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हेल्थवॉच

कई बार चोट लगने पर टांके लगवाने पड़ते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिससे चोट लगने पर अब टांके लगवाने की ज़रूरत नहीं होगी। उपकरण के ज़रिये लेज़र का इस्तेमाल कर चोट को 15 मिनट में ठीक किया जा सकेगा।

By Edited By: Published: Fri, 01 Apr 2016 04:24 PM (IST)Updated: Fri, 01 Apr 2016 04:24 PM (IST)
पंद्रह मिनट में ठीक होगी चोट कई बार चोट लगने पर टांके लगवाने पडते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिससे चोट लगने पर अब टांके लगवाने की जरूरत नहीं होगी। उपकरण के जरिये लेजर का इस्तेमाल कर चोट को 15 मिनट में ठीक किया जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने लेजर किरणों के इस्तेमाल से ऊतकों को पास लाने की प्रक्रिया विकसित की है। उन्होंने एक ऐसा चिपचिपा चिकित्सीय पदार्थ या तंतु बनाया है, जो हरी लेजर लाइट के संपर्क में आने पर शरीर में कोलेगन अणुओं को सक्रिय कर देता है। कोलेगन प्रोटीन सक्रिय होकर चोट को भरने में मदद करते हैं। कोलेगन त्वचा, मांसपेशियों और हड्डियों को जोडऩे वाले ऊतकों को मज्ाबूत बनाता है। जब लेजर से कोलेगन अणुओं को सक्रिय किया जाता है, तो चोट लगने से त्वचा या मांसपेशी में आया रिक्त स्थान भर जाता है, जिससे चोट ठीक हो जाती है। साथ ही चोट के निशान भी मिट जाते हैं। इस तकनीक को नैनो स्टरिंग नाम दिया गया है। लेजर किरणें केवल त्वचा के बाहरी हिस्से को ही भेदती हैं, इससे ऊतकों पर इसका बहुत कम प्रभाव पडता है। तार या तंतु स्वयं शरीर द्वारा अवशोषित हो जाते हैं। तंतु त्वचा में 5 मिमी. तक जाते हैं, पर यह लेजर किरणों को त्वचा में लगभग एक इंच अंदर तक भेजने में सक्षम हैं।

एड्स वायरस से लडेगा केला

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केले में पाए जाने वाले तत्व से बनी दवा एड्स जैसी भयानक बीमारी से मुकाबला कर सकती है। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह दावा किया है। उनके अनुसार यह दवा एड्स के वायरस के अलावा हेपेटाइटिस सी और इन्फ्लूएंजा जैसे जानलेवा वायरस से लडऩे में भी सक्षम है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तत्व के जरिये और दवाएं बनाई जा सकती हैं। दवाओं को बनाने में हमारी कोशिकाओं के बीच संवाद स्थापित करने वाले 'शुगरकोड का प्रयोग करना होता है। वायरस इसे प्रभावित करते हैं, जिससे कोशिकाओं के बीच बीमारी का संदेश जाता है। नया शोध केले में पाए जाने वाले प्रोटीन 'बनाना लेक्टिन या 'बनलेक पर केंद्रित था। वैज्ञानिकों के अनुसार यह प्रोटीन वायरस और कोशिकाओं के बाहर पाए जाने वाले 'शुगरकोड को पढ सकता है।

हृदय रोगों से भी बचाएगी डायबिटीज की दवा

डायबिटीज में इस्तेमाल होने वाली दवा हृदय रोगों से बचाने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। इतना ही नहीं, एक नए अध्ययन के अनुसार, यह दवा हृदयघात के बाद सुधार में भी लाभदायक होती है।

शोध के अनुसार, मेटफोर्मिन दवा को टाइप-2 डायबिटीज के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। यह दवा रक्त वाहनियों की प्रक्रिया को बढाती है, जिससे हृदयघात के बाद सुधार प्रक्रिया तेज्ा होती है। यह अध्ययन कार्डियो वैस्कुलर डाइबिटोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

लोबिया का वायरस कैंसर से लडऩे में मददगार

एक परीक्षण में पाया गया है कि लोबिया के वायरस से कैंसर की कोशिकाओं से लडऩे में मदद तो मिलती ही है, साथ ही यह कैंसर के ख्िालाफ प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। लोबिया के पत्तों में लगने वाला वायरस कैंसर जैसी ख्ातरनाक बीमारी से लडऩे में भी कारगर हैं।

दरअसल, लोबिया के वायरस के नैनो पार्टिकल्स (सूक्ष्म कण) रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय और दुरुस्त करने का काम करते हैं। 'नेचर नैनो टेक्नोलॉजी पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक'वेस्टर्न रिजर्व विश्वविद्यालय और 'डार्टमाउथ विश्वविद्यालय ने सैकडों वर्ष पुराने इन साइटू टीकाकरण तकनीक से चूहे पर इसका परीक्षण करके पाया कि इससे कैंसर की कोशिकाओं से लडऩे में मदद मिलती है, साथ ही यह कैंसर के ख्िालाफ प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। अध्ययन के दौरान चूहे में श्वास के जरिये फेफडों के ट्यूमर में और अंडाशय, पेट या स्तन के ट्यूमर में इंजेक्शन के •ारिये इस वायरस की बाहरी परत को डाला गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसा करने से कैंसर की कोशिकाएं प्रभावित अंग से आगे नहीं बढतीं। इस शोध में सबसे अहम जानकारी यह मिली कि इसका कोई गलत प्रभाव नहीं पडता है जो कि आमतौर पर कैंसर के पारंपरिक उपचारों और इम्यून थेरेपी के तरीकेसे पडता है। अगर इस अध्ययन के दावे को माना जाए तो कैंसर के उपचार में एक नया असरदार तरीका मिल सकता है।

पसीने से तबीयत के बारे में बताएंगे सेंसर

अभी तबीयत ख्ाराब होने का अंदाज्ाा तब लगता है, जब हम बीमार होते हैं। फिर डॉक्टर कई तरह की जांच कर बताते हैं कि बीमारी क्या है। अब वैज्ञानिकों ने कलाई में लगाने लायक ऐसे सेंसर बनाए हैं, जो हमारे शरीर के पसीने से ही बीमारी के बारे में जानकारी दे देंगे। वैसे घडी की तरह पहने जाने वाले रिस्ट बैंड की तरह के कई गैजेट्स बाज्ाार में उपलब्ध हैं, जो दिल की धडकनों के बारे में सूचना देते हैं।

कई धावक इसका उपयोग करते हैं। वैसे, आपने मॉर्निंग वॉक करते हुए कुछ लोगों को भी इस तरह के बैंड पहने हुए देखा होगा। इससे पता चलता है कि आप कितने कदम या कितने किलोमीटर चले। लेकिन वैज्ञानिक ऐसी चीज्ा पहली बार बनाने में सफल हुए हैं, जिससे अधिकतर बीमारियों के बारे में सतर्क किया जा सके। बैंड में लगे माइक्रोचिप के ज्ारिये आपके शरीर में होने वाली हलचलों पर नज्ार रखी जाएगी।

उम्र के साथ बढेगी फूड एलर्जी से लडऩे की क्षमता

फूड एलर्जी आम बीमारी की शक्ल लेती जा रही है। ख्ाासकर बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। हालिया शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसके मुताबिकमानव शरीर उम्र के साथ फूड एलर्जी से लडऩे में सक्षम हो जाता है। ऐसा संबंधित खाद्य पदार्थों के प्रति इम्यून सिस्टम के अनुकूल होने के कारण होता है। अध्ययन में पहली बार यह तथ्य सामने आया है कि सामान्य खाद्य पदार्थ विशेष एलर्जी को ख्ात्म करने वाली कोशिकाओं को मज्ाबूत करती है। दरअसल, इम्यून सिस्टम हमें उन चीजों से बचाता है, जिसका निर्माण हमारे शरीर में नहीं होता है, जैसे वायरस और अन्य कीटाणु। शुरुआत में पोषक तत्वों को भी इम्यून सिस्टम इसी आधार पर स्वीकार नहीं करता है लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव आता है।

एसपर्ट की मानें

मुझे दिन में सोने की आदत है। घर का काम ख्ात्म करके दिन में अकसर कईं घंटे सो जाती हूं लेकिन कुछ दिन पहले मुझे किसी ने बताया कि दिन में सोने से वज्ान बढता है। इसमें कितनी सच्चाई है और सोने की सही टाइमिंग क्या होनी चाहिए? आर्टिमिस हॉस्पिटल के रेस्परेटरी एंड स्लीप मेडिसन के हेड डॉ. हिमांशु गर्ग दे रहे हैं इस सवाल का जवाब।

नींद हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज्ारूरी है लेकिन सोने का भी सही समय होता है। दिन में सोना कोई खराब बात नहीं है लेकिन यह नींद 20 से 40 मिनट की ही होनी चाहिए। दिन में पावर नैप आपके मेटाबॉलिज्म रेट को बढाता है और शरीर को काम करने के लिए नई स्फूर्ति प्रदान करता है। ध्यान रखना •ारूरी है कि इससे ज्य़ादा सोने से स्लीपिंग डिसॉर्डर हो सकता है। दिन में ज्य़ादा सोएंगे तो रात में देर से नींद आएगी। देर से नींद आने के कारण दिनचर्या स्लो हो जाएगी, जिसका असर खाने और सेहत पर भी पडेगा। बच्चों और बडों के सोने के अपने-अपने घंटे होते हैं। एक वयस्क को 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए। ये 8 घंटे दिन और रात को मिलाकर बनते हैं। ये नहीं कि रात में 8 घंटे सो जाएं और दिन में भी 4 घंटे सो जाएं। दिन में पावर नैप से एनर्जी तो मिलती है लेकिन इसके बढते घंटे शरीर के लिए नए खतरे भी पैदा कर सकते हैं। जहां तक बात वज्ान बढऩे की है, तो दिन में सोने से वज्ान बढता हो, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, न इसका कोई साइंटिफिक कारण बताया जा सकता है। व•ान बढऩे के लिए अलग-अलग कारण हो सकते हैं।


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