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उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ा संगीता घोष

सभी की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते हैं। कभी-कभी स्थितियों पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाता। ऐसा लगता है कि सब कुछ हाथ से निकलता जा रहा है। ऐसे मुश्किल दौर में आत्मविश्वास ही हमें चुनौतियों का सामना करने की ता़कत देता है। टीवी कलाकार संगीता घोष अपने कुछ ऐसे ही अनुभव बांट रही हैं सखी के साथ।

By Edited By: Published: Tue, 03 Dec 2013 01:01 PM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2013 01:01 PM (IST)
उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ा संगीता घोष

जब कभी मैं अपने जीवन के बारे में सोचती हूं तो ऐसा लगता है कि वक्त ने मुझे हर हाल में खुश रहना सिखा दिया। मेरा मानना है कि स्त्रियां भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत होती हैं। इसीलिए वे अपने परिवार और रिश्तों को अच्छी तरह संभाल पाती हैं। मैंने अपनी मां और सास को देखा है। दोनों बडी मुस्तैदी से अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभाती हैं। सारी समस्याओं के समाधान होते हैं, उनके पास।

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हार नहीं मानती मैं

उम्र के हर दौर में इंसान को अलग-अलग तरह की परेशानियों का सामना करना पडता है। जहां तक मेरी जिंदगी का सवाल है तो मैंने तनाव को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। मुझे पता है कि जो प्रॉब्लम आज है, शायद कुछ दिनों तक मुझे उससे जूझना पडेगा, पर मैं उससे बाहर निकलूंगी। इंसान की असली परीक्षा मुश्किलों में ही होती है। मैं पूरी हिम्मत के साथ ऐसे हालात का मुकाबला करने की कोशिश करती हूं।

परिवार के लिए ब्रेक लिया

मैं अपने जीवन के उस मुश्किल दौर को आज भी नहीं भूल पाती, जब मेरे पिता गंभीर रूप से बीमार थे। हार्ट अटैक के बाद किसी तरह उनकी जान तो बच गई, पर वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गए। डिमेंशिया की वजह से उनकी याद्दाश्त और आवाज भी चली गई। वह बेहद जिंदादिल और सक्रिय इंसान थे। उन्हें ऐसे हालात में देखना मेरे लिए बेहद दुखद था। किसी अपने के लिए चाहकर भी कुछ न कर पाने की बेबसी कितनी दुखद होती है, इसका एहसास मुझे उसी वक्त हुआ। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ। पिताजी का स्वर्गवास हो गया। वह मेरी जिंदगी का सबसे कठिन दौर था। उस घटना से मम्मी को गहरा सदमा लगा और उन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी मेरी थी। इसी कारण मैंने कुछ वर्षो के लिए करियर से ब्रेक लिया। उस समय परिवार को मेरी सबसे अधिक जरूरत थी। पिता के जाने के बाद भाई के साथ मिलकर बेटे की तरह मैंने अपने परिवार की सारी जिम्मेदारियां निभाई। हालात ठीक हो जाने के बाद दोबारा काम शुरू किया। मेरा मानना है कि इंसान के लिए पैसा और करियर ही सब कुछ नहीं होता। हमें परिवार और रिश्तों की अहमियत समझते हुए अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

मुश्किलों ने जीना सिखाया

मैं पूरी मजबूती से उस दौर से बाहर निकल आई। सच कहा जाए तो मुश्किलें ही हमें मजबूती और हिम्मत देती हैं। जिस तरह आग में तपने के बाद ही खरा सोना तैयार होता है, उसी तरह मुश्किलों से जूझने के बाद ही इंसान सही मायने में विजेता बनता है। यह सच है कि जीवन का संघर्ष इतना आसान नहीं होता। जरूरी नहीं कि हर प्रयास में हमें कामयाबी ही हासिल हो, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

प्रस्तुति : इला श्रीवास्तव


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