Move to Jagran APP

हेल्थ वॉच

डेंगू की समस्या से आज दुनिया के ज्यादातर देश जूझ रहे हैं, पर अब वैज्ञानिकों को इससे बचाव के आसार दिखने लगे हैं। मच्छरों के काटने से डेंगू का वायरस हमारे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र में छिप जाता है। इसलिए यह बीमारी जल्दी पकड़ में नहीं आती, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है।

By Edited By: Published: Thu, 03 Oct 2013 11:21 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2013 11:21 AM (IST)

जल्द ही होगा डेंगू  का सफाया

loksabha election banner

डेंगू की समस्या से आज दुनिया के ज्यादातर  देश जूझ रहे हैं, पर अब वैज्ञानिकों को इससे बचाव के आसार दिखने लगे हैं। मच्छरों के काटने से डेंगू का वायरस हमारे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र में छिप जाता है। इसलिए यह बीमारी जल्दी पकड में नहीं आती, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। उन्होंने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिससे डेंगू  के वायरस को आसानी से पहचान कर उसे कमजोर बनाना संभव होगा। इससे लोगों को डेंगू की समस्या से जल्दी ही राहत मिल जाएगी।

सिंगापुर स्थित नोवार्टिस  इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल डिजीज और बीजिंग के इंस्टीटयूट  ऑफ माइक्रोबायोलॉजी  के शोधकर्ताओं ने मिलकर इस अध्ययन को अंजाम दिया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि डेंगू  के वायरस  चार तरह के होते हैं। हर किस्म के वायरस  पर एक जैसा टीका असरदार नहीं होता। नई तकनीक मदद से अलग-अलग तरह के वायरस का पता लगाना आसान हो जाएगा। इसकी मदद से एक ऐसा असरदार टीका विकसित किया जा सकेगा, जो हर वायरस  पर समान रूप से प्रभावी हो। अब तक डेंगू के वायरस की पहचान बहुत मुश्किल थी, पर इस नई तकनीक का इस्तेमाल करके डेंगू  के वायरस  को प्रतिरोधी तंत्र में छिपने से रोका जा सकता है। ये वायरस  एमटेज  नामक एंजाइम  का इस्तेमाल करके छिपने में कामयाब हो जाते हैं। इस तकनीक की मदद से एमटेज  इंजाइम  को निष्क्रिय किया जा सकेगा, जिससे डेंगू  के वायरस  खुद  को छिपा नहीं सकेंगे और उनका खात्मा करने में आसानी होगी। अंत में, मच्छरों से त्रस्त लोगों के लिए एक और अच्छी खबर  यह है कि कैलिफोर्निया  यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नॉन टॉक्सिक  पैच तैयार किया है, जो लोगों को मच्छरों से बचाएगा। दरअसल इस पैच में मौजूद  तत्व कार्बन डाइऑक्साइड  की मदद से मच्छरों पर कुछ ऐसा प्रभाव छोडते हैं, जिससे पैच लगाने वाला व्यक्ति उनकी नजरों में अदृश्य हो जाता है और मच्छर उसे काट नहीं पाते। यह पैच लगभग 48  घंटे तक प्रभावी होता है। अब जल्द ही इसे बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है।

दिल की हिफाजत के लिए पैदल चलें

आपने बुजुर्गो को अकसर यह कहते सुना होगा कि पैदल चलना सेहत के लिए अच्छा है। अब तो विज्ञान ने भी इसे सच साबित कर दिया है। लंदन के इंपीरियल कॉलेज और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक पैदल चलने से हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप की आशंका काफी कम हो जाती है। शोधकर्ताओं के अनुसार भारतीय जीवनशैली में आने वाले बदलाव की वजह से अगले दो दशकों में यहां हृदय रोग के बढने की आशंका है। इस नतीजे पर पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने लगभग चार हजार प्रतिभागियों के आंकडों का विश्लेषण किया। इस अध्ययन में भारत के चार प्रमुख शहरों, लखनऊ, नागपुर, हैदराबाद और बंगलौर  को शामिल किया गया था।

स्टेम सेल से लौटेगी दृष्टि

आंखों की रोशनी खो चुके लोगों के लिए एक खुश खबरी  यह है कि अब ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने दृष्टिहीनता दूर करने के लिए स्टेम सेल से लैब में पहली बार कृत्रिम रेटिना  तैयार किया है। इस प्रयोग में रेटिना  से प्रकाश संवेदी कोशिकाओं (लाइट सेंसिटिव  सेल्स) को निकालकर दृष्टिहीन चूहे की आंखों में प्रत्यारोपित  किया गया था। इन कोशिकाओं द्वारा आंखों और मस्तिष्क के बीच सफलतापूर्वक समन्वय बनाने से वैज्ञानिकों में यह उम्मीद जगी है कि अगले पांच वर्षो में इस विधि से इंसानों का भी इलाज संभव होगा। यूनिवर्सिटी कॉलेज  ऑफ लंदन के प्रोफेसर रॉबिन  अली के अनुसार इसके लिए सबसे पहले स्टेम  सेल्स को विटमिन और प्रोटीन से भरी डिश में रखा जाएगा और चार महीने के बाद ये कोशिकाएं रेटिना  के रूप में विकसित होगी। इसके बाद प्रयोगशाला में विकसित रेटिना  से रॉड कोशिकाएं निकाल ली जाएंगी। यही कोशिकाएं प्रकाश को मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। इसके बाद हजारों की तादाद में प्रकाश संवेदी रॉड  कोशिकाएं इंजेक्शन के जरिये मरीज की आंखों के पिछले हिस्से में प्रत्यारोपित  की जाएंगी। फिर ये कोशिकाएं ऑप्टिक  नर्व  के साथ जुडकर काम करने लगेंगी और कुछ ही सप्ताह के बाद मरीज की दृष्टि लौट आएगी। इस खोज की सफलता से उन बुजुर्गो को काफी फायदा होगा, जो एज रिलेटेड मैस्कुलर डिजेनरेशन की समस्या से ग्रस्त होते हैं। इससे रेटिना के फोटो सेंसिटिव सेल्स में विकार आने लगता है।

डायबिटीज से बचाव के लिए अपनाएं सी फूड

अगर आपको सी फूड पसंद है तो खुश हो जाएं क्योंकि इसे अपना कर आप टाइप-2 डायबिटीज  से दूर रह सकते हैं। एथेंस  यूनिवर्सिटी में किए गए एक नए अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि ऐसे भोजन में कार्बोहाइड्रेट  और कोलेस्ट्रॉल  की मात्रा कम होती है, जो व्यक्ति को टाइप-2 डायबिटीज से बचाती है। वहां के शोधकर्ताओं ने करीब 23,000  लोगों पर 11 वर्षो तक अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। प्रतिभागियों से एक प्रश्नावली भरवाई गई, जिसमें उन्हें अपने खानपान से जुडी आदतों के बारे में बताना था। जिन लोगों ने नियमित रूप से सी फूड के सेवन की बात कही, उनके शरीर में अतिरिक्त चर्बी नहीं पाई गई और इससे उनमें टाइप-2 डायबिटीज का खतरा  कम हो गया।

बैक्टीरिया भी निभाते हैं दोस्ती

बैक्टीरिया से बचने के लिए हम एंटीबायोटिक और सैनिटाइजर  का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इनमें से कुछ सेहत के लिए फायदेमंद भी होते हैं। सन 2000  की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने गट बैक्टीरिया को ढूंढा था, जो हमें नुकसान पहुंचाने के बजाय हानिकारक बैक्टीरिया पैथोजेन  से हमारी रक्षा करते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि हमारी आंतों में बडी तादाद में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो पाचन तंत्र व इम्यून सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं। इससे हमें बीमारियों से लडने की ताकत मिलती है। साथ ही ये शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी भी पूरी करते हैं। गट बैक्टीरिया कई महत्वपूर्ण विटमिंस का निर्माण करते हैं। इसमें विटमिन के और विटमिन बी-12 भी शामिल हैं। बैक्टीरिया शरीर में कई अन्य पोषक तत्व बनाते हैं, जिनके बारे में अभी वैज्ञानिकों की खोज जारी है। अकसर सही जानकारी के अभाव में लोग एंटीबायोटिक व सैनिटाइजर  का अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं, जिससे फायदेमंद बैक्टीरिया भी नष्ट  हो जाते हैं।

जागरण सखी

सखी प्रतिनिधि


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.