाव में रहने से सोचने की शक्ति क्षीण होने लगती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि बहुत से लोगों का मानना है कि तनाव के कारण उनकी सोचने की शक्ति कम हो जाती है, यह बात पूरी तरह सच है। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन मेडिकल स्कूल एंड डिप्रेशन सेंटर के शोधकर्ताओं ने 612 स्त्रियों पर यह अध्ययन किया। इनमें से दो तिहाई प्रतिभागियों ने अपने जीवन में जबर्दस्त तनाव का सामना किया था। शोध के दौरान ऐसे काम, जिनमें एकाग्रता की जरूरत थी, उनमें अधिक तनावग्रस्त स्त्रियों का प्रदर्शन बहुत ख्ाराब रहा। शोधकर्ताओं ने पाया कि तनावग्रस्त स्त्रियों के दिमाग में याद्दाश्त और तर्क-शक्ति से संबंधित एक ख्ाास हिस्से में सामान्य स्थिति की तुलना में बहुत ज्य़ादा उथल-पुथल मची हुई थी। इसलिए अगर जीवन में आगे बढऩा है तो तनाव को अलविदा कहना सीखें।

ज्य़ादा पैदल चलें हड्डियां होंगी मजबूत

घटती गतिशीलता की वजह से लोगों की हड्डियां लगातार कमजोर होती जा रही हैं। वॉश्ंिागटन स्थित यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता क्रिस्टोफर रफ ने यह शोध किया है, जिसमें कई जगहों से एकत्र किए गए फॉसिल्स के सैंपल्स के जरिये 33 हजार साल पहले यूरोप में रहने वाले सैकडों मनुष्यों की हड्डियों की जांच की गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक कमजोर हड्डियों का कारण शहरीकरण और खानपान के गलत तरीके को समझा जाता था, लेकिन अध्ययन में यह पाया गया कि इसकी असली वजह खेती के विकास व मानव जाति की कम होती गतिशीलता में छिपी है। जैसे ही खेती का विकास हुआ, मनुष्य की खानाबदोश जीवनशैली पूरी तरह बदल गई और उसने पहली बार अपना स्थायी निवास बनाया। इसके बाद वह अपना ज्यादातर वक्त बैठकर बिताने लगा। आज लोगों का वजन अपने पूर्वजों से काफी ज्यादा है, लेकिन उनकी हड्डियों का भार काफी हलका है। यही हलकी हड्डियां ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों का कारण बनती हैं। इसलिए शोधकर्ताओं ने कहा कि अपनी हड्डियां मजबूत बनाने के लिए जहां तक संभव हो व्यक्ति को पैदल चलने की कोशिश करनी चाहिए।

अब कोई भी बन सकता है यूनिवर्सल डोनर

चौंकिए मत। भारतीय मूल के एक ब्रिटिश शोधकर्ता समेत वैज्ञानिकों की एक टीम ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को यूनिवर्सल ब्लड डोनर बनाया जा सकता है। केनेडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया और सेंटर फॉर ब्लड रिसर्च के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया एंजाइम विकसित किया है, जो ब्लड ग्रुप टाइप ए और बी से एंटीजेंस निकाल देता है। इससे यह ब्लड ग्रुप 'ओ जैसा बन जाता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि इस ग्रुप का ब्लड हर ग्रुप के व्यक्ति को दिया जा सकता है। शोधकर्ता जयचंद्रन और डेविड वान के मुताबिक इस कामयाबी के बाद घायल या गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए डोनर ढूंढने की परेशानी दूर हो जाएगी।

कोलोन कैंसर को बढऩे से रोकता है अखरोट

एक ताजा शोध के अनुसार अखरोट का रोजाना सेवन कोलोन कैंसर फैलने की रफ्तार को कम करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अखरोट के सेवन से कुछ ऐसे जेनेटिक बदलाव होते हैं, जो कैंसर के ट्यूमर को बढऩे से रोकते हैं। शोध के दौरान इस बात का परीक्षण किया गया कि क्या अखरोट का सेवन हमारी जीन माइक्रो-आरएनए में बदलाव लाने में सक्षम है। अमेरिका स्थित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ता क्रिस्टोस मेंटजोरोंस का कहना है कि अखरोट के सेवन से कोलोन कैंसर ऊतकों से संबद्ध माइक्रो-आरनए में व्यापक बदलाव होता है। साथ ही यह ट्यूमर के आसपास सुरक्षित फैटी एसिड भी एकत्र करता है। अखरोट में पाया जाने वाला अल्फा लिनो लेनिक एसिड शरीर की कई महत्वपूर्ण क्रियाओं में सहायक होता है। अखरोट में कई ऐसे तत्व हैं, जो कैंसर युक्त ट्यूमर के विस्तार को रोकते हैं।

थर्मामीटर बताएगा दिल का हाल

दिल के मरीजों के लिए एक राहत भरी खबर यह है कि अब दक्षिण कोरिया की पोहंग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता संगमिन जेआन और उनके साथियों ने ऐसा उपकरण विकसित किया है, जो थर्मामीटर की तरह काम करते हुए यह बता सकता है कि दिल की बीमारी का खतरा कितना है। यह उपकरण दिल के दौरे की आशंका को नापता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि विकासशील देशों में स्थित दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह तकनीक काफी कारगर साबित होगी। मौजूदा समय में इस बीमारी की जांच काफी जटिल है। यह बेहद सामान्य सा थर्मामीटर जैसा उपकरण है, जिससे डॉक्टर मरीजों के दिल का पूरा हाल जान सकते हैं।

संभव हो सकता है कृत्रिम ब्रेन का विकास

बायोनिक हाथ-पैरों की तरह अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी सेल बनाने का दावा किया है, जो मानव मस्तिष्क की तरह काम करने में सक्षम है। यह मेमोरी सेल मस्तिष्क की तरह ही एक साथ कई प्रक्रियाओं को अंजाम देने और अलग-अलग तरह की सूचनाओं का संग्रह करने में सक्षम है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित आरएमआइटी यूनिवर्सिटी के माइक्रोनैनो रिसर्च फैकल्टी में हुए इस शोध में वैज्ञानिक मानव मस्तिष्क का इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरूप बनाने के बेहद करीब पहुंच गए है। यह सफलता बायोनिक मस्तिष्क बनाने की दिशा में बडी उपलब्धि है। बायोनिक मस्तिष्क विकसित कर सकने के बाद वैज्ञानिक अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के कारण जानकर सफल इलाज कर सकने में सक्षम हो सकते हैं।

पाचन शक्ति कमजोर बनाता है जंक फूड

आज की युवा पीढी को नूडल्स-पास्ता और पिज्ज़ा-बर्गर जैसे जंक फूड का स्वाद ख्ाूब भाता है, पर ऐसी चीजें उनकी सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होती हैं। ब्रिटेन में हुए नए अध्ययन के बाद यह तथ्य सामने आया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक फास्ट, जंक या अन्य प्रोसेस्ड फूड में मौजूद प्रिजर्वेटिव्स में कई ऐसे नुकसानदेह तत्व पाए जाते हैं जो कुछ ही मिनटों में आंतों के गुड बैक्टीरिया की सैकडों प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं। गुड बैक्टीरिया में कुछ ऐसी प्रजातियां होती हैं, जो पाचन शक्ति को दुरुस्त रखने के साथ बढते वजन को नियंत्रित करने में मददगार होती हैं। ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर टिम स्पेक्टर ने अपनी किताब 'द डाइट मिथ में इस अध्ययन का उल्लेख किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि 2030 तक यूरोप के ज्य़ादातर लोग मोटापे के शिकार हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में मोटापे से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि जहां तक संभव हो जंक फूड से दूर रहा जाए।

मोबाइल की रिंगटोन से डर जाता है गर्भस्थ शिशु

अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो अपने मोबाइल की रिंग टोन का वॉल्यूम थोडा कम रखें क्योंकि इसकी तेज आवाज आपके गर्भ में पल रही नन्ही सी जान को डरा कर उसकी नींद में खलल पैदा कर सकती है। न्यूयॉर्क स्थितविकॉफ हाइट्स मेडिकल सेंटर के निदेशक प्रो.बोरिस प्रेट्रिकोवास्की ने हाल ही में किए गए शोध के नतीजों के आधार पर प्रेग्नेंट स्त्रियों को यह चेतावनी दी है है कि प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भस्थ शिशु के आराम और सेहत का ख्ायाल रखते हुए, स्त्रियों को अपनी मोबाइल की रिंगटोन को थोडा धीमा ही रखना चाहिए।


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