Move to Jagran APP

धावक के डकैत बनने की कहानी पान सिंह तोमर

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए मौजूदा साल बहुत अच्छा रहा है। कई अच्छी फिल्में बनीं। पान सिंह तोमर इसी श्रेणी की फिल्म है। इसका बजट 8 करोड़ का था, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसने 38 करोड़ से अधिक की कमाई की। तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में बनी इस फिल्म की स्क्रिप्ट तिग्मांशु और संजय चौहान ने लिखी। इरफान की ज़्ाबरदस्त ऐक्टिंग ने फिल्म में जान डाल दी। फिल्म के बनने की प्रक्रिया क्या रही, जानते हैं अजय ब्रह्मात्मज से।

By Edited By: Published: Thu, 01 Nov 2012 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2012 02:49 PM (IST)

हाल ही में संपन्न हुए जागरण फिल्म फेस्टिवल में तिग्मांश धूलिया निर्देशित पान सिंह तोमर को अनेक श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया। निर्देशक तिग्मांशु धूलिया, अभिनेता इरफान ख्ान और लेखक संजय चौहान ने फिल्म निर्माण के अनुभव शेयर किए।

loksabha election banner

लंबे इंतज्ार के बाद आई फिल्म

ऐसे निर्देशक की मनोदशा का अनुमान लगाएं, जिसकी फिल्म पूरी होने के बाद लंबा इंतज्ार कराए। पान सिंह तोमर के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया के बावजूद निर्माता आश्वस्त नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि इसे रिलीज करना खर्च और नुकसान को बढाना होगा। फिल्म के प्रचार और वितरण पर काफी खर्च होता है। निर्माता ने फिल्म को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। निर्देशक और अभिनेता की गुहार को अनसुना करते रहे। लगभग दो साल फिल्म डिब्बा-बंद सी हो गई थी। एक ओर विदेशी फिल्म फेस्टिवल में इसे सराहा और पुरस्कृत किया जा रहा था, मगर निर्माता बेपरवाह थे। उनकी आशंका की वजह थी कि यह एक अंजान धावक के डकैत बनने की सच्ची कहानी है। इसमें मनोरंजन के शौकीन दर्शकों की रुचि नहीं होगी। इरफान को उत्तम अभिनेता मानने के बावजूद दर्शक उनकी फिल्मों के लिए लालायित नहीं रहते, लिहाज्ा दर्शकों के थिएटर में आने की उम्मीद कम दिख रही थी।

मनोरंजक मसाले की कमी

तिग्मांशु कहते हैं, मैं कुछ नहीं कर सकता था। तारीफें सुनता और मन मसोस कर रह जाता। मुझे इंडस्ट्री में कुछ लोग ज्िाद्दी और झगडालू मानते हैं। पहली फिल्म हासिल का अनुभव इतना तीखा था कि मैं संभल कर चल रहा था। ज्यादा तकलीफ इरफान के लिए थी। उनकी शानदार पर फॉर्मेस दर्शकों के सामने नहीं आ रही थी। इसके पहले भी मेरी फिल्में छूटी हैं, मगर पान सिंह कंप्लीट फिल्म थी। शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन के समय ही पान सिंह के बारे में पता चला। उनसे जुडी ख्ाबरें मैंने रख लीं। शुरू में आइडिया लोगों को अच्छा लगता था, लेकिन प्रोड्यूसर निवेश के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें इसमें मनोरंजक मसाला नहीं दिखता था।

लंबा शोध और अध्ययन

हिंदी में डकैतों पर बनी फिल्मों का एक ख्ास पैटर्न है। पान सिंह की कहानी उसमें फिट नहीं बैठती थी और तिग्मांशु धूलिया जिस रीअल अंदाज्ा में शूट करना चाहते थे, वह इंटरेस्टिंग नहीं था। घिसे-पिटे तरीके से डकैतों का चरित्र-चित्रण करने से पान सिंह की मार्मिक कथा सही-सही उद्घाटित नहीं हो पाती। फिर कोई भी निर्माता शोध के लिए पैसे ख्ार्च करने को तैयार नहीं था। कहानी के नाम पर यही पता था कि फौजी पान सिंह तेज्ा धावक थे, उन्होंने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था। मेडल जीते। रिटायरमेंट के बाद पट्टीदारी के झगडे में वे ज्ामीन से बेदख्ाल हो गए। पुलिस और प्रशासन से इसकी शिकायत की। किसी ने नहीं सुनी। अंत में उन्होंने बंदूक उठा ली। एक सच्ची घटना को स्क्रिप्ट में पिरोना समस्या थी। उसके लिए फ‌र्स्ट हैंड जानकारी लेना ज्ारूरी था।

कैसे लिखी कहानी

तिग्मांशु धूलिया ने संजय चौहान के साथ मिल कर स्क्रिप्ट तैयार की। संजय ने धूप और मैंने गांधी को नहीं मारा जैसी फिल्में लिखी हैं। आई एम कलाम के लिए फिल्मफेयर का पुरस्कार भी मिला है। पान सिंह तोमर की स्क्रिप्ट आई एम कलाम से पहले लिखी गई थी। ख्ौर, संजय ने स्क्रिप्ट लिखने की चुनौती स्वीकार की। तिग्मांशु के साथ चंबल के बीहड इलाकों की यात्रा की। पान सिंह के बेटे-भतीजे, रिश्तेदारों सहित उन सभी से मिले, जो कभी पान सिंह के संपर्क में आए थे। उन जगहों की यात्रा की, जहां पान सिंह तोमर रह चुके थे। संजय बताते हैं, यह मुश्किल शोध और लेखन था। हमने लगभग डेढ साल तक ग्वालियर, भिंड, मुरैना की कई यात्राएं कीं। तिग्मांशु ने मुझे संडे मैग्जीन में छपी एक रिपोर्ट दी थी। इसमें उनके धावक से बाग्ाी होने का ज्िाक्र था। गांव के नाम का उल्लेख था-भिडौसा। इसी जानकारी के सहारे हम मैदान में उतर गए। चंबल में लोग जल्दी परिचितों के ठिकाने नहीं बताते। मैंने सुना था कि वहां पुश्तों तक दुश्मनी चलती है। बाद में किसी ने बताया उन्हें हम पर शुबहा था कि कहीं हम दुश्मनों के आदमी तो नहीं हैं। इस तरह सूचनाएं मिलती रहीं तो कहानी का पैटर्न बना। कुछ महीने हम उनके रिश्तेदारों की खोज में रहे। आख्िारकार उनके बेटे से मुलाकात हुई, सो लेखन का हमारा मिशन पूरा हुआ।

बुंदेलखंडी लहज्ा

पान सिंह तोमर की विशेषता है, इसके संवादों में बुंदेलखंडी लहज्ा होना। कुछ प्रचलित बुंदेलखंडी शब्द भी हैं। संजय स्पष्ट करते हैं, मेरी कोशिश रहती है कि किरदार अपनी भाषा बोलें। मैं भोपाल का हूं। बुंदेलखंडी भाषा से परिचित हूं और टूटी-फूटी बोल लेता हूं। चंबल में घूमने से एक फायदा हुआ कि उनके लहज्ो की जानकारी मिली। मैंने संवादों में स्थानीय शब्द डाले और कलाकारों से आग्रह किया कि वे उन्हें बुंदेलखंडी लहज्ो में बोलें। यह सावधानी भी रखी कि ठेठ और देशज शब्दों का इस्तेमाल न करूं। इससे भाषा दुरूह हो जाती।

इरफान की ट्रेनिंग

यह इरफान की श्रेष्ठ फिल्म है। उन्होंने युवा से प्रौढ उम्र तक के किरदार को सही ऊर्जा के साथ निभाया। तिग्मांशु बताते हैं, मुख्य भूमिका के लिए हम इरफान के अलावा सोच ही नहीं सकते थे। उन्होंने ज्ारूरी ट्रेनिंग ली। पान सिंह स्टेपल चेस धावक थे। यह दौड मुश्किल है, इसमें छलांग भी लगानी पडती है। इरफान ने अभ्यास किया। उनकी टांग में चोट भी आई, लेकिन उन्होंने जोश बनाए रखा। कलाकारों का चुनाव भी अहम फैसला रहा। कोई भी परिचित चेहरा इसमें नहीं है। छोटी भूमिकाएं स्थानीय लोगों ने निभाई। इससे स्वाभाविकता आ गई। लोकेशन और लोग फिल्म को रीअल टच देने के लिए ज्ारूरी हैं।

चंबल की शूटिंग

इरफान कहते हैं, हम कलाकारों को ऐसे मौकेकम मिलते हैं। मज्ा तो असल किरदार निभाने में ही आता है। तिग्मांशु ने कहा कि स्क्रिप्ट के अनुसार ही शूटिंग होगी। इसे लीनियर शूटिंग कहते हैं, यानी स्क्रिप्ट जहां शुरू हो, वहीं से शुरू करके अंत तक पहुंचें। मगर ऐसा न हो सका। युवावस्था-प्रौढावस्था के सीन आगे-पीछे करने पडे। चंबल में शूटिंग से फिल्म में वास्तविकता आई। मेकअप, गेटअप और चेहरे के भाव से हम किरदार को ज्िांदा रखते हैं, लेकिन परिवेश ग्ालत हो तो सब उल्टा हो जाता है। हालांकि वहां गर्मी बहुत थी। वैनिटी वैन की सुविधा नहीं थी। लेकिन इससे फायदा हुआ। चेहरे पर सही भाव आ गए। पान सिंह अन्य हिंदी फिल्मों के डकैतों की तरह घोडे पर नहीं चलता। चंबल में घोडों पर चलना अपनी जान ख्ाुद देना है। छिपेंगे तो घोडे से ही पकडे जाएंगे। अब दर्शक इन बातों पर ग्ाौर करने लगे हैं।

इरफान के अनुसार, तिग्मांशु की फिल्मों में समाज रहता है। कोई भी मुद्दा हो, वह सीधे कहने के बजाय कहानी और किरदारों के ज्ारिये कहता है। उसकी फिल्में सहज ढंग से सामाजिक समस्याओं और विसंगतियों की ओर इंगित करती हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.